Sunday 14 May 2017

जब पी चुके शराब तो साहब संजीदा हो गये, और हम...


कहाँ से चले थे और कहाँ पहुँच गए| बिहार के साहेब की यही हालत है| कोइ उन्हें सुशासन कुमार कहता रहा है तो अब कई उन्हें चाँद कुमार कहने लगे हैं| पहले दक्षिणपंथी गणेश को दूध पिलाते थे अब समाजवाद ने इतनी तरक्की कर ली कि चूहे शराब पीने लगे| बड़ा शोर मचाते थे कि ये ऐसे लोग हैं जो पत्थर के गणेश को दूध पीला देते हैं| अब चुप हैं लोग कि कैसे चूहा शराब पी लिया| प्रदेश में बरामद शराब गटक गए चूहे| हद यह कि वे ऐसे नशाबाज निकले कि कभी उनके चहरे से नहीं झलका की किस चूहे ने शराब पी हुई है| पुलिस का आला नेता नशे की हालत में पकड़ा जा सकता है किन्तु चूहा नहीं| हद है न! शराब अपने प्रदेश में या कहें जिला जवार में सहज उपलब्ध है| होम डीलवरी| इसलिए आभासी दुनिया में कहा गया कि यह भगवान् बन गया है, दिखता कहीं नही और मिलता हर जगह है| यह बात बहुत पहले से कही जा रही थी| अब ‘चूहे ने पी ली शराब’ की थ्योरी ने इसे साबित भी कर दिया| कुछ पत्रकार साथी जानते हैं कि पुलिस शराब पकड़ती है और उसमें से कुछ छूपा कर रख लेती है| पत्रकार को जितना बताया जाता है उतना ही छापने की विवशता है| चूंकि गिरफ्तार व्यक्ति कह नहीं सकता कि बतायी गयी मात्रा से अधिक शराब बरामद हुआ है| कई पुलिस वाले अपने करीबी को भी बोतल थमा देते हैं| यह सब बातें अलग हैं किन्तु सवाल यह भी है कि गली गली शराब बेचवाने वाले जब मदहोश हो लिए तो इस मुद्दे पर गंभीर बन गए| फिराक गोरखपुरी को वे अमल करने लगे- आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़', जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए|| शराब का साइड इफेक्ट अब दिखने लगा है| राजस्व की क्षतिपूर्ति के लिए जमीन के निबंधन में सरकारी रंगदारी हो रही है| जमीन किस भाव लिखी जायेगी यह तय किया जा रहा है, इस तर्क के साथ कि क्या करें, बहुत दबाव है राजस्व बढाने के लिए|   

और अंत में...
अभिनव कुमार सिंह लिखते हैं- आखिरकार भुजंग प्रसाद की भुजाओं में फंस ही गए चन्दन कुमार| और यह कि दिल्ली से पटना तक के ताजा घटना क्रम पर बशीर बद्र याद आ रहे हैं-
 तुम होश में हो  हम होश में हैं|
चलो मय-कदे में वहीं बात होगी|

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