बदलता शहर 18
76 वर्ष में परिवर्तित हो गया धार्मिक वातावरण
शहर में धर्म, कर्म व ऊर्जा का केंद्र बन गया हनुमान मंदिर
उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 76 वर्ष अर्थात लगभग आठ दशक में शहर की धार्मिक गतिविधियों, वातावरण और आस्था के केंद्रों में काफी परिवर्तन हुआ है। शहर में धर्म, कर्म और सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र बिंदु बनकर उभरा है बाजार स्थित शहर का मुख्य हनुमान मंदिर। यहां प्रतिदिन निरंतर श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है और उसी अनुपात में आस्था भी। शहरी ही नहीं बल्कि आसपास के बड़े क्षेत्र के लोग जब दो पहिया, चार पहिया या कोई भी नया वाहन खरीदने हैं तो यहां उसकी पूजा अर्चना करते हैं। जन्मदिन हो या विवाह का वर्षगांठ, सपरिवार लोग यहां आकर ईश्वर के आगे श्रद्धा नवत होते हैं और ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यहां हनुमान मंदिर का निर्माण तो 1949 में ही हो गया था। तब पटवट था। बीते 76 वर्ष में काफी कुछ परिवर्तित हो गया। मंदिर अब गगनचुंबी हो गया। पटना हनुमान मंदिर की अनुकृति है यह मंदिर। अब सिर्फ यहां बजरंगबली नहीं बल्कि मां दुर्गा, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, काली मां की अष्टभुजी, भगवान धन्वंतरि की प्रतिमाएं धीरे-धीरे कर श्रद्धालुओं ने स्थापित कर दी। मंदिर का पूरा स्वरूप ही अब बदल गया है। इस मंदिर के ठीक सामने की जगह में भी निर्माण का काम हो रहा है। मंदिर संचालकों की योजना बड़ी है और जिस दिन यह मूर्त रूप होगा पाएगा, उस दिन आस्था के इस केंद्र का महत्व और भव्य व विराट हो जाएगा।
स्थापित की जानी है ये प्रतिमाएं
हनुमान मंदिर कमिटी के सचिव व मुख्य पूजा व्यवस्थापक पप्पू गुप्ता बताते हैं कि मंदिर के सामने भी निर्माण कार्य हो रहा है। इसमें प्रथम तल पर राम दरबार की प्रतिमाएं और भूतल पर गणेश की प्रतिमा इसी वर्ष अगस्त के बाद कभी भी स्थापित की जानी है। आगे चलकर दूसरे तल पर महर्षि बाल्मीकि और संत तुलसीदास की प्रतिमा स्थापित की जानी है।
ऐसे आरंभ हुई मंदिर निर्माण की बात
यहां पहले से जो हनुमान मंदिर था वह पटवट का था। ऊपर तले पर करकट लगा हुआ था। मंदिर जीर्णोद्धार की बात चली तो किसी ने कहा कि मंदिर निर्माण की बात वही करेगा जो 125 रुपये का चंदा देगा। मंदिर निर्माण को लेकर तब सक्रिय सुनील केसरी बताते हैं कि यमुना प्रसाद स्वर्णकार, नंदलाल प्रसाद, रामजी प्रसाद केसरी, लक्ष्मीनारायण स्वर्णकार, कुमार नरेंद्र देव, रमेश कुमार, राजा राम प्रसाद, नारद प्रसाद, बीरेंद्र प्रसाद सर्राफ, सत्यनारायण प्रसाद उर्फ मुनमुन और अन्य लोग जुटे। कृष्णा प्रसाद स्वर्णकार और कुमार नरेंद्र देव को मंदिर का नक्शा बनाने की जिम्मेदारी दी गई। शिलान्यास कार्यक्रम के लिए चंदा इकट्ठा किया गया और फंड जुटाने के लिए सिनेमा हाल में चैरिटी शो हुआ। फिर बात आगे तक चली गई।
खानदानी कोठीवाल थे मंदिर निर्माता बाबा हरिदास
विक्रम संवत 2006 यानी वर्ष 1949 के अक्षय तृतीया तिथि को बाबा हरिदास ने हनुमान मंदिर की स्थापना करायी थी। इनके खानदान और मंदिर कमेटी से जुड़े सुरेश कुमार गुप्ता ने बताया कि बाबा हरिदास के पिताजी का नाम गणेश प्रसाद कसौंधन था। वह शुक बाजार के स्थाई निवासी थे। खानदानी कोठीवाल थे। यानी हुंडी और बिल का काम करते थे। बचपन से ही वे बैरागी स्वभाव के थे इसलिए उन्होंने विवाह नहीं किया। जिस जमीन पर मुख्य मंदिर स्थापित है वह जमीन इनकी खानदानी जमीन थी। बंटवारा में मंदिर की जमीन किसी के हिस्से नहीं लगी। जो जमीन बाबा हरिदास जी के हिस्से में थी उसे बेचकर मंदिर बनाने के लिए खर्च कर दिया था। काफी समय तक बाबा हरिदास ही मंदिर के पुजारी रहे थे।
22 फरवरी 1988 को जीर्णोद्धार
वर्तमान भव्य मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए 22 फरवरी 1988 को आइपीएस अधिकारी किशोर कुणाल ने आधारशिला रखी थी।
उन्होंने पहले ना कहा कहते हुए कहा कि लोग विवादित जमीन पर शिलान्यास करा लेते हैं जिससे उनकी बदनामी होती है। इसके बाद जब उन्हें पूरी बात बताई गई तो आश्वस्त हुए और तब वे समय दे सके। तब कुमार नरेंद्र देव वाहन लेकर श्री कुणाल को लेने पटना गए थे। बाइक रैली निकाली गई। लखन मोड़ पर ही वे महिलाओं के आग्रह पर वाहन से नीचे उतर कर मंदिर स्थल तक पैदल गए और शहर में ‘जब तक सूरज चांद रहेगा कुणाल तेरा नाम रहेगा’, किशोर कुणाल अमर रहे जैसे नारे बुलंद होते रहे।
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