Monday 20 April 2015

कई पुस्तकों के लेखक थे अनीसे बेकशां




साहित्य के अलावा हिकमत पर भी लिखी थी किताबें
मनाया जा रहा है 72 वां उर्स मुबारक
दाउदनगर (औरंगाबाद) के पुरानी शहर में खानकाह आलिया कादरिया अब्दालिया के तत्वावधान में हजरत सैय्यद शाह अनीस अहमद कादरी का 72 वां उर्स मनाया जा रहा है। उनको अनीसे बेकशां के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं। इनके वंशज सबा कादरी ने बताया कि फारसी और उर्दू में हेयात सैयदना, अजकारे तैयबा, अनीसुलकलुब, कलाम ए रब्बानी, सफीन-ए-हयात, कशकोल, दिवाने अनीस नाम से किताबें लिखी हैं। इसके अलावा हिकमत यानी आयूर्वेद पर भी किताब लिखी। कई नुस्खे इजाद किया जिसे लाहौर के रिसाले अलहकीम एवं अल अतबा में प्रकाशित हुए हैं। पटना हाई कोर्ट के सेवानिवृत जज एवं बीपीएससी के सदस्य रहे सैयद बहाउद्दीन ने अपनी किताब गुलस्ताने हजार रंग में भी अनीस के शेर शामिल किए थे। जिस पर शिक्षा मंत्री अब्दुल कलाम आजाद ने प्रशंसा किया था। सबा ने बताया कि 847 हिजरी में सैयदना अमझरी बगदाद से भारत आये। ये सूफी संत थे। सिलसिला कादरिया का प्रचार भी किया। इनके खानदान में ही हिजरी 1300 में चार रज्जब को अनीस अहमद कादरी का जन्म हुआ। बडे होने पर अपने पिता और चाचा से तथा अमझर शरीफ में मदरसा कादरिया में सैयद शाह इसा कादरी से शिक्षा ग्रहण किया। हिकमत की शिक्षा दिल्ली जाकर हकीम अजमल खान से ली। शिक्षा पुरी करने के बाद खनकाह आए और तत्कालीन सज्जादानशीं गुलाम नजफ कादरी से मुरीद होकर खलिफा बन गए। नजफ कादरी के निधन के बाद खुद अनीस कादरी खनकाह के सज्जादानशीं हो गए। पुरी जिम्मेदारी से इस कार्य को निभाया। अपनी हिकमतगीरी से जनता को फायदा पहुंचाया। 63 साल की उम्र में चार रज्जब हिजरी 1364 को उनका इंतकाल हो गया। इस खानकाह के सज्जादानशीं  सज्जाद अहमद कादरी लोगों को अध्यात्मिक शिक्षा दे रहे हैं। मकसद है लोगों तक इंसानियत का पैगाम पहुंचाना। जहां तक और जब तक पहुंचे।

सीएम भी नवा गये हैं अपना शीष
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मुख्यमंत्री रहते जीतन राम मांझी इसी साल 29 जनवरी को आस्ताना पर जाकर अनीसे बेकशां के मजार पर अपना शीष नवा गये हैं। उन्होंने सूफी संत सैयद शाह अनीस अहमद कादरी के मजार पर चदरपोशी की और आशीर्वाद मांगा था। आस्ताना  कादरिया अबदालिया सुलेमानिया में उन्होंने चादर पोशी करते वक्त दुआ की कि उन्हें इतनी शक्ति मिले कि वे सभी का एक समान तरक्की कर सकें। बिना किसी भेद भाव का। भाईचारगी के लिए दुआ की। बिहार में अमन और शांति बनी रहे इसकी कामना की। सैयद वलीउल्लाह कादरी ने चादरपोशी कराया था। इसके पहले सबा कादरी ने उनको इस्लामिक रिवाज के हिसाब से पगडी बंधाया था। तब शहर में मुख्यमंत्री के इस कार्यक्रम की काफी चर्चा हुई, और मजार को भी राज्य स्तर पर ख्याति मिली। खानकाह के गद्दीनशीं सैयद शाह सज्जाद अहमद कादरी से उनके खानकाह जा कर उनसे मुलाकात की। मुख्यमंत्री के इस आगमन का चाहे जितना राजनीतिक कारण हो मगर इससे आस्ताने को शोहरत तो मिली ही। (21.4.15)

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