Friday 16 May 2014

बारह हजार अधिक मत लाकर भी हार गईं कांति


बारह हजार अधिक मत लाकर भी हार गईं कांति
राजद को ओबरा विस क्षेत्र में मिले अधिक मत
गत चुनाव में मिला था 29681, इस बार 42074
आधे मत ही ला सकी जदयु
गत लोकसभा चुनाव के सन्दर्भ में स्थिति बदतर
उपेंद्र कश्यप,
नमो की लहर ने राजद और जदयु को किनारे लगा दिया। काराकाट के ओबरा विधानसभा क्षेत्र में दोनों की स्थिति बदतर रही। गत लोकसभा चुनाव में राजद की डा.कांति सिंह को 29681 मत मिले थे। इसबार 42074 मत मिला मगर किनारा ही नसीब हो सका। मझधार पार नहीं कर सकीं। राजग के उपेन्द्र कुशवाहा को 56115 मत मिले। यानी 42074 मत राजद से अधिक। अर्थात मतों के ध्रुवीकरण के कारण राजद को गत की अपेक्षा 12393 मत अधिक मिले तो भाजपा के कारण ध्रुवीकृत मत बढ गए। राजद को अपने ‘माय’ समीकरण पर बडा गुमान था। क्या हुआ, क्यों हुआ? जब समीकरण से बाहर के लोगों को नहीं जोडा जाएगा तो हश्र यही होना था। नगर राजद अध्यक्ष मुन्ना अजीज ने कहा कि हमारे पारंपरिक वोट हमारे साथ रहे। जो भूल हुई है उसे सुधारा जाएगा और माय मील की पत्थर की तरह साथ रहेगा लेकिन दूसरे समुदाय को भी जोडा जाएगा। गत चुनाव में जब जदयु भाजपा साथ थे तब जदयु प्रत्याशी महाबली सिंह को 34777 मत मिले थे। इस बार यह संख्या मात्र 16392 तक सिमट गई। अर्थात गत की अपेक्षा आधे से भी कम। कुल 18385 मत कम। जदयु का अहंकार ध्वस्त हो गया। भाई लोग लहर नहीं ही देख सके। इस प्रदर्शन का कारण महाबली सिंह का कार्यकाल भी रहा और कार्य व्यवहार भी। पांच साल तक जातीय खांचे से बाहर निकल ही नहीं सके। लोग कहते रहे मगर उनके साथ के लोग समझने को तैयार ही नहीं थे। आश्चर्य तो यह था कि उनको टिकट मिला। क्योंकि बिहार के अकेले ऐसे सांसद थे जिनका कई बार विरोध नीतीश कुमार के सामने हुआ था। गाली गलौज के स्तर तक मगर आंखों पर चढा चश्मा अपने भाव ही देखती रही। जनता के मनोभाव को नहीं।
किस प्रत्याशी को कितना मिला मत?
ओबरा विधानसभा क्षेत्र में किस प्रत्याशी को कितना मत मिला यह जानना दिलचस्प होगा। मतगणना कक्ष में उपस्थित अधिकारी के अनुसार प्राप्त मत का ब्योरा।
कांति सिंह-42074
महाबली सिंह-16392
उपेन्द्र कुशवाहा-56115
राजाराम सिंह-10721
सत्यनारायण सिंह-2401
संजय केवट-7679
गुलाम कुन्दनम-1140
दिनेश कुमार-349
प्रदीप कुमार जोशी-562
रजनी दूबे-1043
वीणा भारती-887
इमरान अली-382
मो.विलवाश अंसारी-504
भैरव दयाल सिंह-1126
रामदयाल सिंह-1108
नोटा- 1792
कुल मतदान-144275

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चौथी कोशिश में किला फतह कर सके उपेंद्र कुशवाहा

जानें अपने नवनिर्वाचित सांसद को
कभी थे नीतीश के हनुमान अब दुश्मन
एक बार विधायक बने तो बने प्रतिपक्ष के नेता
तीन लगातार चुनाव हार चुके हैं
एक साल पुरानी पार्टी के मुखिया हैं

भाजपा गठबंधन के रालोसपा से उपेन्द्र कुशवाहा अपनी चौथी कोशिश में जीत का किला फतह कर सके। ताजा गठित अपनी पार्टी के वे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। बिहार में उनको नीतीश कुमार का प्रतिद्वन्धी माना जाता है। एक तबके को लगता है कि इनके जीतने से सीएम को वे चुनौती दे सकते हैं। कभी खुद नीतीश के प्रिय रहे अब घोर विरोधी बन गए हैं। हिन्दी, मगही, भोजपुरी और अंग्रेजी जानने का दावा करते है। ट्विटर पर सक्रिय हैं। जन्दाहा से प्राथमिक शिक्षा, हाई स्कूल मेदीकटी से भी पढे। वैशाली के महनार के जावज में 6 फरवरी 1960 को इनका जन्म हुआ है।  दलीय और व्यक्ति निष्ठा बदलते रहती है। कायदे से एक बार 2000 में जन्दाहा से विधायक बने तो तात्कालिन बिहार के किसी भी नेता से बडा कद नीतीश कुमार के आशीर्वाद से बना। तमाम वरिष्ठों को किनारे कर ‘लव-कुश’ की गरज में उन्हें विधानसभा में विपक्ष का नेता बना दिया गया। नाराजगी बढी लेकिन तब भी नीतीश ने मैनेज कर लिया। तब प्रतिपक्ष के सबसे युवा नेता बन चर्चा में आ गए। अगले विधानसभा चुनाव में नीतीश ने इन्हें हेलीकाप्टर से घुमाया। लाभ नही मिला, खुद भी चुनाव हार गए। समता पार्टी की स्थापना से जदयू तक दोनों सह यात्री बने रहे। 2010 के विधान सभा चुनाव में ‘अपने लोगों’ को टिकट नहीं दिला सके तो बगावत पर उतर गए। राजगीर के कार्यक्रम में कह दिया-“सबेरे वाली गाडी से चले जाएंगे”। रास्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से जुडे फिर रास्ट्रीय समता पार्टी बना ली। पटना में बडी सभा की, हद यह कि नीतीश के खिलाफ खूब बरसे और फिर जदयू में विलय की घोषणा कर दी। जदयू ने राज्यसभा भेज दिया। महत्वाकांक्षा बढी, टकराव बढे और दिसंबर 2012 में राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। तीन महीने बाद नई पार्टी रालोसपा बनाया जिसके रास्ट्रीय अध्यक्ष खुद और अरुण शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। उम्मीद जाहिर की कि पिछडा और अलप्संख्यक गठजोड से बिहार में विकल्प बनेंगे, बाद में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वे भाजपा से गठबंधन कर तीन सीट पर चुनाव लडे। परिणामत: आज बडे खिलाडी बन गए। साल 2000 के बाद तीन बार चुनाव लगातार हार चुके हैं। चौथी पारी में बडे अंतर से जीत दर्ज कर किला फतह कर लिया।

---------------------------------------------------जातीय खांचे के घेरे से बचना होगा
सांसद उपेन्द्र कुशवाहा के सामने सबसे बडी चुनौती जातीय खांचे से बचने की होगी। महाबली सिंह के विरोध की सबसे बडी वजह यही थी। सिर्फ स्वजातीय होने के कारण ही एक ऐसे पत्रकार को अपना प्रतिनिधि बनाया जो कभी माले के राजाराम सिंह के लिए वोट मांगता है तो कभी महाबली सिंह के लिए। आज सबको अगर आशंका है ति इसी बात की कि क्या वे इस तरह के व्यवहार से बच सकेंगे। उअंकी व्यस्तता के कारण उनका पक्ष नहीं लिया जा सका। लेकिन विकास के साथ उनको इस कसौटी पर यहां के मतदाता खास कर भाजपा के और अन्य परखने की कोशिश करेंगे।

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राज्य सरकार की असफलता के कारण हार

राजद से प्रत्याशी डा.कांति सिंह चुनाव हार गई। उन्होंने इसके लिए राज्य सरकार की असफलता को जिम्मेदार ठहराया। जगरण से अपनी हार के बाद कहा कि नीतीश कुमार के नकारेपन के कारण जदयु का वोट भाजपा समर्थित रालोसपा के प्रत्याशी उपेन्द्र कुशवाहा को मिल गया। इस कारण यहां राजद की हार हुई। कहा कि महाबली इनकी पार्टी और सरकार की नाराजगी के कारण इनका आधार वोट रालोसपा को मिल गया। मालुम हो कि राजद को अपने आधार वोट और राजग से जदयु के अलग होने से उसके आधार वोट में बिखराव ही जीत की उम्मीद थी। वह यह नहीं सोच सका कि वोट का बंटवारा गोतिया की तरह नहीं होता बल्कि वोट की सिफ्टिंग परिस्थिति और समीकरण के साथ साथ माहौल पर निर्भर करता है। डा. सिंह ने जनादेश का सम्मान करते हुए राजद को वोट देने वाले हर मतदाता के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्हें धन्यवाद दिया। 


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