Tuesday 20 May 2014

पिछली दफा से 57 हजार वोट अधिक फिर भी पराजय


पिछली दफा से 57 हजार वोट अधिक फिर भी पराजय
लोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम का विश्लेषण
जदयू को विगत के मुकाबले मिले मात्र 39% मत
क्या टूट गई जाति और वर्ग का भेद?
उपेन्द्र कश्यप
चुनाव परिणाम का विश्लेषण हर कोई अपने अनुभवों, आग्रहों, पूर्वाग्रहों के साथ कर रहा है। जीतने वाले के पास सिर्फ एक लाइन है-नमो लहर। दूसरा कोई लाइन नहीं। राजद ‘माय’ के दायरे से बाहर नहीं निकल पा रहा है। भाजपा का जो भूत राजद, कांग्रेस और जदयू ने अल्पसंख्यकों को दिखाया तो वे आक्रामक अभिव्यक्ति के साथ ध्रुवीकृत हो गए। प्रतिक्रिया स्वरुप अन्य जातियां उपजातियां और वर्ग आपसी भेद भूलकर एक हो गए। नतीजा राजद को साल 2009 में मिले मत 176463 से 57188 मत अधिक इस बार मिला। लेकिन रालोसपा को इसी ध्रुवीकरण के कारण मिला कुल 338892 मत राजद से 105241 मत अधिक हो गया। ध्रुवीकरण का कोई दूसरा कारण नहीं दिखता। राजद यह तर्क देती रही कि भाजपा और जदयू अलग अलग हो गए हैं और राजद का वोट बढा है। इसलिए वे मुगालते में रहे कि कोई मुकाबला नहीं है। विश्लेषण की गलती ने ऐसा आत्मविश्वास भरा कि मतदान होते जीत की मिठाइयां बांट दी गई और परिणाम के दिन जबरदस्त जश्न की तैयारी की गई थी। राजद यह देख ही नहीं सका कि लहर है और वेग से है। नीतीश कुमार और इनके प्रत्याशी महाबली सिंह के प्रति नाराजगी ने जदयू के वोट को भी राजग में सिफ्ट करा दिया। पता नहीं किस कारण नीतीश ने महाबली को प्रत्याशी बनाया था। इसकी उम्मीद अधिक थी कि टिकट कटेगा क्योंकि उनका विरोध कई बार मुख्यमंत्री के सामने हुआ था। सांसद के समर्थक इसे सिर्फ एक राजनीतिक साजिश बताते रहे। अन्धभक्ति ने लुटिया डुबो दी। जदयू को गत चुनाव में 196946 मत मिला था। इस बार इसका मात्र 39 फिसदी कुल 76709 मत ही। जीत का सपना देखने और दिखाने वाले सब गणेश परिक्रमा करते रह गए। जदयू को 120237 मत कम मिला। बिहार में भी अधोगति की प्राप्ती हुई क्यों? दैनिक जागरण के 12 अप्रैल के अंक में ‘निराशा और उमीद के साथ टूट गया जाति का खोल’ शीर्षक से प्रकाशित खबर में कारण बताया गया था। कहा था कि-“राजद बनाम राजग की लडाई रही। जदयू कहीं नहीं दिखी। राजग के कारण जदयू का समर्थन करने वाले मतदाताओं में गठबंधन तोडने से नाराजगी है और साथ ही सहानुभुतिपूर्ण प्रतिशोध लेने की भावना भी। लोकसभा में नीतीश कुमार के अहंकार को तोडने की कोशिश के साथ यह आश्वासन भी कि विधानसभा चुनाव में जदयू का साथ देंगे। होगा क्या कोई नहीं कह सकता?”
जदयू बिहार से साफ हो चुका है। आगे राजनीति क्या करवट लेगी कोई नहीं जानता लेकिन राजद और जदयू को सबक सीखने का अवसर यह परिणाम जरुर दे गया। अब दोनों करीब आते दिख रहे हैं। 

राजद के काम नहीं आया कांग्रेस से गठबन्धन

कांग्रेस का मिला मत मिलता तो बदल सकता था निर्णय
गत चुनाव में कांग्रेस को मिला था 71 हजार वोट
 कांग्रेस को साल 2009 के चुनाव में मिला वोट कहां गया? कांग्रेस से गठबन्धन का लाभ क्या राजद को मिला? अगर ऐसा हुआ होता तो क्या परिणाम यही होता? ऐसे कई सवाल लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद राजनीतिक माहौल में गूंज रहे हैं। राजद प्रत्याशी डा.कांति सिंह के साल 2009 के चुनाव में प्रस्तावक रहे पूर्व मुख्य पार्षद परमानंद प्रसाद का कहना है कि कांग्रेस से गठबंधन का लाभ राजद को नहीं मिला। गत लोस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अवधेश नारायण सिंह को 71057 मत मिले थे। राजद इस चुनाव में यह जोड रहा था कि राजद को तब मिले 176463 के साथ कांग्रेस को मिला 71057 वोट जुडा है। इसका कुल होता है 247520 मत। जबकि भाजपा और जदयू अलग अलग हो गए तो उनका वोट घटा है। इनके साथ कोई वोट नहीं जुटा। लेकिन राजनीति गोतिया का बंटवारा वाले फार्मुले पर नहीं चलता यह भी समझना होगा। तभी सही विश्लेषण किया जा सकता है। अगर गत चुनाव में कांग्रेस को मिला मत राजद से जुड जाता तो संभव था कि परिणाम बदल जाता। चूंकि सिर्फ जदयू का ही नहीं कांग्रेस का भी मिला वोट राजग के पाले में चला गया तो राजद गत की अपेक्षा अधिक वोट लाकर भी पिछड गई। गत चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी अवधेश नारायण सिंह को मिला मत उनका स्वजातीय मत था। ऐसा प्रखंड काग्रेस अध्यक्ष राजेश्वर सिंह इमानदारी से स्वीकार करते हैं। इन्होंने कहा कि कांग्रेस का कैडर वोट राजद को मिला है। अल्पसंख्यक मत भी कांग्रेस के कारण ही राजद को मिला है। दरअसल राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि धर्मनिरपेक्षता के पाखंड से आजिज मतदाताओं का बडा वर्ग राजग के पाले में चला गया और सबके पूर्वानुमान ध्वस्त हो गए। ऐसा नहीं होता तो निर्णय बदल सकता था या फिर जीत-हार का अंतर कम हो सकता था।

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