Friday 7 October 2016

दुर्गापूजा की कई अनुठी परंपराएं विलुप्त

सोन में लोग लूटते हैं सोना


नवरात्र प्रारंभ है। शहर का माहौल भक्तिमय बना हुआ है। हर तरफ मां दुर्गे का जयकारा। भक्ति रस में डूबोता हुआ गीत संगीत और प्रवचन। ऐसे माहौल में यह भी विचार किया जाना चाहिए कि हमारी संस्कृति की कई अनुठी परंपरायें विलुप्त हो गयी हैं। गांव-शहर में अभी कई अनुठी परंपरा जीवित भी है। अमरजीत कुमार कहते हैं कि शमशेरनगर में प्रतिमा को बांस के कंडे पर घुमाने की प्रथा थी। अब उसकी जगह ट्रैक्टर ने ले ली है। यह आधुनिकता का प्रभाव है। कल्पना करें कि जब लोग बांस पर प्रतिमाओं को लेकर भ्रमण करते थे तो कितना श्रम साध्य वह कार्य होता होगा। दाउदनगर के नित्यानंद कहते हैं कि पहले दुर्गापूजा का आनंद लेने के लिए लोगों को बाहर जाना पडता था, अब दुर्गा क्लब में ही भव्य आयोजन होता है। सुतहट्टी गली के आर्य अमर केशरी कहते हैं कि दाउदनगर में सोन इलाके के महादेव स्थान पर लोग मिट्टी लूटते हैं, और कहते हैं कि सोना लूट कर घर ले जा रहे हैं। लाला अमौना के राहुल शर्मा कहते हैं कि छोटा गांव होने के बावजूद उनके यहां दुर्गा पूजा का आयोजन महत्वपूर्न है। नौ दिन तक कार्यक्रम चलता है। इस तरह की कई परंपरायें विलुप्त हो गयीं हैं या समाप्तप्राय है। 

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