Monday 30 January 2017

माइकोमेनिया बनाम मंच संचालन का समर्पण

सांस्कृतिक समारोह के मंच संचालन के लिए इस बार भीतर भीतर राजनीति होने की चर्चा है| शहर जानता है की माइकोमेनिया की बीमारी और बीच में सर उचका कर फोटो खींचाने की बीमारी कितनी खराब है| प्रशासन नहीं चाहता की दंगा, मारपीट, सरकारी काम में बाधा डालने और रंगदारी माँगने का आरोपी मंच संचालन करे| यह और बात है की पैरवी के बल पर कोइ अपना नाम कटा ले| विवाद के दोनों पक्षकार समझौता कर केसा खत्म कर लें| सच कौन जामता है, यह तो न्यायालय में लंबी बहस के बाद तय होता है, किन्तु प्रथम दृष्टया इस तरह के आरोपी को या किसी राजनीतिक दल के नेता द्वारा सरकारी या प्रशासनिक कार्यक्रम के संचालन को जायज तो नहीं ही ही माना जाता है| पिछले अधिकारी ने संचालन से मुक्त कर दिया तो विधायक से पैरवी करा कर काम हाथ से जाने नहीं दिया| इस बार शंका हुई तो पूर्व विधायक से पैरवी कराई गयी| हद है भाई, सवाल तो बनता है न कि जब मंच संचालन का बाई प्रोडक्ट लाभ नहीं है तो काहे का मत्थापच्ची? इतना परिश्रम वह भी तब जब कोइ चाहता नहीं की मंच पर नेता जी रहें|
 चर्चा है की यह संचालन के प्रति समर्पण का मामला नहीं है बल्कि इससे आम लोगों को यह बताना दिखाना आसान होता है कि हमारी पहुँच काफी है| पदाधिकारी मेरी सुनते है| इससे वह धंधा भी अच्छा चल निकलता है जो बुरा मान जाता है किन्तु लाभदायक है| प्रशासन इसीलिए नहीं चाहता कि नेता उनके कार्यक्रम का संचालन करे| और हां, पूरे बिहार में ऐसा नहीं होता की सरकारी या प्रशासनिक आयोजन का संचालन कोइ नेता करे| खैर, बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे वाली स्थिति बन गयी है|
 और अंत में साहिर लुधियानवी
सज़ा का हाल सुनाये जज़ा की बात करें|
ख़ुदा मिला हो जिन्हें वो ख़ुदा की बात करें|
वफ़ाशियार कई हैं कोई हसीं भी तो हो|
चलो फिर आज उसी बेवफ़ा की बात करें|

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