बदलता शहर 15
इकलौता अंगीभूत कालेज है दाऊदनगर महाविद्यालय
पांच विषयों में जुलाई से होगी पढ़ाई
बहुजनों तक उच्च शिक्षा की बढ़ी पहुंच
उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : यह किसी सपने के पूरा होने से कम नहीं है। जब दाउदनगर कालेज में आने वाले सत्र से पांच विषयों में पीजी की पढ़ाई प्रारंभ होगी। आमतौर पर नए सत्र का प्रारंभ एक जुलाई से मगध विश्वविद्यालय में होता है। उम्मीद की जा रही है कि इसी तिथि से पांच विषयों में पढ़ाई प्रारंभ हो जाएगी। लेकिन यह यात्रा अभी पूरी नहीं होगी। कला की पढ़ाई की सुविधा तो मिली लेकिन विज्ञान में एक सिरे से शून्यता अभी बरकरार है। आने वाले वक्त में विज्ञान में भी पीजी की पढ़ाई हो सकेगी। इसकी उम्मीद भर की जा सकती है। क्योंकि जब इन विषयों के उद्घाटन से संबंधित समारोह में क्षेत्रीय सांसद राजाराम सिंह को संबोधन का मौका मिला तो उन्होंने इस ओर इशारा किया। कहा-कला के बिना विज्ञान समृद्ध नहीं हो सकता। और उनकी ओर देखते हुए कुलपति डा.शशि प्रताप शाही मुस्कुरा भर गए। जरा कल्पना करिए कि जब शहर में माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था अपर्याप्त थी, तभी दो सितंबर 1970 को शहर के नौजवानों ने एक सपना देखा था और महाविद्यालय स्तर पर पढ़ाई की व्यवस्था आरंभ की थी। आज उनके सपने साकार हो रहे हैं तो प्रतिदान में दाउदनगर महाविद्यालय भी उन्हें कुछ दे रहा है। महाविद्यालय के प्रिंसिपल एम शम्सुल इस्लाम ने घोषणा की है कि एक से दो महीने के अंदर महाविद्यालय परिसर में भगत सिंह के साथ महाविद्यालय की बुनियाद में शामिल डा. राम परीक्षा यादव और डा. शमसुल हक की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। अनुमण्डल के एकमात्र अंगीभूत महाविद्यालय की स्थापना डा. रामपरीखा यादव, डा. शमशुल हक, डा. श्याम देव प्रसाद, ऋकेश्वर प्रसाद एवं अन्य ने दो सितम्बर 1970 को किया था। तब बाजार स्थित हमदर्द दवाखाना मैदान में स्थित बरियार साहब के मकान (अभी यहां यश एकेडमी चलता है) में शुरु किया गया। बिहटा कालेज में लेक्चरर गजबदन शर्मा पहले प्राचार्य बने जो पिसाय के निवासी थे। उन्होंने यहां डा.(अब स्व.) श्याम देव प्रसाद को कालेज खोलने के लिए प्रेरित किया, तत्पश्चात तत्कालीन प्रोजेक्ट एक्सक्युटिव आफिसर जुबैर अहमद ने भी रूचि ली और कालेज वजूद पा गया। सत्येन्द्र नारायण सिंहा ने उद्घाटन किया था। वे बाद में मुख्यमंत्री बने थे। यहां से कालेज नीमा में धरणी सिंह के घर में चला। फिर 1976 में प्रार्चाय प्रो. रूपनारायण सिंह के प्रयास से वर्तमान निजी भवन की आधारशीला रखी गयी।
तब ग्रेजुएट बनना था बहुत बड़ा सपना
बहुजनों तक उच्च शिक्षा पहुंचाने का यह प्रथम प्रयास था। इससे पहले यहां के लोगों के लिए ग्रेजुएट बनना सपना था। समृद्ध तबका औरंगाबाद, गया, पटना या अन्यत्र स्थानों पर जाकर उच्च शिक्षा ग्रहण किया करता था। इस कालेज की स्थापना ने बड़ी जनसंख्या के लिए उच्च शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया।
अब तीन और डिग्री कालेज
अब शहर में मगध विवि से स्थायी संबद्धता प्राप्त महिला महाविद्यालय के अलावा, प्रस्वीकृति प्राप्त के.के.मंडल साइंस कालेज और प्रस्वीकृति प्राप्त व बिहार सरकार से मान्यता प्राप्त रामरति सुंदर शीला महाविद्यालय अंछा संचालित होता है। इससे बड़ी आबादी तक ग्रेजुएट स्तर की शिक्षा पहुंचने लगी।
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