Thursday 10 April 2014

जाति का खोल टूटेगा, परिणाम प्रभावित होगा


                  जाति का खोल टूटेगा, परिणाम प्रभावित होगा
                 
                   मुद्दे नहीं जातीय खांचे पर केंद्रित है चुनाव

उपेन्द्र कश्यप,
 लोकतंत्र के इस महापर्व का काराकाट क्षेत्र के लिए आज का दिन अंतिम है। अब एक महीने पांच दिन अटकलें लगेंगी और 16 मई को हमारे मतदान का प्रतिदान घोषित होगा। यह मौका है अपने पसंद की व्यवस्था बनाने का। अपने मन का सांसद चुनने का। इसलिए मतदान जरुर करें अपने लिए रास्ता आसान बनाएं। जबतक जाति का खोल नहीं टूटेगा व्यवस्था नहीं सुधरेगी। मुद्दे तो रहे ही नहीं। लहर है, मतों का ध्रुवीकरण है, जातीय विभाजन है, क्षेत्रवाद है, जातिवाद है, राष्ट्रवाद है, नेतृत्व देखने की बात है, प्रत्याशी स्वीकारने और नकारने की बात है, मतों में फिसलन है, मतभिन्नता है, मतदाताओं में उत्साह है, जज्बा है। भाई बहुत कुछ है, नहीं है तो विकास का मुद्दा। यह चुनाव विचित्र है। प्रमुख दलों का मतदाता पेशोपेश में है। किसी को प्रत्याशी मंजूर नहीं, किसी को दल पसंद नहीं। कोई विरोध में है और बात नेतृत्व के लिए समर्थन की कर रहा है। जातीय विभाजन तीखा है। खांचे में बांट दिए गए हैं लोग। सबको पता है या अनुमान पक्का है कि फलां जाति का मुझे वोट नहीं करेगा तो फिर उसे प्रभावित करने पर उर्जा खर्चने का क्या लाभ? ऐसे तबकों की संख्या काफी है जो किसी द्वारा नहीं पुछे जाने से नाराज है, लेकिन वोट देना है, भले वह किसी को वोट देने के लिए प्रेरित नहीं करेगा। एक दलीय निष्ठा वाले कार्यकर्ता ने कहा भी कि किसी के कहने से कोई वोट न बनेगा न बिगडेगा। इसका जबाब भाई लोगों को परिणाम आने के बाद मिलेगा। यह सच भी दिखता है कि लोग जातीय खांचें में बैठ या बैठाए गए हैं और इससे बाहर निकलने की उम्मीद बेमानी सी है, लेकिन एक बडा तबका ऐसा भी है जो देश के लिए सोचता है, विकास देखता है, नेतृत्व की क्षमता देखता है। वह परखने का प्रयास करता है, जो जंचता है उसे मत देता है। वह जातीय खांचे से निकलना चाहता है। और ऐसे ही मतदाता परिणाम को बहुत हद तक प्रभावित करते हैं। जो तबका वोट देने से परहेज करता है क्या वे अपने संग परिवार को भी ले जाएंगे? महिला को घर से निकल कर मतदान केंदर तक जो नहीं ले जा सकती, ऐसा करना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। वास्तव में वे ढोंगी हैं। नेता को व्यवस्था को गलियाते हैं और जब वोट देने की बात आती है तो बोलते हैं- कोई नृप होइ हमें का हानी। हानी तो है-समर्थवानों को दिखता नहीं क्योंकि वे आडंबर का चोला पहने रहते हैं।

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