Friday 17 April 2015

प्रेम को समग्रता में देखें, संकीर्णता में नहीं

उपेन्द्र कश्यप दाउदनगर(औरंगाबाद) आज वेलेंटाईन डे है। प्रेम-दिवस। मौका समाज के सबसे अहम भावनाओं की विभिन्न पहलुओं पर विचार करने का। जिस देश में पुरा पौराणिक आख्यान ही प्रेम से पगा हुआ है। चाहे पौराणिक पात्र हों, भगवान मान लिए गए पात्र हों, भक्तिकाल हो या रीति काल। ऐतिहासिक काल में भी स्त्री-प्रेम, देश प्रेम, सम्बन्ध-प्रेम, के किस्से भरे पडे हैं। अब तो जाती-प्रेम हावी हो गया है या दैहिक सम्बन्ध तक सिमट गए प्रेम के प्रतिफल में हथकडियों की कडक आवाज सुनाई पडती है। उस देश में इस मुद्दे पर चर्चा नैतिक नहीं माना जाता है। मगर यह टूट रहा है। भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कालेज के जिन चार युवक युवतियों से बात की गई उनके विचार में एक समानता है कि प्रेम को प्रेमी युगल तक नहीं समग्रता में देखा जाना चाहिए।
साहित्य से अलग समाज का रवैया-पूजा
बीएड कर रही भखरुआं की पूजा का कहना है कि भारतीय साहित्य और संस्कृति में प्रेम जिस रुप में उपस्थित है उससे अलग है समाज का रवैया। इस नजरिये में बदलाव लाना चाहिए। यह दिवस प्रेम का प्रतीक है। प्रेम सिर्फ युगल के बीच नहीं होता। किसी भी संबंध को जीवंतता प्रेम से ही प्राप्त होती है। इसे अभिव्यक्त गुलाब के फुल देकर या कोई भी गिफ्ट देकर किया जा सकता है।
वासना की दृष्टि से देखना गलत-रंजू देवी

तरारी की रंजू देवी बीपीएससी बीएड कालेज की छात्रा हैं। विवाहित हैं। कहा कि ढाई अक्षर के शब्द प्रेम का अर्थ कितना व्यापक है, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। मगर इसे वासना की दृष्टि से देखा जाता है। यह युवा पीढी के लिए घातक है। शिक्षा का अभाव मुख्य कारण है। नजरिया बदलना होगा। निरंतर आयोजन होना चाहिए जिससे यह धारण टूट सकती है कि यह दिवस सिर्फ कपल के लिए नहीं है। मां, पिता, भाई, बहन, किसी भी रिस्तेदार से, दोस्त से देश से प्रेम सबसे किया जाना चाहिए।
पवित्रता और मौलिकता हो-प्रवीण

महावर के प्रवीण कुमार का कहना है कि प्रेम वासना रहित होना चाहिए। इसमें फुहडता की जगह नहीं। इसमें शुद्धता, पवित्रता, मौलिकता, वैज्ञानिकता होना चाहिए। सकारात्मक आयोजन होने चाहिए। असामाजिक तत्व उसे गंदा न कर सकें, यह आवश्यक है। उद्देश्य सामाजिक सौहार्द होना चाहिए। जिससे प्रेम ऐ उसके साथ वेलेंटाइन डे मनाएं। दूसरे को तंग नहीं करना चाहिए।
प्रेम तो किसी से हो सकता है-विनिता कुमारी
शिक्षक बनने की ओर अग्रसर बीएड की छात्रा कलेर की विनिता कुमारी का मत है कि प्रेम किसी से किया जा सकता अहि। ईश्वर से, समाज से, गरीब से। हर वक्त प्रेम बांटना चाहिए। प्रेम को बान्ध कर नहीं रखा जा सकता।   



 कौन थे संत वेलेंटाइन ?
14 फरवरी 269 ई0 को रोम के तत्कालीन सम्राट क्लाडियस ने अपने क्रुर राजाज्ञा की खिलाफत करने के आरोप में संत वेलेनटाइन को फांसी पर चढा दिया था।अपने इस विश्वास के कारण कि स्त्री संसर्ग करने से व्यक्ति की शारीरिक शक्ति क्षीण होती है,इस सम्राट ने राज्य की सुरक्षा व्यवस्था में तैनात सैनिकों के विवाह को निषिद्ध कर दिया था।इसकी खिलाफत करते हुए पादरी वेलेंटाइन ने सैनिकों का विवाह उअनकी प्रेमिकाओं से कराते थे।बस यही अपराध सज़ा का कारण बना।
---------प्रेम पर चुनिन्दा विचार
*”प्रेम के लिए स्त्री के पास एक ही कारण होता है,पुरुष को बेवकुफ बनाने की चाहत।“* अनेक लडकियां ठगी न जांए,इसलिए प्रेम नहीं करती”।–द सेकेण्ड सेक्स में सिमोन द बोउवा।
*औरत जब प्यार करती है तभी औरत होती है।–नित्से
* औरत के जीवन में पहली बात होती है प्रेम-बाल्जाक
*प्रेम सबसे करो, भरोसा कुछ पर करो और नफरत किसी से न करो -ईसा मसीह
*पुरुषों का प्रेम आंखों से और महिलाओं का प्रेम कानों से शुरू होता है -अज्ञात
*किसी दुश्मन को पूरी तरह बर्बाद करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उससे प्रेम करना शुरू कर दो -अब्राहम लिंकन
*प्रेम सीधी-साधी गाय नहीं है, खूंखार शेर है, जो अपने शिकार पर किसी की आंख नहीं पड़ने देता - मुंशी प्रेमचंद
*प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है -महात्मा गांधी
प्यार की छुअन से हर कोई कवि बन जाता है -प्लेटो

अंधा बनाता है काम: प्रो. कामेश्वर
 प्रेम पर चर्चा बिना काम के पूर्ण नहीं होता। इस विषय का यह एक महत्वपूर्ण आयाम है। जब प्रेम में काम की भावना उद्वेलित करती है तब समस्या उत्पन्न होती है। दाउदनगर महाविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रो.डा. कामेश्वर शर्मा फ्रायड को उद्धृत करते हैं। जब हम कामकी नशा में आते हैं, तब हमें इसकी पूर्ति के सिवा कुछ दिखाई नहीं पड़ता। सेक्स, भूख और प्यास मौलिक जैविक (बायोलोजिकल) प्रेरणा हैं। इसमें सर्वाधिक बलवती सेक्स की प्रेरणा है। जब यह जागृत होता है तब इसकी पूर्ति या संतुष्टि के लिए व्यक्ति किसी भी प्रकार का मान्य रास्ता छोड़कर, उम्र, धर्म, जाति, सौंदर्य को भूलकर जघन्य से जघन्यतम कर्म करने को आतुर हो जाता है। मनोविज्ञान इसके लिए वजह मानता है। एकाकीपन को, समाज से हट कर सोचने को, सेक्स के समुद्र (नेट, दृष्ट, चित्र) में डुबकी लगाने को। मनोविज्ञान में इन विषयों पर लंबी व्याख्या हो सकती है।



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