Thursday 9 February 2017

गोस्वामी तुलसी को नरहरी सुनार ने बनाया संत


आज है माघसुदी पूर्णिमा
 को संत की जयंती

इन्हीं से रामचरित मानस लिखने की मिली थी प्रेरणा

प्रख्यात धर्म-ग्रंथ रामचरित मानस तमाम सनातनियों के हृदय में रचा-बसा है।यह दूर्भाग्य है कि संत तुलसी को पूजा जाता है लेकिन उनको यह ग्रंथ लिखने का गूरुमंत्र देने वाले संत नरहरि सुनार को भुला दिया गया। संत तुलसी दास का जन्म संवत 1554 (सन-1611) में हुआ था.जिनका यज्ञोपवित संस्कार संवत-1561 में संत नरहरिदास ने किया था.इन्हीं के गुरुमंत्र से इन्होंने रामभक्ति के शिखर पर पहूंच कर कालजेयी रचना “रामचरितमानस” लिखा.दुर्भाग्यवश इनके बारे में बहुत कम जानकारी प्राप्त है.मराठी साहित्य में इनपर बहुत कुछ लिखा गया है. इनका जन्म देवगिरी,जिला-औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में दीनानाथ सुनार के घर हुआ था.पिता पारम्परिक तौर पर स्वर्णाभूषण निर्माण का कार्य करते थे.इसी व्यवसाय से वे अमीर हो गये और पंढरपुर रहने चले गये.संत जी कट्टर शिवोपासक थे पंढरपुर में रहने के बावजुद भी यहां के प्रसिद्ध पान्डुरंग (विष्णु) मन्दिर में कभी दर्शन करने  नहीं जाते थे.एक दिन एक साहुकार ने उन्हें भगवान पांडुरंग जी के लिए कमरधनी बनाने को कहा.बनाकर दिया तो आकार में वह बडा हो गया.साहुकार ने उन्हें नाप लेने को कहा.समस्या यह थी कि वे पांडुरंग जी के दर्शन नहीं लेना चाहते थे इसलिए अपनी आंख पर पट्टी बान्ध कर वे गये और नाप लेने लगे.इस क्रम में उनका भगवान के पिंड के साथ स्पर्श हुआ.कुछ अज्ञात सा,अनुभव हुआ,और फिर अपनी आंख की पट्टी खोल दी.साक्षात भगवान पांडुरंग जी का दर्शन हुआ,और यह विश्वास हुआ कि शिव जी एवं पांडुरंग जी एक ही हैं,दोनों में कोई फर्क नहीं है.यहीं से वे पांडुरंग जी के भी भक्त हो गये.5संत नरहरि की पत्नी का नाम- गंगा,बेटा का नाम - नारायण और बेटी का नाम-मालु है.इन्होंने मराठी भाषा में दो किताबें लिखी हैं-(1)संवगडे निवृत्ती सोपान मुक्ताई तथा (2) शिव आणी विष्णु एकचि प्रतिमा.

संत ने सुनार के श्रम एवं कर्म पर कहा है---जो अग्नी दहक रही है,वह मेरा शरीर है,मेरी जिन्दगी का सोना इस भठ्ठी में तपता है.सत्व,रज एवं तम को मिलाकर हमने घडिया (मूस)बनाया है.उसमें हमने ब्रह्मारस मिला रखा है.अपने शरीर की अंतरात्मा से सोने को गलाने के लिए फूंक मारते हैं,तब सोना गलता है,निखार पाता है,जिसको हम रात-दिन ठोंका-ठोंकी कर आकार देते हैं, जिससे सारा संसार खुद को सजाता_संवारता है.

इन्होंने कहा है---जो काम हमने लिया हुआ है  उसे ठीक न बताने से पहले हम अपना सर्वस्व न्योछावर कर पूरा करें. हम जब  सर्व शक्ति ,कौशल और तन ,मन ,धन अर्पित कर लिया हुआ काम पूरी निष्ठा से पूरा कर देंगे तो ही यश ,किर्ति,और वैभव मेरे कदमों के नीचे आ जायेगा.  


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