बड़ा मुद्दा : कदवन जलाशय
जल शक्ति मंत्री ने बताया राज्य का मुद्दा, केंद्र की भूमिका सीमित
पांच सांसदों के ज्ञापन के जवाब में मंत्री ने दिया जवाब
बिहार के मगध- शाहाबाद के लिए है बड़ी परियोजना
आसानी से केंद्र सरकार को छोड़ेंगे नहीं, सवाल उठाते रहेंगे : सांसद
उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : बिहार के मगध और शाहाबाद के आठ जिलों को सिंचित करने वाली नहर प्रणाली को सालों भर पानी उपलब्ध कराने के लिए प्रस्तावित इंद्रपुरी (कदवन) जलाशय के निर्माण में बड़ी बाधा उत्पन्न हो गई है। भारत सरकार ने इस परियोजना से पल्ला झाड़ लिया है। जल शक्ति मंत्री सी आर पाटिल ने काराकाट के सांसद राजाराम सिंह द्वारा दिए गए इस परियोजना से संबंधित ज्ञापन के जवाब में कहा है कि भारत सरकार की भूमिका ऐसी परियोजनाओं में तकनीकी सहायता और आंशिक वित्तीय सहायता प्रदान करने तक ही सीमित रहती है। इस पत्र के प्राप्त होने के बाद राजाराम सिंह ने दैनिक जागरण से कहा कि वह इतनी आसानी से इस परियोजना के मुद्दे को छोड़ने वाले नहीं है। उनके जीवन का यह लक्ष्य है। इस परियोजना के निर्माण पर बिहार के जल जीवन और हरियाली निर्भर है। राजाराम सिंह जल शक्ति मंत्रालय के संसदीय सलाहकार समिति में सदस्य भी हैं। उन्होंने कहा कि सदन में वे सवाल उठाते रहेंगे। कई चरण पर काम करेंगे। आधुनिक भारत की सबसे प्राचीन नहर प्रणाली को वह मरने नहीं देंगे। कहा कि प्रधानमंत्री से उन्होंने मिलना चाहा, लेकिन वह नहीं मिले। जल शक्ति मंत्री से मिलने को कहा गया। वह भी नहीं मिले। विभाग को ज्ञापन दिया। इनके अलावा इस ज्ञापन पर आरा के सांसद सुदामा प्रसाद, सासाराम के सांसद मनोज कुमार, बक्सर के सांसद सुधाकर सिंह और सुरेंद्र प्रसाद यादव के हस्ताक्षर हैं। जल शक्ति मंत्री ने अपने जवाब में कहा है कि जल संसाधन परियोजनाओं की आयोजना, कार्यान्वयन, वित्त पोषण और रखा रखाव राज्य सरकारों द्वारा स्वयं अपने संसाधनों और प्राथमिकता के अनुसार किया जाता है। भारत सरकार की भूमिका इस मंत्रालय की योजनाओं के अंतर्गत कुछ चिन्हित परियोजनाओं को तकनीकी सहायता और आंशिक वित्तीय सहायता प्रदान करने तक सीमित है। इंद्रपुरी जलाशय के प्रस्ताव को अंतर राज्यीय मुद्दों के कारण सह बेसिन राज्यों से एनओसी प्राप्त करके नए सिरे से प्रस्तुत करने के अनुरोध के साथ केंद्रीय जल आयोग द्वारा मार्च 2022 में ही राज्य सरकार को वापस कर दिया गया था।
मामला केंद्र का, राज्य का नहीं
फोटो-राजाराम सिंह
इस मामले में सांसद राजाराम सिंह का कहना है कि निर्माण स्थल बिहार और झारखंड दोनों प्रदेश में पड़ते हैं। बिहार के रोहतास के नौहट्टा प्रखंड के मटिआंव और झारखंड के गढ़वा जिला के क्षेत्र में निर्माण स्थल है। जबकि तीसरा कोण उत्तर प्रदेश का भी है। इसलिए यह स्वयं में राज्य स्तरीय नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा है। जिसे सुलझाने की जिम्मेदारी भारत सरकार की है। इस जिम्मेदारी से केंद्र को भागने नहीं दिया जा सकता है।
समझौते के कारण समय पर पानी नहीं मिलता
मगध और शाहाबाद के पांच सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित्र व राजा राम सिंह के अधिकृत लेटर पैड पर प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन में कहा गया है कि 1874 में बनी ऐतिहासिक सोन नहर प्रणाली दम तोड़ रही है। इंद्रपुरी बाराज से पर्याप्त पानी नहीं मिलता है। इसका बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 1990 में शिलान्यास किया था और तब से यह परियोजना लंबित है। बिहार सोन के पानी का इस्तेमाल करने वाला पहला राज्य रहा है। नदी के पानी के बंटवारे उपलब्धता के लिए बाणसागरव रिहंद समझौता के तहत समय पर बिहार को पानी नहीं मिलता। पानी तब छोड़ा जाता है जब चारों ओर पानी पानी रहता है। नदी में आया पानी बहता हुआ गंगा होकर समुद्र में चला जाता है। सोन के इलाकों में बाढ़ व कटाव पैदा करता है। जिससे जन-धन की भारी क्षति होती है। ज्ञापन में कहा गया है कि सोन नहरों से आच्छादित बिहार के जिले रोहतास, औरंगाबाद, अरवल, भोजपुर, पटना, कैमूर, बक्सर और गया धान का कटोरा कहा जाता है। यह देश का प्रमुख बहुफसली क्षेत्र है।
पानी का अभाव झेल रहे थर्मल पावर
ज्ञापन में बताया गया है कि औरंगाबाद में सोन के किनारे बने एनटीपीसी और बीआरबीसीएल थर्मल पावरों को बरसात के पहले पानी का अभाव झेलना पड़ता है। खतरे की घंटी भी पहले बज चुकी है।
जीवन का आधार है सोन का पानी
सांसद ने लिखा है कि सोन का मीठा पानी मछली समेत लाखों जीवों, मनुष्यों, वनस्पतियों व पेड़ पौधों के जीवन का आधार है। बिहार जिसका बड़ा हिस्सा बाढ़ व सुखाड़ से पीड़ित रहता है। इस कृषि प्रधान इलाके में इसकी सिंचाई प्रणाली को बचाना व सशक्त बनाना राज्यहित व राष्ट्रहित में है।
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