बदलता शहर 07
1901 में जब हुआ सर्वे तो बसावट वाला क्षेत्र रहा वंचित
लंबाई को अरज, चौडाई को तुल तथा क्षेत्र के लिए कट्ठा शब्द का इस्तेमाल
डिस्मिल शब्द कारा नवाब के बंटवारे में इस्तेमाल किया गया
उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर को बसाने वाले दाऊद खां के नाम के साथ नवाब विशेषण जुड़ा हुआ है। जमीन से भी नवाबियत और जमींदारी, इसीलिए कहा जाता है कि यह नवाबों का शहर है। ठाट-बाट में पले-बढ़े दाउदनगर के मालिकाना हक की कहानी बड़ी दिलचस्प है। कई जमींदारों या नवाबों की मिलकियत थी यहां। शहर दाउद खां कुरैशी का बसाया हुआ था तो स्वाभाविक तौर पर इस भूगोल पर उनके वंशजों का हक था। कालांतर में उनके वंशज इस काबिल नहीं रह गये थे। नतीजा पूरा शहर कारा इस्टेट के नियंत्रणाधीन हो गया। संभवतः हसन इमाम नवाब थे। इन्हें शहर हसनु बाबु के नाम से जानता था। कहा जाता था -हसनु बाबु का तख्ता। शहर में कई लोगों की मिलकियत थी। इस कारण तख्ता भी कई थे। नवाब और उनकी बेटी (शायद) खुदैतुल कुबरा के बीच बंटवारा 1928 में हुआ। नौ आना और सात आना। इससे पहले इनके अधीन के अठारह जमींदारों (वास्तव में वे जमींदार नहीं थे, उनकी मिल्कियत कुछ रकबे की थी) के अधीन पुरानी शहर था। इन सबने 1896 में बंटवारा सुट दाखिल किया था। इन्हें उर्दु में सायल (प्रार्थी, फरियादी) कहा जाता है। जिस पर फैसला 1899 में हो चुका था। रैयती खतियान बना कर दिया गया था। इसे तख्ते बंदी बंटवारा कहा जाता है। इसके साथ एक नजरी नक्शा बना हुआ था। इसमें लंबाई के लिए अरज एवं चौडाई के लिए तुल तथा क्षेत्र के लिए कट्ठा शब्द का इस्तेमाल किया गया है। डिस्मिल शब्द कारा नवाब के बंटवारे में इस्तेमाल किया गया है। यहां लक्ष्मी बाबु का तख्ता, गोमती प्रसाद का तख्ता, सोहन मिश्रा का तख्ता, सिताब लाल मंगल बाबु का तख्ता, मनहरण लाल का तख्ता हुआ करता था। अर्थात इनके अधीन कई-कई बिगहा जमीनें हुआ करती थी। सोहन मिश्रा के तख्ता में बालुगंज, मलाह टोली, डफाली टोली एवं बरादरी का हिस्सा आता था। सराय रोड सोलेने साहब के तख्ता के अधीन था। वे अंग्रेज थे। एक महिला भी ऐसी ही जमींदार थी। सभी ओझाइन का तख्ता के नाम से जानते थे। इसी ओझाइन के तख्ते का वारिश बन गये थे दीपन तिवारी। जो मूलतः रोहतास के एकडारा से यहां आये थे। ओझाइन के तख्ता में माली टोला, जाट टोली का हिस्सा आता था।
12 इस्टेट की हुआ करती थी हिस्सेदारी
पांडेय टोली के बैजनाथ पांडेय (अब स्वर्गीय) ने इस संवाददाता को बताया था कि उनके पूर्वज उन्हें बताते थे कि इस शहर में 12 इस्टेट की हिस्सेदारी हुआ करती थी। कारा इस्टेट, बंगाली इस्टेट, युरोपीयन सोलोनो इस्टेट, काली प्रसाद अग्रवाल, सूरज प्रसाद अग्रवाल, संस्कार विद्या के सीईओ सुरेश प्रसाद गुप्ता के पूर्वज विशेश्वर नाथ, लियाकत हुसैन, कयुम हुसैन एवं इकबाल हुसैन के पूर्वज, गुदानी लाल, मनहरण लाल, यदुनंदन साव, राम कृपाल प्रसाद एवं रामबिलास बाबु स्वर्णकार के पूर्वज सखीचंद साव, स्वतंत्रता सेनानी जगदेव प्रसाद के पूर्वज अनंत लाल, रामेश्वर पांडेय, रामेश्वर पूरी, सोमारु साव, केशव प्रसाद की शहर की जमीनों में हिस्सेदारी हुआ करती थी। समय के साथ जमींदारी चली गई। काफी जमीनें अन्य के कब्जे में चली गई।
1934 में हुआ छह व दस आना का बंटवारा
जमीन के मामलों के जानकार अनन्त प्रसाद बताते हैं कि दाउदनगर के इस्टेट की संख्या सत्रह थी। कलक्टरी बंटवारा 1934 में मालिकों के बीच हुआ। छह आना मालिकों को और दस आना कारा इस्टेट के जिम्मे रहा।
7331 नया तौजी बनाया गया यह दाउदनगर के जमींदारों का हुआ। खाता प्लाट रैयत का और तौजी जमींदार की पहचान बताता था। छह आना पांडेय, पूरी और कायस्थ समेत अन्य इस्टेट थे। दस आना में कारा इस्टेट जिसका तौजी नम्बर 191 था। कारा इस्टेट ने अपनी जमींदारी भी बाद में बेची जिसे नवाबों ने खरीदा था।
1912 के सर्वे में शहर बेलगान
अनंत प्रसाद बताते हैं कि 1912 में जब इस क्षेत्र में भूमि सर्वे हुआ तब शहर में महामारी थी। नतीजा आबादी वाले क्षेत्र का सर्वे ही नहीं हुआ। सर्वे करने वालों ने बसावट वाले क्षेत्र को बेलगान लिख दिया। इसीलिए आज शहर की बेशकीमती बसावट वाली जमीन बेलगान हैं। किसी ने इसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी। जो लोग स्थिति को समझते थे, उन्होंने कई स्तर पर समझौता किया, चुनौती भी न्यायालय में दी और जमाबंदी कायम कर लिया। फिर शहर में 1985 में नया सर्वे हुआ जिसे अब जाकर स्वीकृति मिली है।
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