Saturday, 22 February 2025

नहर से आई समृद्धि, लोगों ने किया यशोगान

 



रोजगार से लेकर कृषि क्षेत्र को किया समृद्ध

लोगों ने कहा- परजा के पालन को नहर खुदवाया

ऐसा जलस्त्रोत जिसने यातायात व पेयजल, सिंचाई सुविधा दी

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :

दाउदनगर चट्टी था और शहर बनने के लिए छटपटा रहा था। तभी नहर की खुदाई प्रारंभ हुई। नहर ने यहां के लोगों को काम दिया और एक बड़ी आबादी इससे कमाने लगी। एक बड़े वर्ग को मिट्टी कटवा कहा गया। शायद यह नाम नहर खुदाई के कारण ही मिला था। सिंचाई के लिए नहर का निर्माण हुआ। लोगों को काम मिला और जब नहर से खेतों को पानी मिलने लगा तो सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो गई। इससे अकाल की चिंता से मुक्ति मिली। स्वाभाविक है कि नहर की खुदाई और उससे सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने के कारण समृद्धि भी आई। जब नहर प्रणाली का कार्य पूरा हो गया तो दिसंबर 1878 में नौपरिवहन के लिए इसे खोल दिया गया। इससे सिंचाई के साथ साथ नौपरिवहन से यातायात सुगम हो गया। इससे यहां रोजगार मिला। व्यापार आसान हो गया।  नतीजा लोगों ने नहर खुदाई को गीत बनाकर गाया। दाउदनगर की संस्कृति जिउतिया की संस्कृति है। इतना बड़ा सामूहिक उत्सव दूसरा नहीं होता। लोक की इसमें व्यापक पैमाने पर भागीदारी होती है। और उसी लोक उत्सव में एक लावणी गया जाता है- प्रजा के पालन को नहर को खुदवाया है। यह बताता है कि नहर के प्रति दाउदनगर के लोगों ने कितनी श्रद्धा व्यक्त की। उसका यशोगान किया। क्योंकि नहर एक कैसा जल स्रोत है जिसने नहर के इस और उस पार की आबादी के बीच आवागमन, पीने के लिए पानी, पशुओं के लिए जल स्त्रोत और खेतों के लिए भी पानी उपलब्ध कराया। ऐसे में उसका यशोगान करना सनातन संस्कृति की आम प्रवृत्ति की तरह ही मानी जाएगी। जिसमें कुछ भी देने वाले के प्रति श्रद्धा का भाव व्यक्त करने की परंपरा रही है।


नहर का विचार 1853 में फौजी अभियंता की


तत्कालीन शाहाबाद में सिंचाई के लिए इस नहर प्रणाली का विचार 1853 में फौजी अभियंता लेफ्टिनेंट सी.एच.डिकेंस ने किया था। जो बाद में जनरल बने। उसने कैमूर पहाड की ढलान से बहने वाले जल के संचय का प्रस्ताव इस्ट इंडिया कंपनी के सामने रखा। जलाशयों से नहरें निकाल कर सिंचाई की योजना बनायी -थी। अधिक छान बीन के बाद 1855 में उसने अपनी नयी रपट पेश की, जिसमें उसने सोन को ही मूलाधार बनाया। यह योजना नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह गुम हो गई। 1860 में उसे फिर आदेश मिला कि वह सारा जिला घुम कर किसानों की आवश्यक्ता अनुसार रपट पेश करे। नये आदेश के बाद 1861 में जो प्रस्ताव सामने रखा उसी को आधार बना कर सोन-नहर-परियोजना बनी। वर्ष 1878 में पूरी सोन नहर सिंचाई प्रणाली बन कर तैयार हो गई। 



नाम पटना बड़ी नहर, लंबाई 57.6 किमी

इंद्रपुरी सोन बराज से निकल कर उत्तर की ओर सोन के लगभग समानांतर ‘पटना बडी नहर’ पटना तक की कुल 57.6 किलोमीटर की यात्रा दाउदनगर, अरवल होते हुए उत्तर-पूरब की तय करती है। सैदाबाद से वह कुछ अधिक पूरब हो जाती है और बिक्रम, नौबतपुर होते हुए बांकीपुर-दानापुर के बीच में दीघा के पास गंगा में अपना बचा खुचा पानी उडेल कर अपनी यात्रा पूरी कर लेती थी। 



जिउतिया में गाया जाने वाला लावणी


परजा के पालन करने को नहर को खुदवाया है

मशहुर है नहर ये लम्बी अंगरेजों का लाया है

पहले तो दूरबीन लगाकर सर्व राह को देख लिया

दूसरे में कम्पास लगार बेलदारो ने चास किया

हरिद्वार से नक्शा लाकर नहर खोदना शुरू किया

जगह-जगह पर साहबों ने ठेकेदारों को ठेका दिया

देखो-देखो चौड़ी नहर खोदन करने आया है

मशहूर है नहर ...........

सोलह फुट गहरा करवाया, बावन फुट चौड़ाई है

पटरी उपर वृक्ष लगाया सुन्दर अति सोहाई है।

नहर से नहरी जो निकली,  नहरी से जो पैन भाया,

पैनों से जो निकली नाली वही जल खेतों में गया

तीन कोस पर लख दो तरफा पुलों से पटवाया है

मशहूर है नहर ........


नहर प्रणाली का विवरण

इस नहर प्रणाली से आठ शाखा नहरें और 12 उपवितरणी या फीडर निकली हुई है। इस नहर का ग्रास कमांड क्षेत्र (जीसीए) 89073 हेक्टेयर और कल्चरेबुल कमांड क्षेत्र (सीसीए) 73000 हेक्टेयर है। सिंचाई का लक्ष्य 65000 हेक्टेयर है जो प्राय: प्राप्त हो जाता है। 


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