Friday 17 April 2015

दाउदनगर के निर्माण थी रामनरेश सिंह की भुमिका

फोटो रामनरेश सिंह की
रामनरेश की जयंती पर विशेष
कई बार गए ज़ेल,लगा था आर्थिक दण्ड भी

दाउदनगर अनुमण्डल के गोह प्रखण्ड में बुधई ग्राम में 11 फरवरी, 1912 को जन्मे राम नरेश सिंह ने न सिर्फ आजादी की लड़ाई में अपने आंचलिक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया बल्कि आजादी के बाद भी अपनी कर्मभूमि दाउदनगर के नवनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1952 के पहले आम चुनाव में ये सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से चुन लिए गए। इन्हीं के प्रयास से दाउदनगर-गया और दाउदनगर-पटना सड़क के पक्कीकरण का काम 1957 में शुरू हो सका। दाउदनगर राश्ट्रीय उच्च विद्यालय तथा राश्ट्रीय मध्य विद्यालयकी स्थापना कराकर इन्होंने क्षेत्र में शिक्षा के विकास पर पूरा ध्यान दिया।  1967 में पुनः दाउदनगर से ही प्रजा सोषलिस्ट पार्टी के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए,और महामाया बाबू के मुख्यमंत्रित्व काल में स्वास्थ्य राज्यमंत्री बने। दाउदनगर मेन रोड स्थित नगरपालिका मार्केट में वे रहा करते थे और यहीं इनका कार्यालय भी रहा। 23 फरवरी 1978 को लम्बी बीमारी के कारण इस महान क्षत्रप का निधन पी. एम.सी.एच. में हो गया। स्वतंत्रता संग्राम में तथा दाउदनगर के नव-निर्माण में इनका योगदान अविस्मरणीय है।प्राथमिक शिक्षा गोह और माध्यमिक शिक्षा राजकीय हाई स्कूल, टेकारी से प्राप्त किया। उतकर्ष-2011 के अनुसार 1930 में नमक आंदोलन में इन्हें गिरफ्तार करके 4 महीने की सजा दी गई। यह उनके स्वतंत्रता-संघर्ष में जेल जाने की शुरूआत थी। गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद तत्कालीन गवर्नर विलिंगटन ने गाँधी-इरविन समझौते को तोड़ना शुरू किया और विरोध करने पर क्रुरता-पूर्वक दमन करना शुरू कर दिया। इस दमन के विरोध में राम नरेश बाबू भी गिरफ्तार हुए और 1934 में फुलवारी शरीफ जेल में रखे गए।बाबू बद्री सिंह को सहयोग करते हुए इन्होंने दाउदनगर में नहर किनारे स्थित चैरम ग्राम में एक आश्रम की स्थापना 1936 में की।1942 में इनके क्रांतिकारी भाषण से प्रभावित उग्र भीड़ गोरी सरकार के खिलाफ नारे लगाती हुई स्थानीय गर्ल्स स्कूल के निकट आबकारी गोदाम पर हमला कर दिया और इसी के पीछे अवस्थित शिफ्टन उच्च विद्यालय (अब अषोक उच्च विद्यालय) में तोड़-फोड़ की। ओबरा पोस्ट आफिस जला दिया गया, हिंसक घटनाओं को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने इस क्षेत्र के इस अगुआ पर 5000 रू0 का इनाम रख दिया। वे गिरफ्तार कर लिए गए लेकिन जल्द ही अंग्रेज पदाधिकारी मिस्टर आईक की गलती का फायदा उठाते हुए जेल से भाग निकले और आंदोलनकारियों को गुप्त रूप से नेतृत्व प्रदान करते रहे। 1943 में इन्हे आल इण्डिया डिफेन्स एक्ट नजरबंदी कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और गया के सेंट्रल जेल में 14 नं0 सेल में रखे गए। जेल में रहते हुए इन्होनें कई महापुरूषों की जीवनियां पढ़ीं और अपनी अधूरी पड़ी शिक्षा को पूरा किया। जेल से भागने के जुर्म में तथा गुप्त रूप से नेतृत्व प्रदान करने के कारण इस बार इनपर कई मुकदमे लाद दिए गए थे। फल यह हुआ कि आजादी के बाद ही ये जेल से रिहा हो सके। 

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