Wednesday 2 April 2014

आया मौसम मस्ती का, नवनिर्माण का सखी


आया मौसम मस्ती का, नवनिर्माण का सखी
       वसंतोत्सव पर विशेष


सनातन धर्म में सभी वस्तुओं का धार्मिक महत्व
  
वसंत आ गया। हिन्दी साहित्य में न जाने कितने सफात इस पर लिखे गए। जितना लिखा जाता है उतना और लिखने को शेष रह जाता है। वसंत ऐसा है ही। कामुक, मदमस्त, नवनिर्माण, उमंग, प्रेम और श्रिंगार का ऋतु। सखियां प्रेम और श्रिंगार से सिक्त हो जाती हैं। करीब तीन पखवाडे पूर्व से वसंत पंचमी, अचला सप्तमी, माघीय पूर्णिमा, महाशिवरात्रि और फिर होलिका दहन का उत्सव इसका स्वागत करता है। वसंत आते ही हम होली खेलते हैं। आधुनिक साहित्य में इसका खासा विवरण है। सुगंध, श्रिंगार, प्यार, नव निर्माण का मौसम। स्वयं में एक महाकाब्य है वसंत। सरसों के फूल को जनक नंदनी सीत तो तीसी के फूल को राम का प्रतिरुप माना गया है। आम की मंजरियां मादकता प्रदान करती हैं। पं. लालमोहन शास्त्री बताते हैं कि सनातन धर्म में हर वस्तु का धार्मिक महत्व है। वसंत को इसीलिए ऋतुराज कहा गया है कि यह सर्वाधिक प्रिय है, सर्वाधिक रंजन करता है। बाल्मिकी ने रामायण में इसके सौन्दर्य का खूब बखान किया है। महाकवि काली दास ने कहा है-‘दुमा: सपुष्पा सलिलं सपदमं, स्त्रिय:सकामा: पवन: सुगंधि:। सुखा: प्रदोषा:दिवसाश्च रम्या:, सर्व प्रिये! चारुतरं वसंते॥‘ अर्थात फूलों से अलंकृत पेड, कमलों से युक्त जलाशय, काम भावना से पूर्ण नारियां, सुवासित पवन, सुखद सांयकाल, रमणीय दिन, वसंत ऋतु में सब कुछ मनोहारी हो जाता है। होली वसंत का प्रारंभ है तो जीवन, जगत, और मानस में आए सुखद परिवर्तनों का साकार रुप भी। यह सनातन धर्म की, संस्कृति की जड तक आत्मसात हो चुकी है।  ---उपेन्द्र कश्यप

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