Friday 29 January 2021

अविश्वास की अनोखी दास्तां : 1+1 की संख्या जब 12 पर पड़ी भारी

21 सितंबर को हुई बैठक की तस्वीर जिसमें
अध्यक्षता कर रहे नारायाण प्रसाद तांती,
परमानंद प्रसाद और ईओ राजीव कुमार
दो बार अविश्वास प्रस्ताव झेल चुके परमानंद की कहानी

मुख्य पार्षद बनने के लिए एक बार लाया था अविश्वास

दांव ऐसा कि तब दंग रह गए थे राजनीतिक पंडित

शहर में राजनीतिक हलचल बढ़ गई है नगर परिषद में अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 12 वार्ड पार्षदों ने आवेदन दिया है नगर परिषद में कुल 27 वार्ड पार्षदों की संख्या है और सत्ता गिराने के लिए कम से कम 14 वोट चाहिए नप ने एक से एक खेल वर्ष 2002 से शुरू चुनाव के दौर में देखा है कई बार अविश्वास प्रस्ताव आ चुके हैं सबसे दिलचस्प अविश्वास प्रस्ताव 2011 में 21 सितंबर को लाया गया था जब नगर पंचायत के मुख्य पार्षद परमानंद प्रसाद थे और उप मुख्य पार्षद अजय कुमार पांडे उर्फ सिद्धि पांडे दोनों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया धर्मेंद्र कुमार को मुख्य पार्षद बनाने के लिए लामबंदी हुई 23 वार्ड वाले सदन में 12 वोट की जरूरत थी और अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में सभी 12 हस्ताक्षर करने वाले वार्ड पार्षद एकजुट थे परमानंद प्रसाद और सिद्धि पांडे के पास अपनी कुर्सियां बचाए रखने के लिए कोई उपाय नजर नहीं आ रहा था दोनों पक्षों से या 2 और वार्ड पार्षदों को तोड़ने की कोशिश की गई, लेकिन एक पाले में जहां 12 खड़े रहे वहीं दूसरे पाले में मात्र 11 ही डटे रहे कोई पक्ष फिर टूटा नहीं सदन में बैठक बुलाई गई तब कार्यपालक पदाधिकारी राजीव कुमार थे बैठक की कार्यवाही पूरी करने के लिए एक अध्यक्ष की जरूरत अनिवार्य तौर पर होती है 

तत्कालीन मुख्य पार्षद परमानंद प्रसाद

परमानंद प्रसाद और सिद्धि पांडे ने तर्क दिया कि दोनों आरोपित है दोनों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया है, इसलिए वह अध्यक्षता नहीं कर सकते नतीजा यह हुआ कि अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले समूह से नारायण प्रसाद तांती को सभा का अध्यक्ष बनाया गया इसके लिए खुद परमानंद प्रसाद ने ही दांव चली, रणनीति बनाई और उन्हें काफी प्रेरित किया जब यह कुर्सी पर बैठ गए तो वोटिंग की प्रक्रिया शुरू हुई इधर परमानंद प्रसाद ने अपने समर्थक वार्ड पार्षदों को शहर से बाहर कर दिया था, ताकि वह किसी भी परिस्थिति में नगर पंचायत कार्यालय परिसर में उपस्थित तब तक ना हो सके, जब तक सदन की कार्रवाई चलती रहे हुआ भी यही, इनके खेमे का कोई वार्ड पार्षद सदन की कार्यवाही चलने तक नहीं आया वोटिंग हुई तो अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में मात्र 11 वोट पड़े और विपक्ष में दो अविश्वास प्रस्ताव पारित कराने के लिए आवश्यक 12 वां वोट निर्णायक था, लेकिन नारायण प्रसाद को वोट देने से रोका गया 
तत्कालीन उप मुख्य पार्षद अजय कुमार पाण्डेय 

अंतिम क्षण में परमानंद ने नगर विकास एवं आवास विभाग द्वारा जारी एक पत्र सदन में रखा जिसमें कहा गया था कि अविश्वास प्रस्ताव की कार्यवाही सभा की अध्यक्षता करने वाला व्यक्ति मतदान नहीं कर सकता
 यह बात अविश्वास प्रस्ताव लाने वालों को पता नहीं था और इसी ज्ञान का लाभ परमानंद प्रसाद ने लिया। अध्यक्ष व उपाध्यक्ष मात्र दो होकर 12 पर भारी पड़ गए सदन में अविश्वास प्रस्ताव गिर गया और दोनों की कुर्सी बच गई। हालांकि मामला न्यायलय तक गया, विरोध हुआ, किन्तु अतंत: वजेता बनकर उभरे परमानंद और सिद्धि। यहीं से कहावत निकली कि राजनीति में 01 और 01 दो नहीं बल्कि 11 भी हो जाते हैं। संख्या बल और विभागीय चिट्ठियों का इस्तेमाल कितना महत्वपूर्ण होता है यह ज्ञान और विवेक पर निर्भर करता है सिर्फ संख्या बल जुटा लेने से कोई सत्ता नहीं चल जाती है हालांकि बाद में नगर एवं आवास विभाग ने संशोधन किया और अध्यक्षता करने वाले शख्स को भी मताधिकार प्राप्त हो गया है

 

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