Tuesday 1 April 2014

अपने के अतिरिक्त विकल्प की तलाश


                        अपने के अतिरिक्त विकल्प की तलाश
                              काराकाट लोकसभा क्षेत्र से

 कुछ प्रत्याशी कुनबे और नेतृत्व को लेकर अपनी जीत पक्की मान रहे हैं। उनको लगता है कि मतदाता के पास विकल्प नहीं है, क्योंकि वह पहले से अपने पसंदीदा नेतृत्व को वोट करने का मन बना चुका है। एक दल के प्रत्याशी का अहंकार इतना बड़ा हो गया है कि वह अपने ही दल के नेता को उनके समर्थकों को नहीं पूछ रहा। इससे बढ़ी दूरी को पाटने की कोशिश की जा रही है। राज्य के मुखिया ने अपने एक वजीर को इसके लिए आगे किया है। 1सोमवार को इस वजीर ने कहा भी कि जो हुआ भूल कर जिताने का काम करना है। पहले अपने अहंकार के कारण प्रत्याशी ने कहा था कि जिस.. को विरोध करना है करे। जो चमचई करेगा वही साथ रहेगा। कुनबे के साथ विकास और नेतृत्व पर भरोसा है। अब जनाब को आटा दाल का भाव समझ में आने लगा है। एक अन्य प्रत्याशी को सर्वाधिक चर्चित नेता के नाम और अपने कुनबे के ध्रुवीकरण का घमंड है। लहर में बहते लोग बेड़ा पार लगा ही देंगे। सहयोगी के कार्यकर्ताओं को इसीलिए नहीं पूछ है। सहयोगी बड़े दल के नगर अध्यक्ष को एक ने 500 रुपया दिया कि कार्यकर्ताओं में खर्च करिएगा, बेचारे ङोंप गए। इनके साथी ने कहा- रोज 5000 का लाभ कमाते हैं। पैसा दे रहे हैं या फजीहत कर रहे हैं? इससे कई कई गुणा पार्टी के कार्यक्रमों में खर्च कर चुके हैं। लोग निराशा व्यक्त कर रहे हैं, लाचारी शो कर रहे हैं। नेतृत्व के नाम पर प्रत्याशी को वोट देने की विवशता बता रहे हैं। यह भी कह रहे हैं कि कोई पूछ नहीं रहा। तो क्या मतदाता मजबूरी में मतदान करेंगे या जो अपने लिए निर्धारित प्रत्याशी से नाराज हैं वे चौथे को विकल्प बनाएंगे?

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