Monday 29 May 2017

कट्टरतावाद के खिलाफ मुमताज नसीम का साहित्य


आतंकवादियों, अलागावावादियों को दिया सन्देश

फतवाबाजों को सरस्वती वन्दना से सीखाया सबक
दैनिक जागरण द्वारा रविवार को आयोजित अखिल भारतीय कवी सम्मलेन में मुमताज नसीम ने संप्रदायवाद, आतंकवाद, फतवावाद, अलगाववाद, कट्टरवाद के खिलाफ सख्त सन्देश दिया| समारोह का आगाज संचालक मनवीर मधुर ने उनसे सरस्वती वन्दना के साथ कराया| जिस देश में साम्प्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता का आडम्बर रचा जाता हो, देश के प्रमुख पद पर बैठा शख्स दीपा प्रज्ज्वलित करने से यह कह कर इनकार कर देता हो की ऐसा करना हमारे मजहब में नहीं है, रोज हवा में जहर घोले जाते हों, वैसे माहौल में नसीम ने वन्दना –हे सरस्वती माँ-पढी- तेरे चरणों में अर्पण मेरे दो जहां, मैं तो हर पल तुम्हारी ही दासी रहे, याद कर के तुम्हे ना उदासी रही| जब यह वन्दना वह कर रही थीं, दर्शक श्रोता दीर्घा में बैठे एक ने टिप्पणी की-फतवा जारी कर देगा सब| यह टिप्पणी बताता है कि हम कैसे अविश्वास के माहौल में रह रहे हैं| साहित्य ही इसे बदल सकता है| यह नसीम ने खूब बताया|
 जब वे मंच पर दुबारा पढ़ने आयीं तो पाकिस्तान में सुना चुकी अपनी मशहूर नज्म पढ़ा| इसमें उन्होंने ने साफ़ साफ़ लफ्जों में बहुत सख्त सन्देश दिया है| कहा-भाई से भाई क्या होता है हक़ भूल गए, तुम तो इस्लाम की अस्मत का सबक भूल गए| .., क़त्ल करना तो सीखाता नहीं मजहब अपना, राह ऐसी तो दिखाता नहीं मजहब अपना, अपने मजहब में तो जायज नहीं दहशतगर्दी, नौजवानों को गलत काम सीखाते क्यूं हो, और बेसबब भाई को भाई से लड़ाते क्यूं हो? काश! मुमताज नसीम के सन्देश मजहब के ठेकेदार सुन कर अमल कर लेते|

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