Sunday 22 January 2017

पंजा के लिए काटा पौकेट या फटी जेब में घुसा हाथ


बड़ा विचित्र देश है भारत| करोडपतियो के पौकेट फट जाते हैं| सूना करता था कि जिनके पैसे जेब में होते है उन्हें कोइ काट लेता है| जेबकतरा इसीलिए नाम पडा होगा| राजनीति में जब जेब फटे तो सवाल लाजिमी बनता है| संदेह होंगे ही| पप्पू बाबा ने अपने फटे जेब की नुमाइश की| बजाप्ता जैकेट उतारा और कुरते के फटे जेब में हाथ घुसा कर सवाल पूछा और अपनी बात कही| मंच तालियों की गडगडाह्ट से गूँज उठा| लेकिन इसी देश में भाँति भाँति किस्म के लोग रहते है| सिर्फ संस्कृति ही नहीं स्वभाव और विचार के साथ कल्पना भी हजारों में होती है| पप्पू या राहुल बाबा कही गरीब तो नहीं हो गए, इसलिए उनकी औकात खंगाली तो पता चला कि चुनाव आयोग को दी हलफनामे के अनुसार उनकी संपत्ति पांच साल में दोगुनी होकर 9.4 करोड़ की हो गयी है| अब जब जिनकी संपत्ति हर साल एक करोड़ बढ़ती हो वह भी बिना किसी नौकरी या दूकान के उनकी जेब फटे तो संदेह जायज लगता है| जांच होनी चाहिए कि किसी 70 साल के देश में हुए 16 आम चुनाव में छ: बार पूर्ण बहुमत और चार बार गठ्बंधन समेत 49 साल सरकार चलाने वाली पार्टी के मुखिया इतने कंगाल कैसे हो गए कि उनके कुरते की जेब फट जा रही हो? मुकेश मित्तल को दुःख लगा तो 100 रुपए का ड्राफ्ट भेज दिया| यह कितनों को नसीब है, इस देश में तो 100 रूपए में तो साड़ी, धोती और कुरता मिल जाता है भाई! जांच का विषय यह भी है कि कैसा कुरता था कि सिर्फ जेब फटी और अन्य हिस्से में कही खरोंच तक नहीं| गरीब के कुरते की जेब तो फटती ही नही है| हां, अन्य हिस्से में रफ्फु कराने की जरुरत भले पड़ती है| क्या मंच से दिखाने के लिए पौकेट के नीचले हिस्से को कैंची से तो नहीं काटा गया? या यह भी पीएम की साजिशा थी? खैर, इस देश में जांच से ऊपर है हमारे नेता| सो खामोश !!!  

अंत में बशीर बद्र को पढ़िए—
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता|
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता||
कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है|
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता||

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