Saturday 15 October 2016

औरंगाबाद : राजनीती और साहित्य से दूर हुआ एक विलक्षण रचनाकार

श्री महाबीर प्रसाद अकेला जी से साकात्कार करते लेखक उपेन्द्र कश्यप

(emaatimes.com का लिंक नीचे -इस वेब पोर्टल के संपादक मित्र प्रियदर्शी किशोर श्रीवास्तव को इस लेख को स्थान देने के लिए धन्यवाद। प्रकाशित रिपोर्ट यहां अविकल पुनर्प्रकाशित)
औरंगाबाद [13 अक्टूवर ET ]:- कभी राजनीती के शीर्ष पर रहकर नबीनगर विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके महावीर प्रसाद अकेला आज राजनीती से दूर हो अपने परिवार के साथ औरंगाबाद शहर में सामाजिक जीवन व्यतीत कर रहे है।वर्ष 1969 का वक्त और मिनी चित्तौड़गढ़ के नाम से विख्यात नबीनगर विधानसभा चुनाव में सीपीआई का टिकट लेकर चुनाव लड़ने आये श्री अकेला को लोग हाथों हाथ ले लेंगे यह किसी ने नही सोचा था क्योंकि पुरे जिले की राजनीती अनुग्रह बाबू के पुत्र सत्येंद्र नारायण सिंह के इर्द गिर्द घुमती थी और यहाँ की राजनीती में यह कहावत मशहूर हो गयी थी की छोटे साहब यदि किसी कुत्ते को खड़ा करा दे तो वह चुनाव जीत जायेगा।ऐसे में वैश्य समाज से आने वाले महावीर प्रसाद जिनका कोई समीकरण नही था ने जीत दर्ज कर राजनीती को एक नई दिशा दी।लेकिन तीन साल बाद हुए मध्यावधि चुनाव में शिक़स्त के बाद और दल में हुई उपेक्षा से क्षुब्ध होकर राजनीती से किनारा कर लिया और अपनी लेखन क्षमता विकसित की और वर्तमान परिदृश्य पर एक उपन्यास बोया पेड़ बबूल का लिखा।वाराणसी के ज्योति प्रेस से प्रकाशित इस साधारण से उपन्यास ने देश में तहलका मचा दिया और उस उपन्यास को प्रकाशित होने से पूर्व ही कालेपानी की सजा दे दी गयी और इस विवादित उपन्यास के कारण वर्ष 1979 में उन्हें साढ़े पांच महीने तक जेल में भी रहना पड़ा।उस वक्त जब न सोशल मीडिया था और न ही इलेक्ट्रोनिक मीडिया। प्रिंट मीडिया का तत्कालीन स्वरुप बहुत सीमित हुआ करता था।बावजूद इसके पुस्तक इतनी चर्चित हुई कि उससे उपजी परेशानियां आज भी इनके साथ साथ इनके परिवार के सदस्यों के जेहन में चलचित्र की भांति अंकित हो चुकी है।बच्चे काफी छोटे छोटे थे और ऐसे में अचानक से आयी परेशानियों ने समाज में बिलकुल अकेला खड़ा कर दिया तब जाकर उनकी जीवन संगिनी मुकुल अकेला हर कदम पर इनके साथ खड़ी रहकर हर मुसीबतों को झेल और उन्हें अकेला नही छोड़ा।लेखक की मानें तो उपन्यास में ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे किसी की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचती, किंतु विरोध के लिए विरोध किया गया और नतीजा किताब प्रकाशित होने से पहले ही जब्त कर ली गयी। इस अप्रकाशित उपन्यास ने जिला मुख्यालय में आग फैला दी थी। उस घटना की व्यापक चर्चा बिहार : राजनीति का अपराधीकरणमें विकास कुमार झा ने की है। उन्होंने तब इस पर बडी कवरेज रविवारमें की थी। इस पुस्तक की सामग्री की चर्चा से अधिक महत्वपूर्ण है- लेखक के विचार की चर्चा।
सीपीआई से 1967 का चुनाव नवीनगर से वे हारे और फिर 1969 में जीत कर विधायक बने थे। 1972 में चुनाव नहीं लड सके और 1980 में हार गये। बाद में पार्टी से उन्हें निकाल दिया गया। बताया, तब कहा गया कि- तुम्हे एक समुदाय विशेष का वोट नहीं मिलेगा।कहते हैं माओत्से तुंग हो या स्टालिन इनकी आर्थिक नीतियां सही नहीं है। इनकी हो, मजदूर वर्ग की हो या किसी की हो तानाशाही उचित नहीं। श्री अकेला अब अकेला हो गये हैं। राजनीति से उन्हें विरक्ति हो गयी है। वे मानते हैं कि किसी भी पार्टी की विचारधार आज सही नहीं है। कहते हैं- एक दिन समाजवाद आकर रहेगा, समय चाहे जितना लगे, पूंजीवाद को जाना ही होगा। वे इस मामले में बडे आश्वस्त दिखे।
भाजपा नहीं अपनी बदौलत हैं नमो
महाबीर प्रसाद अकेला का मानना है कि नरेन्द्र मोदी अपनी बदौलत आये हैं। भाजपा की विचारधारा की वजह से नहीं। श्री अकेला अपने कालेज जीवन में आरएसएस से प्रभावित रहे हैं। बाद में राजनीति की शुरुआत सीपीआई से की। इसी पार्टी से चुनाव लडे, हारे-जीते व विधायक बने। किंतु आज इनको वामपंथ से अरुचि है। भाजपा से प्रेम नहीं है। समाजवाद के आने की उम्मीद है, पूंजीवाद के जाने की अपेक्षा है किंतु वे यह बता सकने में खुद को सक्षम नहीं पाते कि किस पार्टी के जरिये यह हो सकेगा। साफ कहते हैं अभी किसी पार्टी की विचारचारा सही नहीं है। आरएसएस से एकदम से वामपंथ की तरफ चले जाने के पीछे एक घटना रोचक है। बताया- कालेज के दिनों में आरएसएस समर्थकों से बहस हुई तो पूछा कि बहुमत आने पर आर्थिक नीतियां क्या होंगी तो जवाब मिला इससे कोई मतलब नहीं है। इसके बाद वे वामपंथ की ओर झुके। किंतु वामपंथ को करीब से देखने के बाद राजनीति से विरक्ति हो गयी। बोले-नक्सली लेवी लेते हैं। कहां गयी विचारधारा?
कोई मुकाबले में नहीं
श्री अकेला बोले कि नरेन्द्र मोदी के मुकाबले कोई खडा नहीं दिखता। इनके समानांतर अभी कोई नहीं है। बोले-सोनिया गान्धी और राहुल कहीं नहीं दिखते हैं। अभी नमो का भविष्य उज्ज्वल दिखता है। कहा कि कोलकाता में 35 साल तक वामपंथी राज रहा क्या हुआ विकास? वहां का मानव जीवन विकसित नहीं हो सका।
अगर बाते की जाए तो विषयो की कमी नहीं उनके पास हर प्रश्न के तार्किक जवाब मौजूद है लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें लड़ना सिखाया और यही कारण है कि उनके एकमात्र पुत्र गौरव अकेला भी जातीय राजनीती से अलग हो सामाजिक क्षेत्रो में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो रहे है।
प्रकाशित पुस्तकें
जीवन परिचय-
महावीर प्रसाद अकेला
जीवन संगिनी-मुकुल अकेला
पुत्र-गौरव अकेला
जन्म : 25 जून 1034
शिक्षा : एम. कॉम.
क्रिया कला : सामाजिक और राजनीतिक कार्य तथा लेखन।
सन् 1969 से 1971 तक बिहार विधानसभा के सदस्य।

लेखक की प्रकाशित पुस्तकें :
1. न माने मन के मीत, 2. युग की पुकार (कविता संग्रह), 3. सिंदूर का दान, 4. मेरी प्रथम जेल यात्रा
5.
चटटान और धारा, 6. छोटा साहब और बड़ा चुनाव (लेख), 7. बूलेट और बैलेट तक (लेख)
8.
सफेद हाथियों का सरकस, 9. बोया पेड़ बबूल का10. गूंज, 11. नीड़ के पंक्षी
अप्रकाशित रचनाएं :
1.
मुहब्बत के फरिश्ते, 2. नक्कार खाने में तूती की आवाज, 3. मेहरबान, 4. नूरजहॉं, 5. जहॉनारा
6.
लहरें (कविता संग्रह), 7. अपने हुए पराये, 8. जिन्दगी मुस्कुराती रही (आत्मकथा)

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