Sunday 26 April 2015

दुखों के बीच युवाओं ने की गैर जिम्मेदारी

जब धरती डोली और चांद उल्टा दिखने लगा
युवा अपना सामाजिक दायित्व भूलकर मजा लेने लगा
(पूरी युवा पीढि नहीं लेकिन युवा ही जिम्मेदार)

0-----------------उपेन्द्र कश्यप-----------------0
  • हम हमेशा दुखी रहते हैं। कभी भौतिक तो कभी मानसिक कारणों से। पीडा अधिक मानसिक दुख पहुंचाता है। 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में भयानक भूकंप आया और फिर दूसरे दिन 26.4 को भी। धरती जितनी अधिक डोली उससे अधिक हमारा हृदय कांपा। मन विचलित हो गया। हर समय डर बना रहा दिल के किसी कोने में। हम क्या कर सकते हैं भला? त्रासदी की इस घडी में जब हम कुछ नहीं कर सकते तो सोचिये नकारात्मक रवैया क्यों अख्तियार करती है युवा पीढि। जी हां! इस त्रासदी की घडी में युवा अधिक जिम्मेदार है जो इस आधुनिक युग में टेक्नोफ्रेड है। सोते, जागते बस फेसबुक और ह्वाट्सएप के साथ ही जीने वाली पीढि सामाजिक जिम्मेदारियों से खुद को मुक्त कर चुका है। वह मदद नहीं करेगा, किंतु दोषारोपण अवश्य करेगा। मजा लेगा, दुख में जब लोग छटपटा रहे होते हैं तो मदद को हाथ न बढाने वाले युवा सोशल नेटवर्क पर की बोर्ड चला रही होती है उनकी उंगलियां। बिना कुछ सोचे-समझे ही बस कुछ भी टाइप करो और जनहित का बता कर जारी कर दो। ग्लोबल बन चुकी दुनिया अब मात्र एक मुट्ठी में कैद हो गई है, ऐसे में ऐसी कोई एक शब्द, पंक्ति भी तुरंत सेकेंडों में ग्लोबल हो जाती है। कभी छत्तीसगढ मौसम विभाग के हवाले तो कभी नासा के हवाले अफवाह फैलाने वाले युवाओं को क्या सामाजिक दायित्व और मानवीय पहलु की जानकारी नहीं है? भूकंप आने की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, विज्ञान जितना भी आगे बढ गया हो प्रकृति के इस रहस्य को पहले नहीं जान पाता है। फिर युवा क्यों अफवाह फैला रहे हैं। निश्चित तौर पर यह अफवाह बुजुर्ग तो नहीं ही फैला सकते। चांद उल्टा दिखने की अफवाह भी युवा पीढि ने ही फैलाया। पूरी आबादी चांद को देख कर भी उल्टा समझने लगी। आदमी जब संकट में होता है, भयाक्रांत होता है तो सबसे पहले उसके सोचने की शक्ति नष्ट हो जाती है। तर्क शक्ति और विवेक मर जाता है। इसका उदाहरण मैंने देखा कि एक बीपीएससी अधिकारी जिसपर अफवाह फैलाने वाले के खिलाफ कारर्वाई की जिम्मेदारी थी उन्होंने भी भूकंप कब कब आयेगा की घोषणा वाला मैसेज ह्वाट्सएप पर फारवर्ड करते रहे। जिसका शिकार मैं भी बन गया। जब अफरा तफरी मची हुई हो तो ऐसे में व्यक्ति या समूह का सामूहिक मानसिक शोषण करने वाला युवा पीढि क्या खुद को शर्मसार महसूस करती है? वह पश्चाताप करेगी? क्या आगे त्रासदी के समय अफवाह न फैलाने का संकल्प लेगी? अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो बेकार है जीना। ऐसी जिन्दगी का क्या मतलब जब हम किसी दुख और समस्याग्रस्त व्यक्ति, समूह या समाज की मदद न कर सकें और मजा लें। हद हो गई, अब तो संभलो युवा पीढि। क्यों अपने क्षणिक सुख के लिए दूसरे के संकट का मजाक उडाते हो।  


कुछ अकाट्य सत्य-----
भूकंप की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। विज्ञान उस उंचाई तक अभे नहीं पहुंचा है।

चांद तभी उल्टा दिखेगा जब धरती उल्टी दिशा में घुमने लगे। ऐसा हो ही नहीं सकता और जिस दिन ऐसा हो गया हम आप जिन्दा नहीं रहेंगे। चांद उल्टा दिखने का सच क्या है? आपको बताते हैं। शिव की प्रतिमा में उनके जटा पर लगा चांद देखिए, कुछ समझ में आ जायेगा। 26.4.15 को अष्ठमी था। इस कारण चांद आधा उगा हुआ है। यह चान्द पश्छिम दिशा में ठीक बारह बजे अस्त हुआ। तब तक इसक आकार बढता गया। 

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