Friday 17 April 2015

राज्य स्तर पर निकायों में बहाली घोटाला
नगर निकायों में की गई है अवैध बहाली
करोणों का खेल होने की आशंका
अधिनियम विरुद्ध बहाली और निकायों से ग्यारह महीने का मानदेय एक मुस्त ले लेने की व्यवस्था राज्य स्तर पर की गई है। जब कि नगर निकायों से यह अधिकार छिनने का आधिकार सिर्फ विधन मंडल को है। बिना कानून बदले या बनाए या अधिसूचना लाए ही निकायों के अधिकार को परदे के पीछे से छिन लेने का खेल नगर विकास एवं आवास विभाग खेल रहा है। यह पूरा प्रकरण एक पत्र में दर्ज है। यह पत्र मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को गत 15 दिसंबर को बिहार शहरी स्थानीय निकाय राज्य परिषद के संयोजक चन्द्रमोहन प्रसाद ने दिया है। इसमें कहा गया है कि नगर विकास विभाग के पदाधिकारियों द्वारा बहुत बडे घोताले को अंजाम दिया जा रहा है। राज्य से बाहर के प्राइवेट पार्टी से सांठ गांठ कर हजारों कर्मियों की अवैध नियुक्ति की जा रही है। पार्टी (एनजीओ) द्वारा भेजे गए व्यक्तियों को योगदान स्वीकृत कराने हेतू आयुक्त या कार्यपालक पर दबाव बनाया जा रहा है। हद यह कि इन कर्मियों के संभावित वेतन की वार्षिक राशि सेवाकर के साथ डिमांड ड्राफ्ट बनाकर विभागीय बैठक में लाने को निदेशित किया जा रहा है। धमकाया जा रहा है और कार्यपालक या आयुक्त से नाजायज कराया जा रहा है। यह पत्र जागरण के पास उपलब्ध है। महत्वपूर्ण तथ्य है कि बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007 की धारा 37 (10) के अन्तर्गत संविदा पर कर्मचारियों की नियुक्ति तथा 38 (ख) के अंतर्गत श्रेणी ‘ग’ एवं ‘घ’ के कर्मचारियों की नियुक्ति हेतू नगरपालिकाओं को ‘नियुक्ति प्राधिकार’ घोषित किया गया है। यह अधिनियम बिहार विधान मंडल द्वारा पारित है। इसे छिनने का अधिकार भी सिर्फ उसे ही है। मुख्यमंत्री को बताया गया है कि नगर विकास विभाग के पदाधिकारियों ने अधिनियम में प्रदत अधिकार को एक अवैध पत्र निर्गत कर छीन लिया है। जो निहायत आपत्तिजनक है। परिषद ने सभी निकायों से अपील किया है कि इस तरह से थोपे गए व्यक्ति को न तो योगदान करने दें न ही डिमान्ड ड्राफ्ट बनाने की सहमति ही दें। अपने अधिकार की रक्षा स्वयं करें। ऐसे में इस तरह बहाल हुए व्यक्तियों का भविष्य अन्धकार मय दिखता है।



  


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