Friday, 28 February 2025

आधुनिक मशीनों के साथ न बढ़ने से बंद हो गया बर्तन उद्योग

 बदलता शहर 19





अब सुनाई नहीं देता कभी सोन तक जाने वाला ठक-ठक का समृद्धि गीत 

वर्ष 1920 से 1960 के दशक में यहां बनते थे बड़े पैमाने पर बर्तन

कभी शहर में लगाए गए थे तीन बेलन मिल

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर की तरह ही कभी समृद्ध हुआ करता था दाउदनगर का पीतल बर्तन उद्योग। यह आज पूरी तरह समाप्त हो गया है, जबकि बिहार के ही आरा के नजदीक परेव में बर्तन उद्योग बड़े स्तर का है। वास्तव में समय के साथ मशीनीकरण के दौड़ में पीछे रह जाने के कारण बर्तन उद्योग पिछड़ता चला गया और अंततः समाप्त हो गया। बदलते दौर और मिजाज के साथ न चल पाने का खामियाजा इस उद्योग को भुगतना पड़ा। दाउदनगर में पूर्व दिशा से दो जातियां आई थीं। कसेरा जो पीतल का काम करते थे और ठठेरा जो कासकूट (लोटा) बनाने का काम करते थे। यहां तमेढ़ा जाति की बसावट नहीं है। यह जाति तांबा का काम करती है। यहां तांबा का बर्तन नहीं बनता था। शुक्र बाजार ठाकुरबारी से लेकर नगर पालिका तक और पूर्व में बम रोड तक कसेरा एवं ठठेरा बसे हुए थे। अब भी हैं। बम रोड में भी कभी इनकी आबादी थी, अब नहीं है। यहां का इतिहास देखें तो एक जमाना ऐसा था खासकर वर्ष 1920 के बाद से लेकर 1960 के दशक तक यहां का बर्तन उद्योग चरम पर था। बर्तन बनने से उपजने वाली ठक-ठक की आवाज कहते हैं सोन उस पर नासरीगंज तक सुनाई रात में पड़ती थी। अब ऐसी आवाज ही नहीं निकलती क्योंकि काम ही नहीं होता है। वर्ष 1965 में जब भारत चीन युद्ध हुआ था तब सैनिकों के लिए भी यहां के बने बर्तन भेजे गए थे। वर्ष 1910 में सिपहां में संगम साहब राम चरण राम आयल एंड राइस मिल की स्थापना हुई थी। उसी के बाद यहां तीन रोलिंग या बेलन मिल लगाया गया था। शुक बाजार में उमाशंकर जगदीश प्रसाद रोलिंग मिल, हनुमान मंदिर के नजदीक श्री राम बेलन मिल और चावल बाजार में संगम साहब रामचरण साव रोलिंग मिल लगाया गया था। इससे बर्तन निर्माता को काफी सहूलियत हुई और बर्तन उद्योग यहां कुटीर उद्योग बन गया था। इसकी काफी चर्चा रही है। लेकिन अब सब बर्बाद हो गया तो कई बार इसे बेहतर या समृद्ध करने की राजनीतिक कोशिश हुई लेकिन वह हमेशा अपर्याप्त ही साबित हुई।


30 दुकानदार, 20 करोड़ का कारोबार 

शहर में बर्तन बिक्री की लगभग 30 दुकान हैं। अब यह दुकानदार यहां पीतल व कांसा के बर्तन आरा के समीप स्थित परेव, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर और हरियाणा के जगाठरी एवं अन्य स्थानों से खरीद कर बिक्री के लिए लाते हैं। बर्तन दुकानदारों की मानें तो एक साल में लगभग 20 करोड रुपये का कारोबार दाउदनगर में बर्तन व्यवसायी करते हैं।


एक निर्माता, चार पालिश कर्ता  

शहर में बर्तन उद्योग खत्म हो गया लेकिन भोला कसेरा अभी भी ऐसे हैं जो हांडी (पीतल का तसला) बनाते हैं। इनके अलावा कृष्णा कसेरा, टना लाल, विष्णु कसेरा, और बेनी लाल ऐसे हैं जो पुराने बर्तनों को पालिश कर चमकाने का काम करते हैं।




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