Friday 17 April 2015

..जब गान्धी की हत्या की सुचना के लिए जगे रात भर
फोटो-12दडीएन आर02 रेडियो सुनते अयुब अंसारी
विश्व रेडियो दिवस पर विशेष रिपोर्ट
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66 साल से रेडियो सुन रहे अयुब अंसारी
10 साल पूर्व तक समाचार के लिए सिर्फ रेडियो
कई कार्यक्रम हैं अब भी लोकप्रिय
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर(औरंगाबाद) आज समाचार के कई माध्यम हैं। अखबार, रेडियो, टीवी, इंटरनेट। लेकिन पिछले दशक तक रेडियो ही गांव से शहर तक इसका माध्यम हुआ करता था। आज रेडियो शहर में भले ही कम दिखता हो लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में इसकी आवाज ही सुचना से लेकर मनोरंजन तक का माध्यम है। खेल,कृषि,राजनीति,अपराध,मौसम,शिक्षा के सम्बन्ध में तमाम जानकारी रेडियो से ही मिलती थी। एक बार फिर ‘मन की बात’ के जरिये प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में रेडियों का बाजार और महत्व दोनों बढा दिया है। 80 वर्षीय अयुब अंसारी को वह दिन याद है जब महात्मा गान्धी की हत्या की सुचना रेडियो पर मिली थी।लोग दिन भर रेडियो पर चिपके रहे।हत्यारे के बारे में जानकारी के लिए लोग रात भर जगे रहे।ऐसे ही कई अवसर पिछले 66 साल में आए।इन्होंने बताया कि तब इस शहर में काफी कम रेडियो थे। खास मुहल्ले में इनके अलावा डा0काशीनाथ पुष्टी के पास ही रेडियो था।लोग प्रादेशिक समाचार सुनने के लिए सुबह –शाम जुटते थे।लोगों में हर बडी घटना और राजनीतिक फैसले की सुचना के बाद विस्तार से जानने  की उत्सुकता रहती थी,इकट्ठा होते थे।प्रादेशिक समाचार ,चौपाल,बीबीसी,क्रिकेट कमेंट्री सुनने को लोग जुटते थे।इन्होंने बताया कि प्रथम लोकसभा चुनाव(1952) के वक्त अखबार शहर में बिकना शुरु हुआ था,लेकिन तब भी रेडियो से अधिक वह लोकप्रिय नहीं हो सका था।दो दशक पूर्व टीवी भी घर-घर पहुंचा तो चित्र-आवाज़ एक साथ होने के कारण आकर्षक लगा।इसके ग्लैमर के कारण रेडियो की लोकप्रियता घटी,लेकिन अब भी कई कार्यक्रमों के लिए रेडियो ही बेहतर है।रेडियो की सबसे बडी खासियत है कि इसका आनन्द लेते हुए भी हर कार्य  सहजता से किया जा सकता है क्यों कि आंखें काम पर लगाना आसान होती है ,जबकि टीवी के साथ यह सहजता सम्भव नहीं।रेडियो ने क्रिकेट,फुटबाल,,राजनीति को घर-घर पहुंचाया है।
रेडियो से जुडी जानकारी
कब से रेडियो दिवस
सन्युक्त राष्ट्र संघ (यूनेस्को) ने सन् 2011 में ही विश्व-स्तर पर रेडियो दिवस मनाने का निर्णय लिया। 13 फ़रवरी का दिन 'विश्व रेडियो दिवस' के रूप में इसलिए चुना गया क्योंकि 13 फ़रवरी सन् 1946 से ही रेडियो यू०एन०ओ० यानी संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अपने रेडियो प्रसारण की शुरुआत की गई थी। रेडियो दुनिया का सबसे सुलभ मीडिया है। दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर रेडियो सुना जा सकता है। अनपढ़ लोग भी, वे लोग भी, जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते रेडियो सुनकर सारी जानकारियाँ पा जाते हैं। आपातकालीन परिस्थितियों में रेडियो सम्पर्क-साधन की भूमिका भी निभाता है और लोगों को सावधान और सतर्क करता है। कोई भी प्राकृतिक दुर्घटना होने पर बचाव-कार्यों के दौरान भी रेडियो बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यूनेस्को ने रेडियो के उस महत्त्व को रेखांकित करने के लिए 'विश्व रेडियो दिवस' मनाना शुरु किया है, जो पिछले सौ सालों से वह मानवजाति के हित में करता रहा है।
यूनेस्को के संचार और सूचना विभाग की प्रमुख मीर्ता लॉरेन्सो के अनुसार दुनिया के 95 प्रतिशत निवासी आज भी रेडियो सुनते हैं।
रेडियो कब से ?
24 दिसंबर 1906 की शाम कनाडाई रोगिनाल्द फेसेंडेन ने जब अपना वॉयलिन बजाया और अटलांटिक महासागर में तैर रहे तमाम जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने उस संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुना, वह दुनिया में रेडियो प्रसारण की शुरुआत थी।
सबसे पहले जगदीश चन्द्र बसु ने भारत में तथा गुल्येल्मो मार्कोनी ने सन 1900 में इंग्लैंड से अमेरिका बेतार संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियों रेडियो संदेश भेजने की शुरुआत कर दी थी।


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