Sunday 23 October 2016

फुसफुसिया राष्ट्रवाद बनाम जमीनी हकीकत



नवाबों के शहर दाउदनगर में दीपावली की तैयारी चल रही है। वर्तमान परिवेश में अनंत चतुर्दशी का स्मरण हो रहा है। उसमें हम कटोरे में दूध रख कर खीर से मथते हैं और समझते हैं कि क्षीर सागर को मथ रहे हैं। यह प्रतीक है। पुरोहित बोलते हैं-माथे चढावअ। यजमान माथे पर छू कर समझता है पा लिया। यह दिगर बात है कि आज तक यह नहीं जान सके कि पाया क्या जिसे माथे चढाता रहा हूं। देश की स्थिति भी ऐसी ही है। प्रतीकों की राजनीति में वास्तविकता का क्या मोल भला? राष्ट्रवाद को ले कह सकते हैं-माथे चढावअ वाली स्थिति ही है। पटाखे और झिलमिलाती रौशनियों का बहिष्कार आज राष्टवाद का प्रतीक बन गया है। चीन से आने वाली सामग्रियों में इन चीजों का भला क्या औकात है? हम चीन से काफी पीछे हैं। उसकी मीडिया ने जब यह कह अकि भारत सिर्फ भौकता है तो कथित राष्टवाद की हिलोरें उफान मारने लगीं। इसमें गलत क्या है। लगता है राष्टवाद हकीकत से मुंह चुराने का बेहतर साधन या माध्यम बन गया है। वर्ष 2015-16 में अप्रैल से जनवरी की अवधि के दौरान भारत-चीन के बीच व्यापार घाटा 44.7 अरब डॉलर पर पहुंच गया। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस अवधि में भारत का चीन को निर्यात 7.56 अरब डॉलर और भारत का चीन से आयात 52.26 अरब डॉलर रहा। इसमें बेशकिमती मोबाइलें, घडियां, इलेक्ट्रोमिक उपकरण शामिल हैं, जिनके सामने झिलमिलाती रौशनी की चकाचौन्ध हो या शोर मचाते, रौशनी बिखेरते पटाखे। उनसे क्या फर्क पडता है। जिनकी औकात ही नहीं है।
दूसरी तरफ अंतर्विरोध भी गहरा है। हम चीन से मुकाबला नहीं कर सकते। उसके स्तर की सामग्री नहीं बना सकते। लेकिन उसकी सही किंतु कडवी बातों से चीढ जरुर सकते हैं। और चीढने से कुछ नहीं होता। मुकाबला करने की ताकत बटोरिए फिर राष्ट्रवाद की भट्ठी जलाइये।
अंत का अंतर्विरोध-
कुम्हारन बैठी रोड किनारे, लेकर दीये दो-चार।
जाने क्या होगा अबकी, करती मन में विचार॥
सोंच रही है अबकी बार, दुंगी सारे कर्ज उतार।

सजा रही है, सारे दीये करीने से बार-बार॥ 

4 comments:

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  2. आपका पोस्ट तर्कसंगत एवं सार्थक है। भूमण्डलीकरण एवं मुक्त वैश्विक बाजार व्यवस्था के इस दौर में हम अत्यंत उच्च गुणवत्ता युक्त सस्ती उपभोक्ता सामग्री का निर्माण कर ही चीन जैसे मेहनतकश और वित्तीय अनुशासित देश के साथ मुकाबला कर सकते हैं।

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  3. आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है आपको याद होगा 90 का दशक जब अमेरिका ने सुपर कंप्यूटर देने से मना कर दिया था तब भारत परम 10000 बनाकर दुनिया को चौका दिया था उसी का नतीजा है की आज भारत कंप्यूटर में एक सुपर पावर है । आपकी पोस्ट तर्कसंगत है लेकिन फर्क पङता है ।

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