Sunday 11 May 2014

अहमदनगर को बसाया था नवाब अहमद अली खान ने


फोटो-नबाब साहब का मजार
मौलाबाग में है इनका मजार, मांगते हैं सभी मुरादें
घोडेशाह से पहले होती है चादरपोशी
संवाद सहयोगी, दाउदनगर(औरंगाबाद) मौलाबाग में नबाब अहमद अली खान का मजार है। घोडेशाह बाबा के मजार पर चादरपोशी से पहले इस मजार पर चादरपोशी करने की परंपरा है। थाना परिसर से थानेदार सामग्री सर पर लेकर अन्य अकीदतमंदों के साथ इस मजार पर आते हैं और चादर चढाने के साथ फातेहा करते हैं। ये नबाब जीवन खान के छोटे पुत्र और नवाब दाऊद खाँ के परपोता थे। उत्कर्ष के अनुसार 15 साल की उम्र में फने सिपाहगिरी की मश्क करने लगे। जब पूरी तरह महारत हासिल कर चुके तो मोहम्मद शाह बादशाह के दरबार में हाजिर हुए। बादशाह ने खुश हो कर 1144 हिजरी मे इलाहाबाद की सुबेदारी सौंप दी। उसके बाद अजीमाबाद(पटना) की सुबेदारी से नवाजे गए। इनकी बहादुरी की वजह से बंगाल, उड़ीसा और सलहट की मुहिम भी सफल हुई। नबाब साहब हमेशा अजिमाबाद के मुहल्ला मुगलपुरा पटना सिटी में रहा करते थे। कभी-कभी दाऊदनगर आया करता थे। एक बार राजा नोखा जिला शाहाबाद रोहतास का रहनेवाला दाऊदनगर में आया। इस समय नबाब साहेब दाऊदनगर में न थे। मैदान खाली पाकर दाऊदनगर किला के पश्चिमी दरवाजे को उखाड़ ले गया। ये खबर जब नबाब साहेब को मालूम हुई तो अपने जंग के लिए अपने फौज के साथ नोखा को प्रस्थान किया। नोखा पहुँचे और आखिर में नवाब साहेब ने नोखा का किला फतह कर लिया। इसके बाद 1145 हिजरी में दाऊदनगर में अहमदगंज की बुनियाद अपने धर्म गुरू सैयद शाह अब्दुल रशीद कदरी के हाथों से डलवाई। इस इलाके को ही नया शहर कहते हैं। नवाब अहमद अली खाँ का रौजा आज भी मौलाबाग में है। जहाँ आज भी हर धर्म के लोग आकर फैज पाते हैं और मुरादें हासिल करते हैं।

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