Friday 17 April 2015

सोच यह कि देश मेरा है और सरकार मेरे लिए
स्वत: कटता है टैक्स, वह भी 40 फिसदी
पश्चिम का मुकाबला बहुत मुश्किल
80 साल हैं हम पीछे, गति कमजोर
पश्चिम ताक रहा भारत के अध्यात्म की ओर
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) आज प्रवासी भारतीय दिवस है। दो युवाओं से जागरण ने यह जानना चाहा कि भारत क्यों विकासशील से विकसित देश नहीं बन पा रहा है? इसकी वजह क्या है?
आस्ट्रियन इंस्टीच्युट  आफ टेक्नोलौजी और नानयांग टेक्निकल यूनिवरसिटी सिंगापुर से संयुक्त रुप से वियना में रह कर पीएचडी कर रहे नित्यानंद शर्मा ने कहा कि पश्चिमी देश आगे हैं क्योंकि उनमें काम की प्रबल भावना है। सरकार की विकास परक नीतियां हैं। शिक्षा के माध्यम से यह भाव पैदा किया जाता है कि हमें देश के लिए परिश्रम करना चाहिए। प्रशासनिक ढांचे को जनता की सेवा के लिए है। लोग समझते हैं की देश मेरा है और सरकार मेरे लिए है। सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग नहीं करते। शमशेरनगर के अनिल कुमार के पुत्र और विवेकानंद मिशन स्कूल के छात्र रहे नित्यानन्द ने कहा कि भारत भी विकास के मार्ग पर चला है परन्तु अभी काफी दूर जाना होगा। भारतीय दूसरे देशों में जाकर अपनी बुद्धिमत्ता का डंका बजाए हुए हैं। मंगलयान का सफल प्रक्षेपण भारतीय बुद्धि और तकनीक का ज्वलंत उदाहरण है। अंधाधुंध बाजारीकरण के दुष्प्रभाव से पश्चिमी देशों में सामाजिक ह्रास हुआ है। पुरा पश्चिम आज भारत की आध्यात्मिक संस्कृति को जानना चाहता है। हमें आज जरूरत है की अपने आध्यात्मिक धरोहर के साथ औद्योगिक विकास करने का। लंदन से इंटरनेशनल बिजनेश मैनेजमेंट करने के बाद पारिवारिक कारण से यहां प्रसाद मेडिकल स्टोर चला रहे अशोक कुमार के बेटे एवं विवेकानंद मिशन स्कूल के छात्र रहे हेमंत कुमार ने कहा कि पश्चिम बीस साल बाद की सोच कर योजना बनाता है ताकि कोई घटना न घटे, सडकों पर जाम नहीं लगता। वहीं भारत घटना के बाद सोचता है। कहा कि हर महीने अंतिम तारीख को व्यक्ति के खाते से टैक्स का पैसा कट जाता है। वह भी न्यूनतम 22 और अधिकतम 40 प्रतिशत की दर से। कहा कि अधिकतम ढाई मिनट के काल पर पुलिस आपके दरवाजे पर पहुंच जाती है। जबकि कहीं आपको खडी नही6 दिखेगी। बताया कि सोच का फर्क है। आप एक तरफ इस्तेमाल किया हुआ कागज पर कोई भी आवेदन दे सकते हैं। भारत में अधिकारी इसे स्वीकर नहीं करते और समाज हीन भावना से देखता है। जब कि ऐसा ही कर लाखों वृक्ष बचा लेते हैं और पर्यावरण भी। कचडा कहीं नहीं दिखता। कोई कायदा कानून नहीं तोडता। दसवीं के बाद अगर कोई पढना नहीं चहता तो उसे नौकरी करनी होगी। क्यों कि पिता माता को पैसे देने होते हैं। इसलिए नहीं कि उनका खर्च चलाना है इसलिए कि इससे लडका कमाएगा तो व्यस्त रहेगा। सकारात्मक सोचेगा। बताया कि वहीं का संस्कार है कि प्लास्टिक इसतेमल नहीं करता। कागज को दोनों तरफ इस्तेमाल करता हूं।

अब सवाल है कि क्या हम ऐसा करते हैं? नहीं तो फिर पश्चिम से तुलना क्यों करते हैं? हेमंत ने कहा हम 80 साल पीछे हैं और जब जितना आगे बढेंगे वह भी अपनी रफ्तार से आगे बढेगा। बहुत फासला है। लेकिन उस स्तर तक पहुंचने के लिए हमें दृढ निश्चयी होना होगा। जाति और धर्म से उपर उठकर योजनाएं और नीतियां बनानी होगी। वोत बैंक और सांप्रदायिकता-धर्मनिरपेक्षता से उपर उठकर।  

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