Sunday 27 April 2014

पीटते रहे इमानदारी का डंका और उघडता रहा नकाब


                              फोटो सावधान इंडिया पर प्रसारित फुटेज
सिर्फ छवि गढने की करते रहे कोशिश
                              हमेशा लिया मीडिया और झुठ का सहारा
उपेन्द्र कश्यप
सोमप्रकाश सिंह हमेशा अपनी इमानदारी का डंका पीटते रहे। लोगों को अपना पर्स दिखा खुद के गरीब होने की बात बताते। जब नामांकन में हलफनामा दिया तो असलियत सामने आई कि जनाब करोडपति हैं। छवि और चन्दे की वसूली पर फर्क पडने लगा तो मीडिया को आरोपित करने लगे। जबकि अपनी छवि चमकाने के लिए मीडिया का खूब बेजा इस्तेमाल किया। जिसका उदाहरण है लाइफ ओके चैनल पर चला सावधान इंडिया के तहत इनपर प्रसारित कार्यक्रम। यह कोशिश सिर्फ इसलिए ताकि इमानदार और जनहितैषी के साथ सतत संघर्षशील व्यक्ति की छवि गढी जा सके। इसमें सिर्फ झुठ गढे गए किस्से ही दिखाए गए।
लाइफ ओके पर सावधान इंडिया में 23 एवं 24 जनवरी 2013 को संतोष बादल के निर्देशन में बना एक एपीसोड प्रसारित हुआ था। उसके अंत में खुद सोम ने दिखाई गई तमाम घटनाओं को अपना भुक्त-सच बताया, साथ ही लोगों से अपील की कि –‘आप लडें,संघर्ष करें। अगर कोई व्यक्ति अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करता हो तो उसका डटकर मुकाबला करें। सच्ची घटनाओं पर आधारित एपीसोड में कितनी सच्चाई होती है यह इससे दुनिया को पता चला। इस में जान बुझ कर झुठ गढा गया ताकि अपनी छवि और बेहतर बनाई जा सके। सावधान इंडिया में दिखाए गए किस्से पर जब इस संवाददाता ने सवाल किया तो कभी जवाब नहीं दिया, बस टालमटोल। दरअसल में जब जवाब नहीं जुटता है तो वे वर्जन नहीं देते हैं।

स्वाल जिनका जवाब सोम नहीं देते हैं
सन्दर्भ- सावधान इंडिया का एपीसोड
सिर्फ झुठ दिखाने का क्या था मकसद
 सावधान इंडिया में जो दिखाया गया उसे देखने वाले और सोमप्रकाश को जानने वाले विशेषत: ओबरा थानेदारी कार्यकाल को सकते में पड गये थे। सिर्फ सवाल उठते और इमानदारी का दावा करने वालों से उनका भरोसा टूट जाता। कुछ सवाल जिसका जबाब कभी नहीं दिया- क्या कभी निलंबित अवधी में दुध बेचा? क्या कभी विनय कुमार ने उन्हें पीटवाया था? क्या इनके घर कोई गुंडा मारने गया था? अगर यह सच है तो तब प्राथमिकी क्यों नही दर्ज किया, तब खुद थानेदार थे? क्या इमानदारी चमकाने के लिए ही 4 करोड की सडक योजना शुरु होते ही 4 करोड के घोटाले की एफआईआर नहीं दर्ज कराया था? 10 रु. के लिए शिक्षक के खिलाफ मामला दर्ज इसीलिए नहीं किया था? ओबरा के थानेदार रहते खुदवां थाना में बैठ कर जब एफआईआर कैसे दर्ज किया था? फिर जब विनय कुमार ने पीटवाया तो उनके खिलाफ क्यों नहीं प्राथमिकी दर्ज कराया? उनकी गिरफ्तारी में तत्कालीन एसडीओ ने आपको साथ दिया था? क्या विनय कुमार को 5 साल की सजा हुई थी? क्या उनका और आपका चुनावी मुकाबला हुआ था? वे तो विधान परिषद के चुनाव लडे थे। किसी की हत्या विनय ने नहीं की थी, और हां- जिस ड्राइवर के अपहरण का किस्सा दिखाया है-उसने तो कोर्ट में कहा था कि मेरा विनय बाबु से बेहतर रिश्ता है। उसकी मां और पत्नी ने भी लिखित बयान दिया था। फिर शैक्षिक जागृति मंच को इस एपीसोड से दूर क्यों रखा?

नाटक के नमुने और भी
संवाद सहयोगी, दाउदनगर(औरंगाबाद) सोमप्रकाश ने बिहार से बाहर प्रकाशित होने वाले एक दैनिक अखबार (जागरण नहीं) में 07 अक्टूबर 2012 को -“रिश्वत के लिए चन्दा माग रहे विधायक सोमप्रकाश” खबर प्रकाशित कराया था। दाउदनगर प्रखंड के 20 जविप्र दुकानदारों के लाइसेंस रद्द कर दिया गया था। इसमें जमुआवां के रामजी यादव भी शामिल थे। इनके लिए ही 20000 रिश्वत देने हेतू चंदा वसूलने की खबर बिहार के बाहर प्रकाशित होने वाले एक अखबार में प्रकाशित कराया था। दरअसल वे बिहार के बाहर के राज्यों में भी खबर छपा कर अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी जैसे को प्रभावित करने का सतत प्रयास करते रहे थे। सवाल है कि जब 20 लाइसेंस रद्द हुए तो फिर सिर्फ एक के लिए यह प्रयास क्यों? किनसे चन्दा लिया गया? इस तरह के तब सवाल जागरण ने पुछा तो बोले अखबार ने बढा चढाकर लिख दिया है। यह सफाई ही सब्कुछ बता जाती है।

विधायकी छिने जाने पर प्रतिक्रिया
संवाद सहयोगी, दाउदनगर(औरंगाबाद) सोमप्रकाश की विधायकी छिने जाने पर कई तरह की प्रतिक्रिया सामने आ रही है। जदयू के मो.गुड्डु ने कहा कि अच्छा हुआ। जनता अब एक सही आदमी को चुनेगी। अल्पसंख्यक भी जदयू के नेता प्रमोद सिंह को चुनेंगे। निर्भय कुमार ने कहा कि बहुत अच्छा हुआ। आस्तिक शर्मा मान बैठे अहिं कि अब अगला एमएलए राजद से ही होगा। शोसित समाज दल ने पुछा है कि इतने दिनों बाद फैसला का मतलब, जब एक साल बाद फिर चुनाव होने ही हैं। विवेकानंद मिश्रा ने कहा-समय होत बडा बलवान। प्रेमनाथ कुमार ने कहा-भगवान के पास देर है अन्धेर नहीं। बहुत दिनों से एक.... को झेल रहे थे। विनोद सिंह- बडा.... निकले दारोगा जी।

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