Sunday 31 January 2021

क्या पुलिस बड़ों का देती है साथ, कुछ करते हैं गलत काम, एसडीपीओ से जानिए


सामान्य जनता नहीं दुष्कर्मियों में पुलिस का हुआ है भय कम : राजकुमार तिवारी 

फोटो- एसडीपीओ राजकुमार तिवारी 


सब इंस्पेक्टर से एसडीपीओ के पद तक पहुंचे, 32 साल तक पुलिस सेवा में रहे दाउदनगर के एसडीपीओ राजकुमार तिवारी रविवार को सेवा निवृत्त हो गए। उनका स्पष्ट मानना है कि दुष्कर्मियों में पुलिस का भय कम हुआ है। पुलिस की सेवा तपस्या के स्तर पर होनी चाहिए। जनता सूचनाओं एवं व्यवहार का आदान प्रदान करेगी तभी अपराधों के निरोध में पुलिस को सहयोग मिलेगा। कुछ पुलिस अधिकारी भी गलती करते हैं। दैनिक जागरण संवाददाता उपेंद्र कश्यप ने विभिन्न मुद्दों पर उनसे बातचीत की। प्रस्तुत है अंश…


प्रश्न:- पुलिस हमेशा बड़ों के साथ रहती है, कमजोर के साथ नहीं।

उत्तर- अधिकारी के व्यक्तित्व पर यह निर्भर है। अपराध होने के बाद तत्काल प्रतिक्रिया क्या रही। पुलिस को जो सूत्र प्राप्त है उस पर अनुसंधान को विस्तार किया गया कि नहीं। पुलिस पदाधिकारी निष्पक्ष होकर कार्य करता है तो मुझे नहीं लगता कि आरोप लग सकता है। वैसे समाज में कुछ पूर्वाग्रही लोग रहते हैं। उन पर कुछ नहीं कहना। वैसे लोग भी आरोप लगाते हैं जिनके विरुद्ध कभी पुलिस कार्रवाई की हुई होती है। कुछ पुलिस पदाधिकारी भी गलती करते हैं जो जनमानस में गहरे पैठ जाता है।


 प्रश्न -लगातार हत्या और लूट की घटनाएं बढ़ रही हैं ऐसा क्यों है। 

उत्तर-अपराधों को श्रेणियों में वर्गीकृत करने की जरूरत है। आदतन अपराधी द्वारा अपराध, संपत्ति मूलक अपराध, सुपारी के लिए योजना बनाकर हत्या, आपसी विवाद में हत्या। पुलिस पहले से संपत्ति मूलक, योजना और आपसी विवाद वाली हत्याओं पर नियंत्रण प्राप्त नहीं कर सकती, लेकिन आदतन होने वाले अपराध पुलिस के लिए चुनौती होती है। पुलिस सतत प्रयास करती है कि इस पर नियंत्रण पाया जाए। विगत वर्ष में नियंत्रण हुआ भी। मेरा मानना है कि अन्य कारणों से होने वाली हत्या में वृद्धि दिखती है, इसके लिए कई सामाजिक कारण है, जो बदलते परिवेश में इनकी वृद्धि में सहयोगी हैं। जहां तक गिरफ्तारी की बात है, पुलिस नामित, चिन्हित और वांछित अपराधियों को गिरफ्तार करने के लिए सतत प्रयास करते रहती हैं। प्रोवैबिलिटी सबसे महत्वपूर्ण होता है।



 प्रश्न- पुलिस का इकबाल खो गया है, इसलिए अपराध बढ़ रहे हैं और पुलिस पर लोग विश्वास नहीं कर रहे हैं।

 उत्तर -पुलिस की कार्यशैली में गिरफ्तारी महत्वपूर्ण है। एक पुलिस पदाधिकारी के प्रभाव को चिन्हित करने वाला यह तत्व है, यह कर्तव्य का अंश है। हालांकि अनुसंधान अपने आप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। पुलिस अपराधियों के लिए बनी है और संज्ञेय अपराधों को परिभाषित करते हुए अधिकार दिया गया है कि पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। संज्ञेय अपराधों को रोकने से पुलिस का कर्तव्य शुरू होता है। मेरा मानना है कि विगत वर्षों में पुलिस पदाधिकारियों द्वारा गिरफ्तारी उतनी प्रभाव नहीं रही है। यही कारण है कि सामान्य जनता नहीं सिर्फ दुष्कर्मियों में पुलिस का भय कम हुआ है। प्रश्न -32 वर्ष का अनुभव है, पुलिस के लिए क्या कहेंगे।

 उत्तर- कर्तव्य के दौरान जो जीवन भोगा है, उसके मुताबिक चिकित्सक और पुलिस दोनों की सेवा तप के धरातल पर आधारित है। पुलिस पदाधिकारी जब अपने कर्तव्यों के सौ प्रतिशत निर्वहन की स्थिति में होता है तो उसकी सेवा तपस्या के स्तर पर दिखाई पड़ती है। अपने कर्तव्य की अवधि में मैंने अनुसंधान के लिए बीहड़ों में समय गुजारा। कई ऐसे स्थान रहे जहां 3 से 4 दिन तक खाने, पीने, रहने की सुविधा नहीं थी। तब भी लखीसराय के अजय सिरोहा अपहरण कांड, सुमन वर्मा हत्याकांड, बैजनाथ खेमका अपहरण कांड, जिनोरिया बैंक डकैती कांड का अनुसंधान किया। अनुसंधान के दौरान यदि विश्राम कर लिया जाता तो वैसी सफलता नहीं मिलती जैसी मिली। 


प्रश्न -पुलिस और जनता के लिए संदेश।

उत्तर- संदेश है कि आप बिल्कुल व्यवसायिक और तप ले स्तर तक सेवा करने का माद्दा उत्पन्न करें तो जनता हाथों हाथ लेगी। पुलिस पदाधिकारी भी समाज के ही बीच के लोग होते हैं। वह आपकी सुरक्षा व सहयोग के लिए हैं। उनके साथ सूचनाओं एवं व्यवहार का आदान प्रदान करें ताकि अपराधियों के निरोध में पुलिस को सहयोग मिले। कई बार प्रशासन व सरकार के स्तर पर सूचनाओं को सही ढंग से नहीं लिया जाता है या कभी कारगर कार्रवाई नहीं हो पाती है लेकिन तब भी सूचना ही है जो अपराधों के निरोध में महत्वपूर्ण है। जैसे 2000 में राजधानी ट्रेन लूटने के लिए जुटे धावा पुल पर डकैतों के साथ मुठभेड़ के पश्चात उजागर हो गया था कि कुछ अपराधी व नक्सली राजधानी ट्रेन गिराने के लिए प्रयासरत हैं। लेकिन उस पर उनके स्थानांतरण के बाद किसी ने ध्यान नहीं दिया और बाद में राजधानी ट्रेन पलटने की घटना हुई।

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