Sunday, 16 February 2025

जातियों के नाम पर बने हैं शहर के मोहल्ले

 बदलता शहर - 08



कामगार जातियों से जुड़े हैं मोहल्लों के नाम

कई मोहल्लों के नाम से होता है व्यक्ति और वस्तु का बोध

नाम बताते हैं यहां की संस्कृति है श्रमण 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर श्रवण संस्कृति का शहर है। यह यहां के बसावट वाले मोहल्ले के नाम से स्पष्ट होते हैं। आमतौर पर यहां जो जातियां बसी हैं वह बाहर से तब बुलाए गए थे जब यहां दाऊद खान ने शहर बसाना आरंभ किया था। कई मामलों में इस शहर की बसावट अद्भुत है। यहां की संस्कृति श्रमिकों की संस्कृति है। हर गली, मुहल्ले की हालत एक सी है। यहां की बसावट, उनका पेशा, उनकी जीवन शैली, उनके व्यवहार पूरी तरह श्रमिकों की है। यहां की आबादी मूल नहीं है। या तो सतरहवीं सदी में दाउद खां ने बुलाकर बसाया है या फिर रोजगार की तलाश में कहीं से आये और फिर यहीं के हो कर रह गए। जितनी जातियां, और जातियों के नाम पर मुहल्लों के नाम हैं, उतना शायद ही किसी दूसरे कस्बे में आपको मिलेगा। शहरी क्षेत्र में न्यूनतम 44 मुहल्ले ऐसे हैं। उमरचक, पटेलनगर, शीतल बिगहा, गौ घाट, बुधन बिगहा, पिलछी, मौलाबाग, ब्लौक कालोनी, न्यू एरिया, अफीम कोठी, चुड़ी बाजार, कान्दु राम की गड़ही, पांडेय टोली, गड़ेरी टोली, अफीम कोठी, खत्री टोला, मल्लाह टोली, चमर टोली, पटवा टोली, दबगर टोली, ब्राहम्ण टोली, कुम्हार टोली, नाई टोली, लोहार टोली, महाबीर चबुतरा, थाना काॅलोनी, हास्पिटल कालोनी, यादव टोली, डोम टोली, कसाई मुहल्ला, नालबन्द टोली, कुर्मी टोला, दुसाध टोली, अमृत बिगहा, बुधु बिगहा, रामनगर, अनुप बिगहा, रामनगर, नोनिया बिगहा, माली टोला, जाट टोली, यादव टोली, ब्राह्मण टोली और बालु गंज। इन मुहल्लों में शामिल सभी जाति सूचक मुहल्ले पुरातन हैं। एक ही नाम के दो-दो, तीन-तीन मुहल्ले भी हैं। व्यक्ति के नाम सूचक और अन्य नाम नगरपालिका के विस्तार के साथ जुड़े इलाकों के नाम हैं। जिन जातियों का ज्ञान इन मुहल्ला नामों से होता है, उसके अलावा भी कई श्रमिक जातियां यहां रहती हैं। रंगरेज, डफाली, कुंजडा, अंसारी, मुकेरी, सुड़ी, सौंडिक, तेली, धुनिया, रोनियार, अग्रवाल समेत तमाम तरह की श्रमिक जातियां यहां हैं। सोनार पट्टी जैसे नाम तारीख-ए-दाउदिया में हैं, जो अब लापता हो गए। यहां श्रम करने वाली जातियों ने अपना समाज गढ़ा। अपनी साझा संस्कृति बनाई। 



काम से भी जुड़े हैं गली मोहल्ले 


शहर में कई गली ऐसे हैं जो वहां होने वाले काम का बोध कराते हैं। यथा गुड़ चावल फरही बाजार, शुक बाजार, सूतहट्टी गली, धनकुट्टा बाजार। यह ऐसे नाम है जिनके संबोधन से ही यह पता चल जाता है कि यहां कौन सा काम होता होगा।



दाउदनगर है मध्यकालीन शहर


मुगलकालीन या मध्यकालीन नगर है दाउदनगर। महत्वपूर्ण है कि सिलौटा बखोरा या दाउदनगर परगना अंछा का एक इलाका है। जमीन खरीद फरोख्त के दस्तावेजों में हाल तक हाल-मोकाम के बाद परगना अंछा ही लिखा जाता रहा है। अंछा, गोह और मनौरा तीन महत्वपूर्ण परगना मुगलकाल में थे। इन तीनों परगनाओं को औरंगजेब ने दाउद खां को लाखिराज दे दिया था। यानि भेंट किया था। जब 1659 में औरंगजेब ने अपने सिपहसलार दाउद खां को बिहार का नया सुबेदार नियुक्त किया था। उसने इलाका विस्तार का अभियान 1660 में प्रारंभ किया था। इसमें उसने जब वर्तमान जिला गया का कोठी, औरंगाबाद जिला का कुंडा, और देवगन राज को फतह कर पलामु भी फतह कर लिया तो बादशाह ने उसे इन तीन परगनाओं को भेंट किया था। इसके बाद ही दाउद खां ने सिलौटा बखौरा को आबाद किया और नगर बसाया।


No comments:

Post a Comment