Saturday 5 April 2014

जब 60 हजार फौज लेकर चले दाउद खा


                      जब 60 हजार फौज लेकर चले दाउद खा
ऐतिहासिक घटना का हुआ 354 साल 
पलामू से पूर्व कोठी एवं कुंडा किला फतह की कहानी

                     
         बिना संघर्ष कुंडा किला फतह
फौज 25 अक्टूबर को पलामू फतह के लिए रवाना


उपेंद्र कश्यप,
दाउद खां से पूर्व यह बस्ती अंछा परगना का सिलौटा-बखौरा था। दाउदनगर का इतिहास इसी दाउद खां से शुरू होता है। दाउद खां मुगल बादशाह औरंगजेब का सिपहसलार था। बादशाह शाहजहां की मृत्यु के पश्चात औरंगजेब ने सत्ता संभाली और खुद को मजबूत करने के बाद सन 1659 ई. में दाउद खां कुरैशी को बिहार का नया सूबेदार नियुक्त किया । 1 सन् 1660 में इसे औरंगजेब ने चेरो राज्य पलामू पर फतह करने का आदेश दिया। इतिहास बताया है कि दिल्ली की सत्ता के लिए हुए संघर्ष के पूर्व भी चेरो राजा अपनी दुर्गम भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाते हुए मुगल बादशाहों को राजस्व (पेशकश) देने से अक्सर मुकर जाते थे, इसीलिए औरंगजेब ने यह आदेश दिया था । तब पलामू के चेरो राजा थे- अनंतराय । 3 अप्रैल 1660 को तब दाउद खां जमींदारों, फौजदारों, जागीरदारों सहित 60 हजार की फौज लेकर पलामू-फतह के लिए पटना से रवाना हुआ। पहले गया जिले के कोठी किला पर कब्जा किया। अचानक मुगल फौज देखकर स्थानीय सिपाही किला खाली कर भाग गए, उसमें दाउद खां की फौज बैठ गयी। यह फतह रवानगी का ग्यारहवां दिन था। दास्तान-ए-पलामू यह तारीख पांच मई बताता है। यहां से करीब 32 किलोमीटर दूर था कुंडा का किला, लेकिन यहां पहुंचना कतई आसान नहीं था। जंगल कटवाते, पहाड़ों, दरे को लांघते हुए एक माह बाद 3 जून 1660 को दाउद खां कब्जा कर लिया। यहां भी संघर्ष नहीं हुआ। कुंडा फतह के बाद बरसात ने दस्तक दे दी तो दाउद खां यहीं पूरी बरसात पड़ाव जमाने का निर्णय ले मुगल सूबा बिहार से रसद आने की व्यवस्था करने में लग गया । यहां से यह फौज 25 अक्टूबर को पलामू फतह के लिए जब रवाना हुई उसके पूर्व ही अनंतराय ने पेशकश देना स्वीकार करते हुए दाउद खां को लौट जाने का आग्रह किया। लेकिन यह प्रस्ताव ठुकराकर वह आगे बढ़ता गया। वह तीन नवंबर 1660 को नरसी या तरहसी (वर्तमान लोहरसी) पहुंचा, तब भी अनंतराय शांति प्रस्ताव भेजता रहा, लेकिन प्रस्ताव खारिज होते रहे और युद्ध के प्रति आग्रही यह फौज आगे बढ़ती गयी । अनंतराय की बेचारगी बढ़ती गयी वह लाचार होकर बादशाह को एक लाख रुपये तथा अलग से दाउद खां को 50 हजार देने, बिना शर्त आत्मसमर्पण करने का प्रस्ताव दिया तब दाउद खां बादशाह के निर्देश के लिए वहीं ठहर गया। तभी दोनों ओर की सिपाहियों के बीच अनबन हो गयी,अनंतराय ने माफी मांगी और पेशकश की पेशगी में पचास  हजार भेज दिये ।

No comments:

Post a Comment