बदलता शहर - 09
राजकीय महोत्सव का दर्जा दिलाने की है पुरानी मांग
कलाकारों को गढ़ती और संवारती है यह संस्कृति
उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :
दाउदनगर में श्रमिकों की बसावट तो साफ-साफ दिखती ही है, यहां की संस्कृति भी श्रमिकों ने ही गढ़ी और उसे संपन्न बनाया है। यहां की सांस्कृतिक पहचान जिउतिया लोक संस्कृति है। जिसने यहां के कलाकारों को ऐसा गढ़ा और संवारा कि लोग कहने लगे कि यहां के कण कण में कला बसती है। दरअसल इस अवसर पर लोक कलाओं की जो प्रस्तुति होती है वह खासा महत्वपूर्ण है। वह प्रस्तुतियां यहां के अनगढ़ कलाकारों को गढ़ती है, संवारती है। नतीजा बड़े-बड़े मंचों पर भी वे सफल होते हैं। अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में सफल होते हैं। आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह व्रत मनाया जाता है। यूं तो यह प्रायः सभी सनातन धर्मावलंबियों के घर में मनाया जाता है, लेकिन नौ दिन यहीं मनाया जाता है। और दो से तीन दिन पुरस्कार वितरण बड़े-बड़े मंच करते हैं। यहां के लोक कलाकार अप्रशिक्षित होते हैं, अनगढ़ लोग हैं वह लगातार अपनी कला प्रस्तुत करते-करते उसमें अनुभवी हो जाते हैं। कई खतरनाक प्रस्तुतियां है जो देखने के बाद लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। लोक संस्कृति का कोई आयाम ऐसा नहीं है जो यहां आपको देखने को ना मिले। इसे राजकीय दर्जा दिलाने का प्रयास लगातार दैनिक जागरण करते रहा है। इस संवाददाता ने कई मंचों पर इससे संबंधित विवरण और आवेदन उपलब्ध कराया है। जिउतिया के पुरस्कार मंचों पर आने वाले तमाम नेता इसे राजकीय दर्जा दिलाने के लिए प्रयास करने की घोषणा करते हैं और मंच से उतरते ही इसे भूल जाते हैं। जहां छोटे-छोटे आयोजन होते हैं उन्हें भी बिहार सरकार ने राजकीय दर्जा दे दिया है। लेकिन दाउदनगर का इससे अभी भी अछूता है। सबको इस बात की प्रतीक्षा है कि इसमें सफलता कब मिलेगी।
राजकीय दर्जा देने को डीएम को लिखा पत्र
नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी ने बताया कि जिउतिया को राजकीय दर्जा दिलाने के संबंध में उन्होंने जिला पदाधिकारी को पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि इस लोक उत्सव के दौरान बिहार के विभिन्न जिलों से ही नहीं बल्कि निकटवर्ती कई प्रदेशों से लोग आते हैं। इसमें युवा, बच्चे, बुजुर्ग महिलाएं सभी अनूठा करतब दिखाते हैं। स्वांग रचते हैं। कई खतरनाक प्रस्तुति देते हैं। कई मंच सर्वश्रेष्ठ प्रतिभागियों को सम्मानित करते हैं। यदि इस लोक उत्सव को राजकीय दर्जा प्राप्त हो जाता है तो इसका प्रचार प्रसार दाउदनगर से बाहर दूर तक हो सकेगा। कार्यपालक ने इस पत्र में यह भी कहा है कि जिले में मनाये जाने वाले अन्य उत्सवों को जिस तरह राजकीय दर्जा दिया गया है उसे आधार बनाकर जिउतिया लोकोत्सव को भी राजकीय दर्जा दिया जाए, ताकि यह उत्सव और भी जीवंत हो सके।
जिउतिया के कारण मिल रहे अभिनय के काम
कई फ़िल्म व धारावाहिक में काम करने वाले कलाकार विकास कुमार कहते हैं कि किसी भी शहर की पहचान उसकी सभ्यता व संस्कृति से होती है। यह जिउतिया लोकोत्सव पर लागू होता है। आज मैं फिल्म और टीवी के क्षेत्र मे जो भी मुकाम हासिल किया हूं, उसमें इसी संस्कृति का योगदान है। विभिन्न मंचों पर अभिनय करने का मौका जो मिला उससे अभिनय में निखार आया। जिसके कारण नाटक के क्षेत्र में पहचान बनी। फिल्म और टीवी में काम मिला।
जिउतिया के मंचों ने कलाकार बनाया
कलाकार और फ़िल्म निर्माण से जुड़े चंदन कुमार ने बताया कि जिउतिया कलाकारों को संवारने का काम करता है। आज हम अगर माइक पर बोलते हैं तो इसमें सबसे बड़ा योगदान जिउतिया का है। जिउतिया कलाकारों को एक अलग पहचान दिलाता है। यहां के कलाकार अब फिल्मो में काम करने लगे हैं तो इसी संस्कृति से जुड़े लोक उत्सव पर मंचीय प्रस्तुति करने से। जिउतिया कलाकारों की जननी है।
No comments:
Post a Comment