Tuesday 1 April 2014

साझा संस्कृति के जीवनधारा बडुए सोन


साझा संस्कृति के जीवनधारा बडुए सोन               
 ब्रह्मपुत्र की तरह सोन-नद भी है पुलिंग
स्वर्णकर्ण के बहाव के कारण हिरण्यवाह भी कहा गया
सोनजल में पाये जाने वाले शिलाखण्ड गणेश के प्रतिरूप

फोटो -दो ट्रेनों से संस्कृतियों के मिलन का विहंगम दृष्य----
उपेंद्र कश्यप
   सोन के सीने पर बिहार में 6 ठा पुल बनाने का काम राज्य के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार प्रारम्भ करेंगे।सोन जो न जाने कितने हजार वर्षो से निरंतर प्रवाहित हो रहा हैं । हमारी मगही-भोजपुरी की साझा संस्कृति में अभिन्न रूप से शामिल है।अब दो संस्कृतियों को अपने हृदय पर मिलने –मिलाने का भी काम करेगा।अपने मैदानी इलाके में बसी आबादी के लिए ये जीवनधारा के समान हैं । नदियों के बिना जीवन की कल्पना आसान नहीं । हमारे स्वस्थ जीवन के लिए भी ये जरूरी है, फिर भोजन तो अपने इलाके में इन्हीं के रहमोकरम पर मिलती है।
      सोन का प्राचीन नाम शोण या शोणभद्र है । उतकर्ष-2007 के अनुसार नवीं सदी के संस्कृत साहित्यकार राजशेखर ने गंगा आदि को नदी की संज्ञा दी है; लेकिन ब्रह्मपुत्र की तरह सोन को नद ही कहा है- ‘शोणलौहित्योनदौ। सोन को हिरण्यवाह या हिरण्यवाहु भी कहते हैं - ‘शोणो हिरण्यवाहः स्यात्। इसकी शोभा का बखान करते हुए सांतवीं सदी के महान साहित्यकार, शोण तटवासी बाणभट्ट कहते हैं- ‘वरूण के हार जैसा चन्द्रपर्वत से झरते हुए अमृतनिर्झर की तरह, बिंध्य पर्वत से बहते हुए चन्द्रकान्तमणि के समान, दण्डकारण्य के कर्पूर वृक्ष से बहते हुए कर्पूरी प्रवाह की भाँति, दिशाओं के लावण्य रसवाले सोते के सदृष, आकाश-लक्ष्मी के षयन के लिए गढ़े हुए स्फटिक शिलपट्ट की नाई, स्वच्छ षिविर और स्वादिष्ट जल से पूर्ण भगवान पितामह ब्रह्मा की संतान हिरण्याह महानद को लोग शोण भी कहते हैं ।
      हिरण्यवाह हो या हिरण्यवाहु दोनों नाम यही संकेत करते हैं कि सोन में सोने के कण प्रचुर मात्रा में मिलते हैं । सोन में सुवर्णकणों का पाया जाना असम्भव कल्पना नहीं है । सरगुजा से सोने का कण पाये जाने का समाचार समय-समय पर मिलते रहें हैं । सोन नामक एकाधिक अन्य नदी-नाले मध्यप्रदेश में हैं ही सुवर्णरेखा (छोटानागपुर) में भी सुवर्ण कण पाये जाते रहे हैं । अबुल-फजल ने आईन--अकबरीमें मैदानी सोन में सुवर्ण-मंडित पत्थरों(शालिग्राम) के पाये जाने की बात स्वीकार की है । जिस प्रकार नर्मदा की जलधारा में मिलने वाले पत्थर नर्मदेश्वर शिव के रूप में पूजे जाते हैं और गणडक-जल के पत्थर शालिग्राम(विष्णु) के रूप में, उसी प्रकार सोनजल में पाये जाने वाले शिलाखण्ड गणेश के प्रतिरूप माने गये हैं ।
                         कहां-कहां हैं बिहार में पुल
1-डेहरी-इन्द्रपुरी बराज 2-डेहरी-बारुन एनएच-02 पर 3-डेहरी-बारुण रेलवे पुल 4-अरवल-सहार पुल एवं-5-कोईलवर रेल-सडक दोहरा पुल। 6 ठा बनने वाला है-दाउदनगर-नासरीगंज पुल।
 सोन के प्रसिद्ध हुल्लड(बाढ)—
--उन्नीसवीं-बीसवीं सदियों की भंयकर सोन-बाढ़ों में 1848, 1869, 1884, 1888, 1901 और 1923 की बाढ मसहूर है। सोन के बाढ़ का पानी सोन में केवल उपर से ही नहीं आता, नीचे बालू के अंदर से भी उपर बहना शुरू कर देता है । स्पष्ट ही नीचे का यह जल भी बाढ़ का ही रहता है, जो उपर बहाव के साथ-साथ नीचे-नीचे चलता आता है। फिर उपर बहाव की ओर से बालू का उपर का जल हहास बाँधता हुआ, हुल्लड़ मचाता हुआ आता है, जैसे पानी की दीवार बढ़ती आ रही हो आवाज करती हुई और देखते-देख्ते सोन का तीन-चार किमी का पुरा पाट दोनों किनारों तक पानी से लबालब भर जाता है । इस बाढ़ को हुल्लड़ के नाम से जाना जाता है । डिहरी के नीचे इंद्रपुरी बराज बनने के पहले मैदानी इलाको में यह हुल्लड़ और भी उत्पात मचाता था । उन दिनों किसी तरह की स्पष्ट आवाज सुने बिना ही डिहरी, नासरीगंज, दाऊदनगर, अरवल आदि इलाकों के मल्लाहों को इस बात का आभास हो जाता था, कि हुल्लड़ आ रहा है ।



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