Friday, 28 February 2025

इंद्रपुरी जलाशय निर्माण से पीछे हटी भारत सरकार

बड़ा मुद्दा : कदवन जलाशय




जल शक्ति मंत्री ने बताया राज्य का मुद्दा, केंद्र की भूमिका सीमित

पांच सांसदों के ज्ञापन के जवाब में मंत्री ने दिया जवाब 

बिहार के मगध- शाहाबाद के लिए है बड़ी परियोजना

आसानी से केंद्र सरकार को छोड़ेंगे नहीं, सवाल उठाते रहेंगे : सांसद

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : बिहार के मगध और शाहाबाद के आठ जिलों को सिंचित करने वाली नहर प्रणाली को सालों भर पानी उपलब्ध कराने के लिए प्रस्तावित इंद्रपुरी (कदवन) जलाशय के निर्माण में बड़ी बाधा उत्पन्न हो गई है। भारत सरकार ने इस परियोजना से पल्ला झाड़ लिया है। जल शक्ति मंत्री सी आर पाटिल ने काराकाट के सांसद राजाराम सिंह द्वारा दिए गए इस परियोजना से संबंधित ज्ञापन के जवाब में कहा है कि भारत सरकार की भूमिका ऐसी परियोजनाओं में तकनीकी सहायता और आंशिक वित्तीय सहायता प्रदान करने तक ही सीमित रहती है। इस पत्र के प्राप्त होने के बाद राजाराम सिंह ने दैनिक जागरण से कहा कि वह इतनी आसानी से इस परियोजना के मुद्दे को छोड़ने वाले नहीं है। उनके जीवन का यह लक्ष्य है। इस परियोजना के निर्माण पर बिहार के जल जीवन और हरियाली निर्भर है। राजाराम सिंह जल शक्ति मंत्रालय के संसदीय सलाहकार समिति में सदस्य भी हैं। उन्होंने कहा कि सदन में वे सवाल उठाते रहेंगे। कई चरण पर काम करेंगे। आधुनिक भारत की सबसे प्राचीन नहर प्रणाली को वह मरने नहीं देंगे। कहा कि प्रधानमंत्री से उन्होंने मिलना चाहा, लेकिन वह नहीं मिले। जल शक्ति मंत्री से मिलने को कहा गया। वह भी नहीं मिले। विभाग को ज्ञापन दिया। इनके अलावा इस ज्ञापन पर आरा के सांसद सुदामा प्रसाद, सासाराम के सांसद मनोज कुमार, बक्सर के सांसद सुधाकर सिंह और सुरेंद्र प्रसाद यादव के हस्ताक्षर हैं। जल शक्ति मंत्री ने अपने जवाब में कहा है कि जल संसाधन परियोजनाओं की आयोजना, कार्यान्वयन, वित्त पोषण और रखा रखाव राज्य सरकारों द्वारा स्वयं अपने संसाधनों और प्राथमिकता के अनुसार किया जाता है। भारत सरकार की भूमिका इस मंत्रालय की योजनाओं के अंतर्गत कुछ चिन्हित परियोजनाओं को तकनीकी सहायता और आंशिक वित्तीय सहायता प्रदान करने तक सीमित है। इंद्रपुरी जलाशय के प्रस्ताव को अंतर राज्यीय मुद्दों के कारण सह बेसिन राज्यों से एनओसी प्राप्त करके नए सिरे से प्रस्तुत करने के अनुरोध के साथ केंद्रीय जल आयोग द्वारा मार्च 2022 में ही राज्य सरकार को वापस कर दिया गया था। 



मामला केंद्र का, राज्य का नहीं

फोटो-राजाराम सिंह

 इस मामले में सांसद राजाराम सिंह का कहना है कि निर्माण स्थल बिहार और झारखंड दोनों प्रदेश में पड़ते हैं। बिहार के रोहतास के नौहट्टा प्रखंड के मटिआंव और झारखंड के गढ़वा जिला के क्षेत्र में निर्माण स्थल है। जबकि तीसरा कोण उत्तर प्रदेश का भी है। इसलिए यह स्वयं में राज्य स्तरीय नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा है। जिसे सुलझाने की जिम्मेदारी भारत सरकार की है। इस जिम्मेदारी से केंद्र को भागने नहीं दिया जा सकता है।




समझौते के कारण समय पर पानी नहीं मिलता 

मगध और शाहाबाद के पांच सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित्र व राजा राम सिंह के अधिकृत लेटर पैड पर प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन में कहा गया है कि 1874 में बनी ऐतिहासिक सोन नहर प्रणाली दम तोड़ रही है। इंद्रपुरी बाराज से पर्याप्त पानी नहीं मिलता है। इसका बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 1990 में शिलान्यास किया था और तब से यह परियोजना लंबित है। बिहार सोन के पानी का इस्तेमाल करने वाला पहला राज्य रहा है। नदी के पानी के बंटवारे उपलब्धता के लिए बाणसागरव रिहंद समझौता के तहत समय पर बिहार को पानी नहीं मिलता। पानी तब छोड़ा जाता है जब चारों ओर पानी पानी रहता है। नदी में आया पानी बहता हुआ गंगा होकर समुद्र में चला जाता है। सोन के इलाकों में बाढ़ व कटाव पैदा करता है। जिससे जन-धन की भारी क्षति होती है। ज्ञापन में कहा गया है कि सोन नहरों से आच्छादित बिहार के जिले रोहतास, औरंगाबाद, अरवल, भोजपुर, पटना, कैमूर, बक्सर और गया धान का कटोरा कहा जाता है। यह देश का प्रमुख बहुफसली क्षेत्र है। 


पानी का अभाव झेल रहे थर्मल पावर

ज्ञापन में बताया गया है कि औरंगाबाद में सोन के किनारे बने एनटीपीसी और बीआरबीसीएल थर्मल पावरों को बरसात के पहले पानी का अभाव झेलना पड़ता है। खतरे की घंटी भी पहले बज चुकी है। 


जीवन का आधार है सोन का पानी


सांसद ने लिखा है कि सोन का मीठा पानी मछली समेत लाखों जीवों, मनुष्यों, वनस्पतियों व पेड़ पौधों के जीवन का आधार है। बिहार जिसका बड़ा हिस्सा बाढ़ व सुखाड़ से पीड़ित रहता है। इस कृषि प्रधान इलाके में इसकी सिंचाई प्रणाली को बचाना व सशक्त बनाना राज्यहित व राष्ट्रहित में है।


आधुनिक मशीनों के साथ न बढ़ने से बंद हो गया बर्तन उद्योग

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अब सुनाई नहीं देता कभी सोन तक जाने वाला ठक-ठक का समृद्धि गीत 

वर्ष 1920 से 1960 के दशक में यहां बनते थे बड़े पैमाने पर बर्तन

कभी शहर में लगाए गए थे तीन बेलन मिल

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर की तरह ही कभी समृद्ध हुआ करता था दाउदनगर का पीतल बर्तन उद्योग। यह आज पूरी तरह समाप्त हो गया है, जबकि बिहार के ही आरा के नजदीक परेव में बर्तन उद्योग बड़े स्तर का है। वास्तव में समय के साथ मशीनीकरण के दौड़ में पीछे रह जाने के कारण बर्तन उद्योग पिछड़ता चला गया और अंततः समाप्त हो गया। बदलते दौर और मिजाज के साथ न चल पाने का खामियाजा इस उद्योग को भुगतना पड़ा। दाउदनगर में पूर्व दिशा से दो जातियां आई थीं। कसेरा जो पीतल का काम करते थे और ठठेरा जो कासकूट (लोटा) बनाने का काम करते थे। यहां तमेढ़ा जाति की बसावट नहीं है। यह जाति तांबा का काम करती है। यहां तांबा का बर्तन नहीं बनता था। शुक्र बाजार ठाकुरबारी से लेकर नगर पालिका तक और पूर्व में बम रोड तक कसेरा एवं ठठेरा बसे हुए थे। अब भी हैं। बम रोड में भी कभी इनकी आबादी थी, अब नहीं है। यहां का इतिहास देखें तो एक जमाना ऐसा था खासकर वर्ष 1920 के बाद से लेकर 1960 के दशक तक यहां का बर्तन उद्योग चरम पर था। बर्तन बनने से उपजने वाली ठक-ठक की आवाज कहते हैं सोन उस पर नासरीगंज तक सुनाई रात में पड़ती थी। अब ऐसी आवाज ही नहीं निकलती क्योंकि काम ही नहीं होता है। वर्ष 1965 में जब भारत चीन युद्ध हुआ था तब सैनिकों के लिए भी यहां के बने बर्तन भेजे गए थे। वर्ष 1910 में सिपहां में संगम साहब राम चरण राम आयल एंड राइस मिल की स्थापना हुई थी। उसी के बाद यहां तीन रोलिंग या बेलन मिल लगाया गया था। शुक बाजार में उमाशंकर जगदीश प्रसाद रोलिंग मिल, हनुमान मंदिर के नजदीक श्री राम बेलन मिल और चावल बाजार में संगम साहब रामचरण साव रोलिंग मिल लगाया गया था। इससे बर्तन निर्माता को काफी सहूलियत हुई और बर्तन उद्योग यहां कुटीर उद्योग बन गया था। इसकी काफी चर्चा रही है। लेकिन अब सब बर्बाद हो गया तो कई बार इसे बेहतर या समृद्ध करने की राजनीतिक कोशिश हुई लेकिन वह हमेशा अपर्याप्त ही साबित हुई।


30 दुकानदार, 20 करोड़ का कारोबार 

शहर में बर्तन बिक्री की लगभग 30 दुकान हैं। अब यह दुकानदार यहां पीतल व कांसा के बर्तन आरा के समीप स्थित परेव, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर और हरियाणा के जगाठरी एवं अन्य स्थानों से खरीद कर बिक्री के लिए लाते हैं। बर्तन दुकानदारों की मानें तो एक साल में लगभग 20 करोड रुपये का कारोबार दाउदनगर में बर्तन व्यवसायी करते हैं।


एक निर्माता, चार पालिश कर्ता  

शहर में बर्तन उद्योग खत्म हो गया लेकिन भोला कसेरा अभी भी ऐसे हैं जो हांडी (पीतल का तसला) बनाते हैं। इनके अलावा कृष्णा कसेरा, टना लाल, विष्णु कसेरा, और बेनी लाल ऐसे हैं जो पुराने बर्तनों को पालिश कर चमकाने का काम करते हैं।




पटवट से गगनचुंबी हुआ मंदिर, बढ़ी धार्मिक गतिविधियां

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76 वर्ष में परिवर्तित हो गया धार्मिक वातावरण

शहर में धर्म, कर्म व ऊर्जा का केंद्र बन गया हनुमान मंदिर 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 76 वर्ष अर्थात लगभग आठ दशक में शहर की धार्मिक गतिविधियों, वातावरण और आस्था के केंद्रों में काफी परिवर्तन हुआ है। शहर में धर्म, कर्म और सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र बिंदु बनकर उभरा है बाजार स्थित शहर का मुख्य हनुमान मंदिर। यहां प्रतिदिन निरंतर श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है और उसी अनुपात में आस्था भी। शहरी ही नहीं बल्कि आसपास के बड़े क्षेत्र के लोग जब दो पहिया, चार पहिया या कोई भी नया वाहन खरीदने हैं तो यहां उसकी पूजा अर्चना करते हैं। जन्मदिन हो या विवाह का वर्षगांठ, सपरिवार लोग यहां आकर ईश्वर के आगे श्रद्धा नवत होते हैं और ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यहां हनुमान मंदिर का निर्माण तो 1949 में ही हो गया था। तब पटवट था। बीते 76 वर्ष में काफी कुछ परिवर्तित हो गया। मंदिर अब गगनचुंबी हो गया। पटना हनुमान मंदिर की अनुकृति है यह मंदिर। अब सिर्फ यहां बजरंगबली नहीं बल्कि मां दुर्गा, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, काली मां की अष्टभुजी, भगवान धन्वंतरि की प्रतिमाएं धीरे-धीरे कर श्रद्धालुओं ने स्थापित कर दी। मंदिर का पूरा स्वरूप ही अब बदल गया है। इस मंदिर के ठीक सामने की जगह में भी निर्माण का काम हो रहा है। मंदिर संचालकों की योजना बड़ी है और जिस दिन यह मूर्त रूप होगा पाएगा, उस दिन आस्था के इस केंद्र का महत्व और भव्य व विराट हो जाएगा।



स्थापित की जानी है ये प्रतिमाएं


हनुमान मंदिर कमिटी के सचिव व मुख्य पूजा व्यवस्थापक पप्पू गुप्ता बताते हैं कि मंदिर के सामने भी निर्माण कार्य हो रहा है। इसमें प्रथम तल पर राम दरबार की प्रतिमाएं और भूतल पर गणेश की प्रतिमा इसी वर्ष अगस्त के बाद कभी भी स्थापित की जानी है। आगे चलकर दूसरे तल पर महर्षि बाल्मीकि और संत तुलसीदास की प्रतिमा स्थापित की जानी है। 



ऐसे आरंभ हुई मंदिर निर्माण की बात


यहां पहले से जो हनुमान मंदिर था वह पटवट का था। ऊपर तले पर करकट लगा हुआ था। मंदिर जीर्णोद्धार की बात चली तो किसी ने कहा कि मंदिर निर्माण की बात वही करेगा जो 125 रुपये का चंदा देगा। मंदिर निर्माण को लेकर तब सक्रिय सुनील केसरी बताते हैं कि यमुना प्रसाद स्वर्णकार, नंदलाल प्रसाद, रामजी प्रसाद केसरी, लक्ष्मीनारायण स्वर्णकार, कुमार नरेंद्र देव, रमेश कुमार, राजा राम प्रसाद, नारद प्रसाद, बीरेंद्र प्रसाद सर्राफ, सत्यनारायण प्रसाद उर्फ मुनमुन और अन्य लोग जुटे। कृष्णा प्रसाद स्वर्णकार और कुमार नरेंद्र देव को मंदिर का नक्शा बनाने की जिम्मेदारी दी गई। शिलान्यास कार्यक्रम के लिए चंदा इकट्ठा किया गया और फंड जुटाने के लिए सिनेमा हाल में चैरिटी शो हुआ। फिर बात आगे तक चली गई।



खानदानी कोठीवाल थे मंदिर निर्माता बाबा हरिदास


विक्रम संवत 2006 यानी वर्ष 1949 के अक्षय तृतीया तिथि को बाबा हरिदास ने हनुमान मंदिर की स्थापना करायी थी। इनके खानदान और मंदिर कमेटी से जुड़े सुरेश कुमार गुप्ता ने बताया कि बाबा हरिदास के पिताजी का नाम गणेश प्रसाद कसौंधन था। वह शुक बाजार के स्थाई निवासी थे। खानदानी कोठीवाल थे। यानी हुंडी और बिल का काम करते थे। बचपन से ही वे बैरागी स्वभाव के थे इसलिए उन्होंने विवाह नहीं किया। जिस जमीन पर मुख्य मंदिर स्थापित है वह जमीन इनकी खानदानी जमीन थी। बंटवारा में मंदिर की जमीन किसी के हिस्से नहीं लगी। जो जमीन बाबा हरिदास जी के हिस्से में थी उसे बेचकर मंदिर बनाने के लिए खर्च कर दिया था। काफी समय तक बाबा हरिदास ही मंदिर के पुजारी रहे थे। 



22 फरवरी 1988 को जीर्णोद्धार


वर्तमान भव्य मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए 22 फरवरी 1988 को आइपीएस अधिकारी किशोर कुणाल ने आधारशिला रखी थी। 

उन्होंने पहले ना कहा कहते हुए कहा कि लोग विवादित जमीन पर शिलान्यास करा लेते हैं जिससे उनकी बदनामी होती है। इसके बाद जब उन्हें पूरी बात बताई गई तो आश्वस्त हुए और तब वे समय दे सके। तब कुमार नरेंद्र देव वाहन लेकर श्री कुणाल को लेने पटना गए थे। बाइक रैली निकाली गई। लखन मोड़ पर ही वे महिलाओं के आग्रह पर वाहन से नीचे उतर कर मंदिर स्थल तक पैदल गए और शहर में ‘जब तक सूरज चांद रहेगा कुणाल तेरा नाम रहेगा’, किशोर कुणाल अमर रहे जैसे नारे बुलंद होते रहे।






Tuesday, 25 February 2025

सवारियों को हाथ रिक्शा नहीं अब ढ़ो रहा ई रिक्शा

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शहर में आवागमन के लिए तकनीकी सुविधाएं बढ़ी

हर घर से कुछ दूरी पर ई रिक्शा उपलब्ध

 उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : शहर में कभी हाथ रिक्शा ही सवारी ढ़ोने का इकलौता उपलब्ध साधन हुआ करता था। चाहे बस पकड़ने के लिए बस स्टैंड जाना हो या स्वास्थ्य सुविधा के लिए अस्पताल जाना हो। या फिर किसी अन्य काम से शहर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से जाना हो। रिक्शा ही शहर में एकमात्र साधन हुआ करता था। हाथ रिक्शा से जुड़े कई किस्से भी शहर में आज भी लोग चर्चा करते हैं। जब धीरे-धीरे परिवहन के क्षेत्र में विकास हुआ, आधुनिकता आई तो पहले आटो ने शहर में आकर हाथ रिक्शा को रिप्लेस कर दिया। लगभग हाथ रिक्शा विलुप्त होते चले गए। बीते दशक में यह परिवर्तन ऐसा हुआ, ऐसा छा गया ई रिक्शा कि आज शहर में एक भी हाथ रिक्शा देखने के लिए भी नहीं मिलता। कुछ रिक्शावानों ने भी ई-रिक्शा खरीद ली। अब हर गली मोहल्ले में या घर से बमुश्किल आधा किलोमीटर की दूरी पर ई रिक्शा शहर में बहुत ही सहजता से उपलब्ध है।



सुविधा के साथ कठीनाई भी बढ़ी


आधुनिक विकास के साथ शहर में यातायात मुश्किल होती गयी। ई रिक्शा वाले बड़ी समस्या बनकर शहर में उभर गए हैं। स्थिति यह है कि जहां भी सड़क से टी बनाती हुई कोई संपर्क पथ है, वहीं पर ई रिक्शा खड़ा कर देते हैं। हर मोड़ पर ई-रिक्शा रोक कर सवारी चढ़ाते उतारते हैं। नतीजा दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। आना जाना कठिन होता चला गया। बाइक वालों को संभल कर चलना होता है, अन्यथा दुर्घटनाएं प्रायः हो सकने का खतरा होता है। 


ई रिक्शा वालों पर नियंत्रण में प्रशासन नाकाम


ई रिक्शा वालों पर नियंत्रण में प्रशासन नाकाम रहा है। जब यहां अनुमंडल पदाधिकारी के रूप में कुमारी अनुपम सिंह पदस्थापित थी तो उन्होंने कई बार ई रिक्शा वालों के साथ बैठक की। उन्हें चेतावनी दी। ड्रेस कोड लागू करने, लाइसेंस लेने, ई-रिक्शा पर चालक का नाम और मोबाइल नंबर लिखने की बात की गयी। लेकिन यह सब कभी भी अमल में नहीं आ सका। नतीजा ई रिक्शा चालकों के पास ना कोई ड्रेस कोड है ना उनकी कोई पहचान बताती आई कार्ड या ई रिक्शा पर नाम और पते या मोबाइल नंबर लिखे हुए हैं।


अभियान चलाकर होगी कार्रवाई

एसडीओ मनोज कुमार ने कहा कि ई-रिक्शा वालों के खिलाफ यातायात बेहतर करने के उद्देश्य से अभियान चलाया जाएगा। जागरूक करने का प्रयास किया जाएगा। कानून सम्मत कार्रवाई भी की जाएगी।




दाउदनगर और नासरीगंज को सोनप से मिला आर्थिक संबल

 बदलता शहर 16



1100 करोड रुपये की परियोजना में 600 करोड सिर्फ भूमि अधिग्रहण पर खर्च 

रोहतास और औरंगाबाद के क्षेत्र में बढ़ी व्यापारिक गतिविधियां

पशुलालकों, किसानों, फल, दूध, शब्जी समेत अन्य सामग्री आते हैं बेचने

 उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : वर्ष 2019 में दाउदनगर नासरीगंज सोनपुल का निर्माण कार्य हुआ। इससे दाउदनगर के साथ नासरीगंज यानी रोहतास और औरंगाबाद के बड़े हिस्से को आवागमन की बड़ी सुविधा मिली। पहले दाउदनगर और नसीरगंज के बीच यातायात का एकमात्र साधन नाव यातायात हुआ करता था। या फिर दाउदनगर से बारुण व डेहरी होकर नासरीगंज जाना आना पड़ता था। इससे सिर्फ रिश्तेदारियां निभाई जाती थी। व्यापारी गतिविधियां अमूमन नहीं होती थी। जब पुल का निर्माण हुआ, आवागमन की सुविधा सहज हुई तो व्यापारी गतिविधियां भी बढ़ गई। दाउदनगर का बाजार हो या नासरीगंज का बाजार दोनों बाजारों की रौनक बढ़ गई। लगभग 1100 करोड रुपये इस पुल और संपर्क पथ निर्माण की परियोजना पर खर्च हुआ। इसमें लगभग 600 करोड रुपये तो सिर्फ भू अर्जन पर खर्च हुआ। यह राशि निश्चित रूप से उनको मिली जिनकी जमीनों से कुछ हिस्सा पुल और संपर्क पथ निर्माण के लिए लिया गया। निश्चित रूप से यह लोग स्थानीय हैं। स्वाभाविक है कि जब 600 करोड रुपये की राशि किसानों के पास गई तो बाजार को भी इसका एक हिस्सा प्राप्त हुआ। लगभग 10 किलोमीटर की दूरी के कारण नासरीगंज के व्यवसाई दाउदनगर से व्यापार करने लगे। जो पहले डेहरी या अन्यत्र बाजार जाते थे। इससे दाउदनगर बाजार को काफी आर्थिक मजबूती मिली। शहर में और इसके आसपास से सवारी वाहन हो या चार पहिया वाहन उनकी आवाजाही तो बढ़ी ही मालवाही ट्रकों का भी आवागमन काफी बड़े पैमाने पर शुरू हुआ। खासकर बालू का व्यापार इस के जरिए होने लगा। पुल के दोनों किनारों पर बाजार सज गए। और इससे लोगों को न सिर्फ रोजगार मिला बल्कि अच्छी आमदनी का यह पुल स्रोत भी बन गया। स्थिति यह है कि या शहर में हर आयोजन में इस रास्ते रोहतास के नजदीकी क्षेत्र से लोग पहुंच कर यहां के कार्यक्रमों, उत्सवों, समारोहों में शामिल होते हैं। इससे बाजार को नई गति, ऊर्जा और ताकत मिल रही हैं। पशुपालकों, किसानों के साथ फल, शब्जी, दूध समेत कई सामग्री बेचने वाले दाउदनगर सोन पुल पार कर आते हैं और कमाई करते हैं।




सोन पर यहां बना है पुल

बिहार शरीफ से डुमरांव तक जाने वाली 92 किलोमीटर लंबी एनएच 120 पर दाउदनगर और नासरीगंज के बीच सोन पुल का निर्माण हुआ है। यह निर्माण बीआरपीएनएल (बिहार राज्य पुल र्निर्माण निगम लिमिटेड) द्वारा कराया गया है। 



इस पथ का नाम एनएच 120 इसलिए


बिहार में राष्ट्रीय उच्च पथ 20 बख्तियारपुर से उड़ीसा के सातभाया तक जाती है। यह 658 किलोमीटर लंबी है। इसी एनएच की शाखा सड़क है एनएच 120 जो बिहार शरीफ से डुमरांव तक जाती है। क्योंकि एनएच 20 की यह शाखा मार्ग है इसीलिए इसका नाम एनएच 120 है। एनएच 120 कुल 92 किलोमीटर यानी 57 मील लंबा है। जो बिहार शरीफ से शुरू होकर डुमरांव तक पहुंचता है। इसमें बिहार शरीफ के बाद नालंदा, राजगीर, हिसुआ, गया, दाउदनगर, नासरीगंज, काराकाट, बिक्रमगंज, नारायणपुर, मलिहाबाद और नवानगर प्रमुख स्थान पढ़ते हैं।


55 वर्ष बाद हुआ उच्च शिक्षा का सपना पूरा

 बदलता शहर 15




इकलौता अंगीभूत कालेज है दाऊदनगर महाविद्यालय 

पांच विषयों में जुलाई से होगी पढ़ाई 

बहुजनों तक उच्च शिक्षा की बढ़ी पहुंच

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : यह किसी सपने के पूरा होने से कम नहीं है। जब दाउदनगर कालेज में आने वाले सत्र से पांच विषयों में पीजी की पढ़ाई प्रारंभ होगी। आमतौर पर नए सत्र का प्रारंभ एक जुलाई से मगध विश्वविद्यालय में होता है। उम्मीद की जा रही है कि इसी तिथि से पांच विषयों में पढ़ाई प्रारंभ हो जाएगी। लेकिन यह यात्रा अभी पूरी नहीं होगी। कला की पढ़ाई की सुविधा तो मिली लेकिन विज्ञान में एक सिरे से शून्यता अभी बरकरार है। आने वाले वक्त में विज्ञान में भी पीजी की पढ़ाई हो सकेगी। इसकी उम्मीद भर की जा सकती है। क्योंकि जब इन विषयों के उद्घाटन से संबंधित समारोह में क्षेत्रीय सांसद राजाराम सिंह को संबोधन का मौका मिला तो उन्होंने इस ओर इशारा किया। कहा-कला के बिना विज्ञान समृद्ध नहीं हो सकता। और उनकी ओर देखते हुए कुलपति डा.शशि प्रताप शाही मुस्कुरा भर गए। जरा कल्पना करिए कि जब शहर में माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था अपर्याप्त थी, तभी दो सितंबर 1970 को शहर के नौजवानों ने एक सपना देखा था और महाविद्यालय स्तर पर पढ़ाई की व्यवस्था आरंभ की थी। आज उनके सपने साकार हो रहे हैं तो प्रतिदान में दाउदनगर महाविद्यालय भी उन्हें कुछ दे रहा है। महाविद्यालय के प्रिंसिपल एम शम्सुल इस्लाम ने घोषणा की है कि एक से दो महीने के अंदर महाविद्यालय परिसर में भगत सिंह के साथ महाविद्यालय की बुनियाद में शामिल डा. राम परीक्षा यादव और डा. शमसुल हक की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। अनुमण्डल के एकमात्र अंगीभूत महाविद्यालय की स्थापना डा. रामपरीखा यादव, डा. शमशुल हक, डा. श्याम देव प्रसाद, ऋकेश्वर प्रसाद एवं अन्य ने दो सितम्बर 1970 को किया था। तब बाजार स्थित हमदर्द दवाखाना मैदान में स्थित बरियार साहब के मकान (अभी यहां यश एकेडमी चलता है) में शुरु किया गया। बिहटा कालेज में लेक्चरर गजबदन शर्मा पहले प्राचार्य बने जो पिसाय के निवासी थे। उन्होंने यहां डा.(अब स्व.) श्याम देव प्रसाद को कालेज खोलने के लिए प्रेरित किया, तत्पश्चात तत्कालीन प्रोजेक्ट एक्सक्युटिव आफिसर जुबैर अहमद ने भी रूचि ली और कालेज वजूद पा गया। सत्येन्द्र नारायण सिंहा ने उद्घाटन किया था। वे बाद में मुख्यमंत्री बने थे। यहां से कालेज नीमा में धरणी सिंह के घर में चला। फिर 1976 में प्रार्चाय प्रो. रूपनारायण सिंह के प्रयास से वर्तमान निजी भवन की आधारशीला रखी गयी। 



तब ग्रेजुएट बनना था बहुत बड़ा सपना

बहुजनों तक उच्च शिक्षा पहुंचाने का यह प्रथम प्रयास था। इससे पहले यहां के लोगों के लिए ग्रेजुएट बनना सपना था। समृद्ध तबका औरंगाबाद, गया, पटना या अन्यत्र स्थानों पर जाकर उच्च शिक्षा ग्रहण किया करता था। इस कालेज की स्थापना ने बड़ी जनसंख्या के लिए उच्च शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया। 


अब तीन और डिग्री कालेज

अब शहर में मगध विवि से स्थायी संबद्धता प्राप्त महिला महाविद्यालय के अलावा, प्रस्वीकृति प्राप्त के.के.मंडल साइंस कालेज और प्रस्वीकृति प्राप्त व बिहार सरकार से मान्यता प्राप्त रामरति सुंदर शीला महाविद्यालय अंछा संचालित होता है। इससे बड़ी आबादी तक ग्रेजुएट स्तर की शिक्षा पहुंचने लगी।


Sunday, 23 February 2025

लगभग 300 साल प्राचीन है शुकबाजार का शिव मंदिर

महाशिवरात्रि को लेकर शिवालय का हो रहा है रंग रोगन 



कई बार सड़क निर्माण से मंदिर में उतरने की बनी स्थिति 

संवाद सहयोगी, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 26 फरवरी को महाशिवरात्रि है। इसे लेकर तमाम शिवालयों के रंग रोगन और मरम्मत या सुंदरीकरण के कार्य होने लगे हैं। शहर के शुक बाजार स्थित शिव मंदिर का भी रंग रोगन हो रहा है। यह मंदिर कितना पुराना है या बताता हुआ कोई शिलालेख मंदिर में नहीं है। दावा किया जाता है कि मंदिर शहरी क्षेत्र का सबसे पुराना मंदिर है। महत्वपूर्ण है कि दाउदनगर 17 वीं सदी का शहर है और नई शहर में यह मंदिर है। इसे लगभग 300 साल पुराना माना जा सकता है। कई बार सड़क पर सड़क निर्मित होते रहने के कारण कभी सतह से ऊंचा रहा मंदिर आज जमीन में धंसा हुआ दिखता है। अभी सीढ़ी के जरिए मंदिर में नीचे उतरना पड़ता है, जबकि पहले सीढ़ी से मंदिर पर चढ़ना पड़ता था। इसके पुजारी धनंजय कुमार मिश्रा हैं और इनके पिता दादा भी यहां पुजारी रह चुके हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में पूरी तरह शुद्ध और पवित्र आत्मा रखकर श्रद्धालु जो भी मांगता है वह पूरा होता है। यहां स्थापित महादेव की महिमा दूर-दूर तक है। लोग आते हैं और उनकी मांगे पूरी होती हैं।


मंदिर निर्माण की यह विशेषता 


 इस शिवालय की विशेषता यह है कि इसकी दीवारें काफी मोटी मोटी हैं। आम तौर पर शहर में इतनी मोटी दीवारें अन्य मंदिरों की नहीं हैं। लगभग 30 इंच, अर्थात ढाई फ़ीट। ये दीवारें चुना सुर्खी से गधेड़ीया इंट को जोड़कर बनाई गई है। इसे मुगलकालीन इंट भी माना जाता है। ये आकार में पतली होती हैं।



तसमई की खास परंपरा 

मंदिर की देख रेख लड़ने वाले धीरेंद्र कुमार रत्नाकर बताते हैं कि प्रत्येक महाशिवरात्रि को तसमई का प्रसाद वितरण करने की उनकी परंपरा है। 


18 साल से कर रहे रंग रोगन 

मंदिर की देखरेख करने वाले धीरेंद्र कुमार रत्नाकर कहते हैं कि बीते 18 साल से निरंतर वह मंदिर का रंग रोगन कर रहे हैं। उनकी श्रद्धा और आस्था मंदिर से जुड़ी हुई है। इस क्रम में किसी से वह सहयोग नहीं मांगते। कोई देते हैं तो वह स्वीकार्य है। उनसे पहले भी कई लोग आपसी सहयोग कर मंदिर का रंग रोगन करते रहे हैं।


अब भी हैं गुलामी की प्रतीक नील कोठियों के खंडहर

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शहर में थी तीन, बची हैं दो नील कोठियां

नील का काम होने के कारण मुहल्ले का नाम- नीलकोठी

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 

जब नहरें बनी तो आवागमन आसान हुआ। स्टीमर चलने लगे और पटना आना जाना सहज हो गया। नतीजा अंग्रेजों ने नील उत्पादन के लिए खेती से निर्माण तक का काम करना शुरू किया। नील उत्पादन को शोषण के रूप में ही देखा माना गया है। निलहे आंदोलन की याद आ जाती है। ये गुलामी की प्रतीक हैं। शहर में तीन नील कोठियां बनाई गई थी। वर्तमान वार्ड संख्या छह में नील कोठी मुहल्ला का नाम है। स्वाभाविक है यहां नील उत्पादन का कार्य होता होगा। भखरूआं में बीआरसी. भवन से पूरब वार्ड संख्या 27  और बुधु बिगहा प्राथमिक स्कूल से पूरब एवं बम रोड देवी मंदिर से पश्चिम वार्ड संख्या 16 में बड़ी पक्की नील कोठियों के दो अवषेश स्मृति के रूप में बचे हुए हैं। गड़ही पर भी कहते हैं, एक नील कोठी हुआ करता था, जिसका वजूद अब नहीं बचा है। जमींदोज हो गया है, स्मृति के लिए भी शेष नहीं बचा। वार्ड संख्या 16 में स्थित खंडहर की मापी इस संवाददाता ने स्वयं की है। साथ दिया था तब अनंत प्रसाद ने। दक्षिण से उत्तर करीब 120 फीट लंबा तथा करीब 35 फीट चौड़ा पक्का निर्माण है यहां। पतली लाल ईंटों और चूना-सुर्खी से निर्मित है। कुल चार हौदा साढ़े सोलह फ़ीट के बने हैं। इसी समान आकार में इस निर्माण से करीब चार फीट नीचे भी चार हौदा बना हुआ है। ऊंचाई वाले हौदों में संभवत: 'हचकल’ लगाने के लिए रिंग की तरह का पक्का निर्माण हैं, जो शायद गाद को हिचकोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इन चारों हौदों से सटे करीब पांच फीट ज्यादा ऊंचा 44 गुणा 36 फीट में बड़ा गहरा हौदा है, जो नाले के जरिए अपने से सटे हौदों से जुड़ा हुआ है। बुजूर्ग बताते हैं कि कभी बगल में चार कमरों की छावनी थी। बगल में एक कुंआ था। यहीं से नीलकोठी का संचालन होता था। दाऊदनगर गया रोड से उत्तर बीआरसी भवन से पूरब विशाल नीलकोठी का वजूद है। यहां दो कतार में कुल नौ-नौ हौदा पन्द्रह गुणा पन्द्रह आकार के हैं। यहां उत्तर से दक्षिण की ओर यह निर्माण करीब 220 फीट लंबा एवं 40 फीट चौड़ा है। यहां अमीन विजय स्वर्णकार एवं अवधेष कुमार के साथ इस संवाददाता ने मापी की है। छोटे आकारों के हौदों के माथे पर 16 गुणा 48 फीट का विशाल ऊंचा, गहरा हौदा है। दोनों नील कोठियों की निर्माण शैली में थोड़ा अंतर है। नौ-नौ समानांतर हौदों के बीच बड़ा नाला है। ऊंचे-बड़े हौदे से पूरब करीब 100 फीट दूर बड़ा कूंआ है। इस दूरी को पूलों पर टीका बड़ा नाला पाटता है। एक गढढा बगल में है, जिसमें संभवत: बड़ा हौदा जब ओवरफ्लो होता होगा तो तरल रसायन उसके सहारे बहता होगा।



निलकोठियों का निर्माण काल ज्ञात नहीं

बहुत कोशिश के बावजूद इन नील कोठियों के निर्माण से संबंधित तारीख या अन्य सूचना संबंधित शिलालेख नहीं मिला है। इसलिए यह पक्के तौर पर ज्ञात नहीं है कि ये नीलकोठियां वास्तव में बनी कब हैं। इसके लिए व्यापक शोध की जरूरत है। कहीं यह निर्माण 13 सितम्बर 1872 के बाद का तो नहीं, जब मुख्य पटना कैनाल का उदघाटन हुआ था? क्योकिं गोरों के व्यापार का मुख्य रास्ता इन्द्रपुरी-पटना कैनाल ही था। कब तक ये नील कोठिययां गुलजार रहीं, यह भी ज्ञात नहीं है। संभवत: आजादी से पूर्व ही, जब जर्मनी ने कृत्रिम नील का आविष्कार कर लिया था। तभी ये कोठियां गुलजार रही होंगी, कुछ वर्ष बाद तक भी।




नई पीढ़ी को देखने समझने की जरूरत

शहर में बची हुई दो नील कोठियों के अवशेष को इस रूप में विकसित किया जाना चाहिए कि नई पीढ़ी के लोग उसे देख और समझ सके। नीलहे आंदोलन से लेकर नील की खेती और निर्माण को लेकर अंग्रेज भारतीयों का खूब शोषण करते थे। शहरियों का यह सौभाग्य है कि उन्हें इस नील की उत्पादन की पूरी प्रक्रिया को समझने के लिए उनके पास दो नील कोठियां उपलब्ध है। लेकिन वह खंडहर में तब्दील है। यदि उन्हें इस रूप में विकसित किया जाए कि लोग उसे देख सके तो उन्हें समझने का मौका मिलेगा। इन्हें संरक्षित भी किया जा सकता है और पर्यटन के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।



Saturday, 22 February 2025

नहर से आई समृद्धि, लोगों ने किया यशोगान

 



रोजगार से लेकर कृषि क्षेत्र को किया समृद्ध

लोगों ने कहा- परजा के पालन को नहर खुदवाया

ऐसा जलस्त्रोत जिसने यातायात व पेयजल, सिंचाई सुविधा दी

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :

दाउदनगर चट्टी था और शहर बनने के लिए छटपटा रहा था। तभी नहर की खुदाई प्रारंभ हुई। नहर ने यहां के लोगों को काम दिया और एक बड़ी आबादी इससे कमाने लगी। एक बड़े वर्ग को मिट्टी कटवा कहा गया। शायद यह नाम नहर खुदाई के कारण ही मिला था। सिंचाई के लिए नहर का निर्माण हुआ। लोगों को काम मिला और जब नहर से खेतों को पानी मिलने लगा तो सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो गई। इससे अकाल की चिंता से मुक्ति मिली। स्वाभाविक है कि नहर की खुदाई और उससे सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने के कारण समृद्धि भी आई। जब नहर प्रणाली का कार्य पूरा हो गया तो दिसंबर 1878 में नौपरिवहन के लिए इसे खोल दिया गया। इससे सिंचाई के साथ साथ नौपरिवहन से यातायात सुगम हो गया। इससे यहां रोजगार मिला। व्यापार आसान हो गया।  नतीजा लोगों ने नहर खुदाई को गीत बनाकर गाया। दाउदनगर की संस्कृति जिउतिया की संस्कृति है। इतना बड़ा सामूहिक उत्सव दूसरा नहीं होता। लोक की इसमें व्यापक पैमाने पर भागीदारी होती है। और उसी लोक उत्सव में एक लावणी गया जाता है- प्रजा के पालन को नहर को खुदवाया है। यह बताता है कि नहर के प्रति दाउदनगर के लोगों ने कितनी श्रद्धा व्यक्त की। उसका यशोगान किया। क्योंकि नहर एक कैसा जल स्रोत है जिसने नहर के इस और उस पार की आबादी के बीच आवागमन, पीने के लिए पानी, पशुओं के लिए जल स्त्रोत और खेतों के लिए भी पानी उपलब्ध कराया। ऐसे में उसका यशोगान करना सनातन संस्कृति की आम प्रवृत्ति की तरह ही मानी जाएगी। जिसमें कुछ भी देने वाले के प्रति श्रद्धा का भाव व्यक्त करने की परंपरा रही है।


नहर का विचार 1853 में फौजी अभियंता की


तत्कालीन शाहाबाद में सिंचाई के लिए इस नहर प्रणाली का विचार 1853 में फौजी अभियंता लेफ्टिनेंट सी.एच.डिकेंस ने किया था। जो बाद में जनरल बने। उसने कैमूर पहाड की ढलान से बहने वाले जल के संचय का प्रस्ताव इस्ट इंडिया कंपनी के सामने रखा। जलाशयों से नहरें निकाल कर सिंचाई की योजना बनायी -थी। अधिक छान बीन के बाद 1855 में उसने अपनी नयी रपट पेश की, जिसमें उसने सोन को ही मूलाधार बनाया। यह योजना नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह गुम हो गई। 1860 में उसे फिर आदेश मिला कि वह सारा जिला घुम कर किसानों की आवश्यक्ता अनुसार रपट पेश करे। नये आदेश के बाद 1861 में जो प्रस्ताव सामने रखा उसी को आधार बना कर सोन-नहर-परियोजना बनी। वर्ष 1878 में पूरी सोन नहर सिंचाई प्रणाली बन कर तैयार हो गई। 



नाम पटना बड़ी नहर, लंबाई 57.6 किमी

इंद्रपुरी सोन बराज से निकल कर उत्तर की ओर सोन के लगभग समानांतर ‘पटना बडी नहर’ पटना तक की कुल 57.6 किलोमीटर की यात्रा दाउदनगर, अरवल होते हुए उत्तर-पूरब की तय करती है। सैदाबाद से वह कुछ अधिक पूरब हो जाती है और बिक्रम, नौबतपुर होते हुए बांकीपुर-दानापुर के बीच में दीघा के पास गंगा में अपना बचा खुचा पानी उडेल कर अपनी यात्रा पूरी कर लेती थी। 



जिउतिया में गाया जाने वाला लावणी


परजा के पालन करने को नहर को खुदवाया है

मशहुर है नहर ये लम्बी अंगरेजों का लाया है

पहले तो दूरबीन लगाकर सर्व राह को देख लिया

दूसरे में कम्पास लगार बेलदारो ने चास किया

हरिद्वार से नक्शा लाकर नहर खोदना शुरू किया

जगह-जगह पर साहबों ने ठेकेदारों को ठेका दिया

देखो-देखो चौड़ी नहर खोदन करने आया है

मशहूर है नहर ...........

सोलह फुट गहरा करवाया, बावन फुट चौड़ाई है

पटरी उपर वृक्ष लगाया सुन्दर अति सोहाई है।

नहर से नहरी जो निकली,  नहरी से जो पैन भाया,

पैनों से जो निकली नाली वही जल खेतों में गया

तीन कोस पर लख दो तरफा पुलों से पटवाया है

मशहूर है नहर ........


नहर प्रणाली का विवरण

इस नहर प्रणाली से आठ शाखा नहरें और 12 उपवितरणी या फीडर निकली हुई है। इस नहर का ग्रास कमांड क्षेत्र (जीसीए) 89073 हेक्टेयर और कल्चरेबुल कमांड क्षेत्र (सीसीए) 73000 हेक्टेयर है। सिंचाई का लक्ष्य 65000 हेक्टेयर है जो प्राय: प्राप्त हो जाता है। 


Thursday, 20 February 2025

शहर की सफाई पर खर्च होता है 38 करोड़ 40 लाख रुपये

बदलता शहर -12




कलेक्टिंग प्वाइंट खत्म करने की है आवश्यक्ता

120 कर्मी करते हैं सफाई के काम

शहर को स्वच्छ रखने को करने होंगे कई और कार्य

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : शहर की सफाई की जिम्मेदारी नगर परिषद के पास है। नगर परिषद यह काम स्वयं सेवी संस्था तरक्की से करवाता है। शहर में सफाई की स्थिति जो फिलहाल है उस पर 32 लाख रुपये महीने का खर्च आता है। अर्थात वार्षिक तीन करोड़ 40 लाख रुपये शहर की सफाई पर ही खर्च हो जाता है। तब भी शहर में कई जगह गंदगी की शिकायतें हैं और शहर को और स्वच्छ बनाने के लिए कई स्तर पर काम किए जाने की आवश्यकता बताई जाती है। अभी 120 सफाई कर्मी और आठ सुपरवाइजर हैं। खर्च की राशि अभी और बढ़नी तय है। शहर को और बेहतर तरीके से स्वच्छ रखने के लिए लैंडफिल साइड की जरूरत है जो है नहीं। इसके लिए सरकारी जमीन की तलाश जारी है। हालांकि कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी बताते हैं कि एमआरएफ यानी मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी उपलब्ध है और कचड़ों को वहीं जमा किया जाता है, जहां से उसकी छटनी होती है। शहर में सात से 12 स्थान ऐसे हैं जहां हाथ ठेला से गली मोहल्लों के कचरे इकट्ठे कर रखे जाते हैं। इसे कलेक्टिंग प्वाइंट कहा जाता है। यह जहां भी हैं वहां प्राय: दिन भर गंदगी लगी हुई रहती है। इसे खत्म करने की कोशिश करनी होगी।



हटाए जाएंगे कलेक्टिंग प्वाइंट 

 कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी ने बताया कि शहर में जहां भी कलेक्टिंग प्वाइंट हैं उन्हें हटाया जाएगा, ताकि उस स्थान पर गंदगी देर तक ना रहे। इस व्यवस्था के लिए तीन ट्रैक्टर टेलर और खरीदे जा रहे हैं। शीघ्र ही नगर परिषद को यह ट्रैक्टर उपलब्ध हो जाएंगे। और भी कई उपकरण खरीदे जाने हैं। शहर को स्वच्छ बनाने रखने के लिए जो भी आवश्यक संसाधन होगा उसका क्रय किया जाएगा।


नगर परिषद के पास उपलब्ध संसाधन 

प्राप्त जानकारी के अनुसार नगर परिषद के पास टंकी साफ करने के लिए दो सक्सन मशीन, बड़े नाला साफ करने के लिए एक सुपर सकर, एक जेसीबी, एक स्कीड लोडर, तीन ट्रैक्टर, सभी वार्डों के लिए ठेला गाड़ी उपलब्ध है। पांच ट्रीपर है, जिसमें दो खराब है और तीन कार्य कर रहे हैं।


Wednesday, 19 February 2025

1885 का शहर है बस स्टैंड से अब तक वंचित

 बदलता शहर - 11





निर्माण छूटा अधूरा, मामला न्यायालय में लंबित 

निर्माण के लिए 40 लाख रुपए नप के खाते में शेष

रोहतास, बारुण, औरंगाबाद या पटना के लिए नहीं खुलती है बसें

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :

10 साल पूर्व शहर में बस स्टैंड का निर्माण कार्य पासवान चौक के पास प्रारंभ हुआ था। भू स्वामित्व से जुड़ा एक मामला न्यायालय में पहुंचा और कार्य बंद हो गया। नतीजा आज तक इसका निर्माण पूरा नहीं हुआ। लाखों रुपये की राशि इसके निर्माण पर बर्बाद हो गयी। इसे लेकर बिहार विधानसभा में भी प्रश्न उठाए गए लेकिन समाधान नहीं निकला। बस स्टैंड के चलते शहर में कई जगह वाहन लगाए जाते हैं। आटो, ई रिक्शा या चार पहिया वाहन के लिए कोई निश्चित और व्यवस्थित स्थान नहीं है। शहर में इसकी आवश्यकता है। इसके अभाव में दाउदनगर बारुण रोड पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के पास बस लगते हैं। यहां से बसें बारुण के लिए खुलती हैं। अगर बस स्टैंड की सुविधा हो तो संभव है कि शहर से बसें पटना, औरंगाबाद और रोहतास जिले के विभिन्न स्थानों के लिए खोले जाने लगें। क्योंकि दाउदनगर नासरीगंज सोनपुल का निर्माण होने और संपर्क पथ एनएच 120 पर दाउदनगर बारुण रोड से सीधे एनएच 139 पर पहुंचने के लिए जो निर्माण का कार्य हुआ है उससे शहर से बसें कहीं भी आसानी से बिना आबादी के बीच जाम में फंसे गुजर सकती है। लेकिन बस स्टैंड नहीं होने के कारण शायद वाहन मालिक इस दिशा में नहीं सोच रहे। नगर परिषद के पास बस स्टैंड के निर्माण के लिए 40 लाख रुपये अभी भी पड़े हुए हैं। 




स्थिति अनुकूल तो होगा निर्माण

नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी ने बताया कि मामला न्यायालय में चल रहा है। जैसे ही स्थित अनुकूल होगी, बस स्टैंड का निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया जाएगा। शहर के लिए बस स्टैंड आवश्यक है और इसके निर्माण के लिए नगर परिषद इच्छुक है।



सरकार ने कहा था- दूसरी जगह होगा निर्माण


 क्षेत्रीय विधायक ऋषि कुमार ने बिहार विधानसभा में संवंधित मंत्री से यह प्रश्न पूछा था कि नगर परिषद क्षेत्र में बस पड़ाव स्थापित करने के लिए कार्यपालक पदाधिकारी नगर परिषद के पत्रांक तीन दिनांक चार जनवरी 2022 द्वारा अंचल कार्यालय दाउदनगर को जमीन उपलब्ध कराने के लिए पत्र लिखा गया था। लेकिन आज तक बस पड़ाव निर्माण के लिए जमीन उपलब्ध नहीं कराया गया है। सरकार कब तक बस पड़ाव के लिए भूमि उपलब्ध कराते हुए बस पड़ाव का निर्माण करने का विचार रखती है। नहीं तो फिर क्यों। प्रश्न के जवाब में मंत्री द्वारा तब कहा गया था कि नगर परिषद द्वारा प्रतिवेदन दिया गया कि स्वीकृत बस स्टैंड निर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया था। परंतु भूमि विवाद के कारण उक्त स्थल पर निर्माण करने पर न्यायालय द्वारा रोक लगा दी गई। जिसके कारण अन्य स्थल पर बस स्टैंड निर्माण के लिए जगह चिन्हित करने का अनुरोध अंचल अधिकारी से नगर परिषद ने किया है। गत 25 नवंबर 2024 को विभाग द्वारा नगर परिषद क्षेत्र में बस स्टैंड निर्माण के लिए भूमि उपलब्ध कराने का अनुरोध जिला पदाधिकारी से किया गया है। भूमि उपलब्ध होते ही बस स्टैंड का निर्माण कार्य पूर्ण कर दिया जाएगा। मंत्री के जवाब से अब तय है कि पासवान चौक के पास निर्माणाधीन बस स्टैंड में अब निर्माण का कार्य नहीं होगा। अब जिला पदाधिकारी अंचल के द्वारा जो जमीन उपलब्ध कराएंगे उस पर निर्माण का कार्य हो सकेगा। 



मामला न्यायालय क्यों गया था

वर्ष 2014-15 में बस स्टैंड पासवान चौक के समीप बनाया जाना शुरू हुआ था। निर्माण स्थल पर अपनी भूमि होने का महिला कालेज ने दावा किया था। इसके बाद मामला न्यायालय में चला गया और निर्माण का कार्य अधूरा रह गया। इसमें लाखों रुपये खर्च किए गए और यह बेकार पड़ा रह गया। अब यह ऐसा स्थान बन गया है जिसमें पानी जमा रहता है, जिससे आसपास के लोग परेशान होते हैं।


पहले भी सदन में उठ चुका है मामला


मार्च 2016 में तत्कालीन विधान पार्षद डा.उपेंद्र प्रसाद ने सदन में इस सम्बंध में सवाल पूछा था। तब बताया गया था कि एक करोड़ 57 लाख 70 हजार रुपये आवंटित किया जा चुका है। बुडको द्वारा निर्माण कराया जा रहा था। उन्होंने यह प्रश्न पुरानी शहर निवासी निशांत राज के कहने पर पूछा था। 



140 साल पुराने शहर में मनोरंजन के साधन नहीं

 बदलता शहर - 10




एक पार्क बने तो दूसरे के लिए बात आगे बढ़े 

फोटो-कान्दू राम की गड़ही स्थित निर्माणाधीन पार्क स्थल

निर्माण कार्यों में राजनीति डालती रही अड़ंगे

कामयाब नहीं हो रही स्वस्थ समाज बनाने की कोशिशें 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :

140 साल पहले चट्टी के रूप में मशहूर दाउदनगर को नगर पालिका का दर्जा प्राप्त हुआ था। तब से आज तक इस शहर में एक अदद पार्क तक का निर्माण नहीं हो सका। नगर पालिका फिर नगर पंचायत और फिर नगर परिषद की यात्रा के क्रम में प्रायः जन प्रतिनिधियों ने यह सब्जबाग दिखाने की कोशिश की कि वह पार्क बनाएंगे। लेकिन इसका निर्माण कभी नहीं हो पाया। पार्क न सिर्फ मनोरंजन के स्थल बनते हैं बल्कि जो नया विचार पार्क निर्माण को लेकर आया है वह मनुष्य को स्वस्थ बनाने और स्वस्थ बनाए रखने में बड़ा योगदान करता है। पार्क में अब ओपन जिम का कान्सेप्ट आया है। यानि हरियाली के बीच तनाव कम करते हुए शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए वहां व्यायाम करने को कई उपकरण मौजूद होंगे। लेकिन यह विचार कभी जमीन पर नहीं उतर सका। नागरिकों को स्वस्थ बनाए रखना की अब तक की तमाम कोशिश असफल रही हैं। राजनीति कई बार अलंगे डालती रही है। जब 2023 में नगर परिषद के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद के लिए सीधे चुनाव हुआ तो नई उम्मीद जगी। एक कोशिश यह हो रही है कि शहर में कम से कम तीन पार्क का निर्माण हो जाए। स्थल चयन हो गया। लेकिन बात वही है कि राजनीति अच्छे कामों में कभी-कभी अड़ंगा डाल देती है। एक पार्क बने तब बात आगे बढ़े। अभी स्थिति यह है कि वार्ड संख्या 11 स्थित कान्दू राम की गड़ही मुहल्ला में 25 डिसमिल में पार्क का निर्माण होना है। यहां चारदीवारी का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चला है।


एक महीने में जनता को सुपुर्द होगा पार्क 

मुख्य पार्षद अंजली कुमारी बताती है कि चार दीवारी निर्माण का काम लगभग पूरा हो गया है। एक से डेढ़ महीने में पार्क पूरी तरह तैयार हो जाएगा। तमाम बाधा खत्म कर दी गई है। जल्दी पार्क का निर्माण पूरा कर इसे नागरिकों को सुपुर्द कर दिया जाएगा।


तीन जगह बनने हैं शहर में पार्क 

वार्ड संख्या 11 में पार्क का निर्माण लगभग पूर्ण हो चला है। इसके निर्माण के बाद वार्ड संख्या 16 में और फिर सोन नद क्षेत्र में काली स्थान के पास पार्क का निर्माण किया जाना है। इन दोनों पार्क निर्माण के लिए भी जमीन का चयन कर लिया गया है। मुख्य पार्षद अंजली कुमारी व कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी ने बताया कि एक बन जाये तो आगे की कोशिश शुरू करें।


चमन बन जाएगा गंदा स्थान 

कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी बताते हैं कि जिस जगह पर पार्क बनाया जा रहा है वहां गंदगी काफी रहती थी। जल जमाव रहता था। लोगों के लिए समस्या खड़ी होती थी। अब इस जगह पर बेहतर पार्क का निर्माण किया जा रहा है। ओपन जिम और चिल्ड्रन पार्क होगा। बच्चों के खेलने कूदने के समान होंगे। युवक युवतियों के लिए व्यायाम के उपकरण होंगे। पैदल टहलने के लिए ट्रैक होगा। बैठने के लिए कुर्सियां लगी होंगी।



Tuesday, 18 February 2025

श्रमिकों ने बनाई है जिउतिया लोक संस्कृति

 बदलता शहर - 09




राजकीय महोत्सव का दर्जा दिलाने की है पुरानी मांग 

कलाकारों को गढ़ती और संवारती है यह संस्कृति

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :

दाउदनगर में श्रमिकों की बसावट तो साफ-साफ दिखती ही है, यहां की संस्कृति भी श्रमिकों ने ही गढ़ी और उसे संपन्न बनाया है। यहां की सांस्कृतिक पहचान जिउतिया लोक संस्कृति है। जिसने यहां के कलाकारों को ऐसा गढ़ा और संवारा कि लोग कहने लगे कि यहां के कण कण में कला बसती है। दरअसल इस अवसर पर लोक कलाओं की जो प्रस्तुति होती है वह खासा महत्वपूर्ण है। वह प्रस्तुतियां यहां के अनगढ़ कलाकारों को गढ़ती है, संवारती है। नतीजा बड़े-बड़े मंचों पर भी वे सफल होते हैं। अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में सफल होते हैं। आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह व्रत मनाया जाता है। यूं तो यह प्रायः सभी सनातन धर्मावलंबियों के घर में मनाया जाता है, लेकिन नौ दिन यहीं मनाया जाता है। और दो से तीन दिन पुरस्कार वितरण बड़े-बड़े मंच करते हैं। यहां के लोक कलाकार अप्रशिक्षित होते हैं, अनगढ़ लोग हैं वह लगातार अपनी कला प्रस्तुत करते-करते उसमें अनुभवी हो जाते हैं। कई खतरनाक प्रस्तुतियां है जो देखने के बाद लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। लोक संस्कृति का कोई आयाम ऐसा नहीं है जो यहां आपको देखने को ना मिले। इसे राजकीय दर्जा दिलाने का प्रयास लगातार दैनिक जागरण करते रहा है। इस संवाददाता ने कई मंचों पर इससे संबंधित विवरण और आवेदन उपलब्ध कराया है। जिउतिया के पुरस्कार मंचों पर आने वाले तमाम नेता इसे राजकीय दर्जा दिलाने के लिए प्रयास करने की घोषणा करते हैं और मंच से उतरते ही इसे भूल जाते हैं। जहां छोटे-छोटे आयोजन होते हैं उन्हें भी बिहार सरकार ने राजकीय दर्जा दे दिया है। लेकिन दाउदनगर का इससे अभी भी अछूता है। सबको इस बात की प्रतीक्षा है कि इसमें सफलता कब मिलेगी।



राजकीय दर्जा देने को डीएम को लिखा पत्र 

नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी ने बताया कि जिउतिया को राजकीय दर्जा दिलाने के संबंध में उन्होंने जिला पदाधिकारी को पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि इस लोक उत्सव के दौरान बिहार के विभिन्न जिलों से ही नहीं बल्कि निकटवर्ती कई प्रदेशों से लोग आते हैं। इसमें युवा, बच्चे, बुजुर्ग महिलाएं सभी अनूठा करतब दिखाते हैं। स्वांग रचते हैं। कई खतरनाक प्रस्तुति देते हैं। कई मंच सर्वश्रेष्ठ प्रतिभागियों को सम्मानित करते हैं। यदि इस लोक उत्सव को राजकीय दर्जा प्राप्त हो जाता है तो इसका प्रचार प्रसार दाउदनगर से बाहर दूर तक हो सकेगा। कार्यपालक ने इस पत्र में यह भी कहा है कि जिले में मनाये जाने वाले अन्य उत्सवों को जिस तरह राजकीय दर्जा दिया गया है उसे आधार बनाकर जिउतिया लोकोत्सव को भी राजकीय दर्जा दिया जाए, ताकि यह उत्सव और भी जीवंत हो सके।


जिउतिया के कारण मिल रहे अभिनय के काम

कई फ़िल्म व धारावाहिक में काम करने वाले कलाकार विकास कुमार कहते हैं कि किसी भी शहर की पहचान उसकी सभ्यता व संस्कृति से होती है। यह जिउतिया लोकोत्सव पर लागू होता है। आज मैं फिल्म और टीवी के क्षेत्र मे जो भी मुकाम हासिल किया हूं, उसमें इसी संस्कृति का योगदान है। विभिन्न मंचों पर अभिनय करने का मौका जो मिला उससे अभिनय में निखार आया। जिसके कारण नाटक के क्षेत्र में पहचान बनी। फिल्म और टीवी में काम मिला। 



जिउतिया के मंचों ने कलाकार बनाया

कलाकार और फ़िल्म निर्माण से जुड़े चंदन कुमार ने बताया कि जिउतिया कलाकारों को संवारने का काम करता है। आज हम अगर माइक पर बोलते हैं तो इसमें सबसे बड़ा योगदान जिउतिया का है। जिउतिया कलाकारों को एक अलग पहचान दिलाता है। यहां के कलाकार अब फिल्मो में काम करने लगे हैं तो इसी संस्कृति से जुड़े लोक उत्सव पर मंचीय प्रस्तुति करने से। जिउतिया कलाकारों की जननी है।


Sunday, 16 February 2025

जातियों के नाम पर बने हैं शहर के मोहल्ले

 बदलता शहर - 08



कामगार जातियों से जुड़े हैं मोहल्लों के नाम

कई मोहल्लों के नाम से होता है व्यक्ति और वस्तु का बोध

नाम बताते हैं यहां की संस्कृति है श्रमण 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर श्रवण संस्कृति का शहर है। यह यहां के बसावट वाले मोहल्ले के नाम से स्पष्ट होते हैं। आमतौर पर यहां जो जातियां बसी हैं वह बाहर से तब बुलाए गए थे जब यहां दाऊद खान ने शहर बसाना आरंभ किया था। कई मामलों में इस शहर की बसावट अद्भुत है। यहां की संस्कृति श्रमिकों की संस्कृति है। हर गली, मुहल्ले की हालत एक सी है। यहां की बसावट, उनका पेशा, उनकी जीवन शैली, उनके व्यवहार पूरी तरह श्रमिकों की है। यहां की आबादी मूल नहीं है। या तो सतरहवीं सदी में दाउद खां ने बुलाकर बसाया है या फिर रोजगार की तलाश में कहीं से आये और फिर यहीं के हो कर रह गए। जितनी जातियां, और जातियों के नाम पर मुहल्लों के नाम हैं, उतना शायद ही किसी दूसरे कस्बे में आपको मिलेगा। शहरी क्षेत्र में न्यूनतम 44 मुहल्ले ऐसे हैं। उमरचक, पटेलनगर, शीतल बिगहा, गौ घाट, बुधन बिगहा, पिलछी, मौलाबाग, ब्लौक कालोनी, न्यू एरिया, अफीम कोठी, चुड़ी बाजार, कान्दु राम की गड़ही, पांडेय टोली, गड़ेरी टोली, अफीम कोठी, खत्री टोला, मल्लाह टोली, चमर टोली, पटवा टोली, दबगर टोली, ब्राहम्ण टोली, कुम्हार टोली, नाई टोली, लोहार टोली, महाबीर चबुतरा, थाना काॅलोनी, हास्पिटल कालोनी, यादव टोली, डोम टोली, कसाई मुहल्ला, नालबन्द टोली, कुर्मी टोला, दुसाध टोली, अमृत बिगहा, बुधु बिगहा, रामनगर, अनुप बिगहा, रामनगर, नोनिया बिगहा, माली टोला, जाट टोली, यादव टोली, ब्राह्मण टोली और बालु गंज। इन मुहल्लों में शामिल सभी जाति सूचक मुहल्ले पुरातन हैं। एक ही नाम के दो-दो, तीन-तीन मुहल्ले भी हैं। व्यक्ति के नाम सूचक और अन्य नाम नगरपालिका के विस्तार के साथ जुड़े इलाकों के नाम हैं। जिन जातियों का ज्ञान इन मुहल्ला नामों से होता है, उसके अलावा भी कई श्रमिक जातियां यहां रहती हैं। रंगरेज, डफाली, कुंजडा, अंसारी, मुकेरी, सुड़ी, सौंडिक, तेली, धुनिया, रोनियार, अग्रवाल समेत तमाम तरह की श्रमिक जातियां यहां हैं। सोनार पट्टी जैसे नाम तारीख-ए-दाउदिया में हैं, जो अब लापता हो गए। यहां श्रम करने वाली जातियों ने अपना समाज गढ़ा। अपनी साझा संस्कृति बनाई। 



काम से भी जुड़े हैं गली मोहल्ले 


शहर में कई गली ऐसे हैं जो वहां होने वाले काम का बोध कराते हैं। यथा गुड़ चावल फरही बाजार, शुक बाजार, सूतहट्टी गली, धनकुट्टा बाजार। यह ऐसे नाम है जिनके संबोधन से ही यह पता चल जाता है कि यहां कौन सा काम होता होगा।



दाउदनगर है मध्यकालीन शहर


मुगलकालीन या मध्यकालीन नगर है दाउदनगर। महत्वपूर्ण है कि सिलौटा बखोरा या दाउदनगर परगना अंछा का एक इलाका है। जमीन खरीद फरोख्त के दस्तावेजों में हाल तक हाल-मोकाम के बाद परगना अंछा ही लिखा जाता रहा है। अंछा, गोह और मनौरा तीन महत्वपूर्ण परगना मुगलकाल में थे। इन तीनों परगनाओं को औरंगजेब ने दाउद खां को लाखिराज दे दिया था। यानि भेंट किया था। जब 1659 में औरंगजेब ने अपने सिपहसलार दाउद खां को बिहार का नया सुबेदार नियुक्त किया था। उसने इलाका विस्तार का अभियान 1660 में प्रारंभ किया था। इसमें उसने जब वर्तमान जिला गया का कोठी, औरंगाबाद जिला का कुंडा, और देवगन राज को फतह कर पलामु भी फतह कर लिया तो बादशाह ने उसे इन तीन परगनाओं को भेंट किया था। इसके बाद ही दाउद खां ने सिलौटा बखौरा को आबाद किया और नगर बसाया।


Saturday, 15 February 2025

18 तख्तों में बंटा हुआ था दाउदनगर

 बदलता शहर 07



1901 में जब हुआ सर्वे तो बसावट वाला क्षेत्र रहा वंचित

लंबाई को अरज, चौडाई को तुल तथा क्षेत्र के लिए कट्ठा शब्द का इस्तेमाल 

डिस्मिल शब्द कारा नवाब के बंटवारे में इस्तेमाल किया गया

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर को बसाने वाले दाऊद खां के नाम के साथ नवाब विशेषण जुड़ा हुआ है। जमीन से भी नवाबियत और जमींदारी, इसीलिए कहा जाता है कि यह नवाबों का शहर है। ठाट-बाट में पले-बढ़े दाउदनगर के मालिकाना हक की कहानी बड़ी दिलचस्प है। कई जमींदारों या नवाबों की मिलकियत थी यहां। शहर दाउद खां कुरैशी का बसाया हुआ था तो स्वाभाविक तौर पर इस भूगोल पर उनके वंशजों का हक था। कालांतर में उनके वंशज इस काबिल नहीं रह गये थे। नतीजा पूरा शहर कारा इस्टेट के नियंत्रणाधीन हो गया। संभवतः हसन इमाम नवाब थे। इन्हें शहर हसनु बाबु के नाम से जानता था। कहा जाता था -हसनु बाबु का तख्ता। शहर में कई लोगों की मिलकियत थी। इस कारण तख्ता भी कई थे। नवाब और उनकी बेटी (शायद) खुदैतुल कुबरा के बीच बंटवारा 1928 में हुआ। नौ आना और सात आना। इससे पहले इनके अधीन के अठारह जमींदारों (वास्तव में वे जमींदार नहीं थे, उनकी मिल्कियत कुछ रकबे की थी) के अधीन पुरानी शहर था। इन सबने 1896 में बंटवारा सुट दाखिल किया था। इन्हें उर्दु में सायल (प्रार्थी, फरियादी) कहा जाता है। जिस पर फैसला 1899 में हो चुका था। रैयती खतियान बना कर दिया गया था। इसे तख्ते बंदी बंटवारा कहा जाता है। इसके साथ एक नजरी नक्शा बना हुआ था। इसमें लंबाई के लिए अरज एवं चौडाई के लिए तुल तथा क्षेत्र के लिए कट्ठा शब्द का इस्तेमाल किया गया है। डिस्मिल शब्द कारा नवाब के बंटवारे में इस्तेमाल किया गया है। यहां लक्ष्मी बाबु का तख्ता, गोमती प्रसाद का तख्ता, सोहन मिश्रा का तख्ता, सिताब लाल मंगल बाबु का तख्ता, मनहरण लाल का तख्ता हुआ करता था। अर्थात इनके अधीन कई-कई बिगहा जमीनें हुआ करती थी। सोहन मिश्रा के तख्ता में बालुगंज, मलाह टोली, डफाली टोली एवं बरादरी का हिस्सा आता था। सराय रोड सोलेने साहब के तख्ता के अधीन था। वे अंग्रेज थे। एक महिला भी ऐसी ही जमींदार थी। सभी ओझाइन का तख्ता के नाम से जानते थे। इसी ओझाइन के तख्ते का वारिश बन गये थे दीपन तिवारी। जो मूलतः रोहतास के एकडारा से यहां आये थे। ओझाइन के तख्ता में माली टोला, जाट टोली का हिस्सा आता था। 


12 इस्टेट की हुआ करती थी हिस्सेदारी 


पांडेय टोली के बैजनाथ पांडेय (अब स्वर्गीय) ने इस संवाददाता को बताया था कि उनके पूर्वज उन्हें बताते थे कि इस शहर में 12 इस्टेट की हिस्सेदारी हुआ करती थी। कारा इस्टेट, बंगाली इस्टेट, युरोपीयन सोलोनो इस्टेट, काली प्रसाद अग्रवाल, सूरज प्रसाद अग्रवाल, संस्कार विद्या के सीईओ सुरेश प्रसाद गुप्ता के पूर्वज विशेश्वर नाथ, लियाकत हुसैन, कयुम हुसैन एवं इकबाल हुसैन के पूर्वज, गुदानी लाल, मनहरण लाल, यदुनंदन साव, राम कृपाल प्रसाद एवं रामबिलास बाबु स्वर्णकार के पूर्वज सखीचंद साव, स्वतंत्रता सेनानी जगदेव प्रसाद के पूर्वज अनंत लाल, रामेश्वर पांडेय, रामेश्वर पूरी, सोमारु साव, केशव प्रसाद की शहर की जमीनों में हिस्सेदारी हुआ करती थी। समय के साथ जमींदारी चली गई। काफी जमीनें अन्य के कब्जे में चली गई। 

 

1934 में हुआ छह व दस आना का बंटवारा

जमीन के मामलों के जानकार अनन्त प्रसाद बताते हैं कि दाउदनगर के इस्टेट की संख्या सत्रह थी। कलक्टरी बंटवारा 1934 में मालिकों के बीच हुआ। छह आना मालिकों को और दस आना कारा इस्टेट के जिम्मे रहा।

7331 नया तौजी बनाया गया यह दाउदनगर के जमींदारों का हुआ। खाता प्लाट रैयत का और तौजी जमींदार की पहचान बताता था। छह आना पांडेय, पूरी और कायस्थ समेत अन्य इस्टेट थे। दस आना में कारा इस्टेट जिसका तौजी नम्बर 191 था। कारा इस्टेट ने अपनी जमींदारी भी बाद में बेची जिसे नवाबों ने खरीदा था। 



1912 के सर्वे में शहर बेलगान

अनंत प्रसाद बताते हैं कि 1912 में जब इस क्षेत्र में भूमि सर्वे हुआ तब शहर में महामारी थी। नतीजा आबादी वाले क्षेत्र का सर्वे ही नहीं हुआ। सर्वे करने वालों ने बसावट वाले क्षेत्र को बेलगान लिख दिया। इसीलिए आज शहर की बेशकीमती बसावट वाली जमीन बेलगान हैं। किसी ने इसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी। जो लोग स्थिति को समझते थे, उन्होंने कई स्तर पर समझौता किया, चुनौती भी न्यायालय में दी और जमाबंदी कायम कर लिया। फिर शहर में 1985 में नया सर्वे हुआ जिसे अब जाकर स्वीकृति मिली है।


Friday, 14 February 2025

…और जब हुआ सिलौटा बखौरा का बंटवारा

 बदलता शहर 06



वर्ष 1920-21 में हुआ बंटवारे के लिए केस

08 सितंबर 1930 को हुआ केस का निर्णय

अहमदगंज का नाम हुआ नया शहर

दाऊद खां का बसाया पुराना शहर 


उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 1885 में भले ही दाउदनगर नगर पालिका बना था। लेकिन यहां दो हिस्से पहले से थे। दाऊद खान द्वारा बसाया गया जो हिस्सा था वह पुरानी शहर कहलाता था और उनके वंशज के नाम पर बसाया गया अहमदगंज अलग था। वर्ष 1920 में बजाप्ता इसके बंटवारे के लिए मुकदमा चला। आठ सितंबर 1930 को नया शहर और पुराना शहर के रूप में बंटवारा हुआ और सीमांकन हुआ। नया शहर अहमदगंज वाले हिस्से को कहा गया। 

शहर का पहला मानचित्र जिसे सर्वे नक्शा के नाम से जाना जाता है,  वह सन 1911-12 में बना था। वर्ष 1901 में शहर में प्लेग की महामारी हुई थी। तब शहर में मात्र चार वार्ड थे और आबादी थी 9744, मगर इस महामारी ने आबादी घटा दिया। जब 1911 में जनगणना हुई तो संख्या- घटकर मात्र 9149 हो गई। अगर इस नक्शे को वर्तमान नक्शे से मिलाया जाए तो पता चलेगा कि कितनी जमीनों पर अवैध दखल कब्जा है। हद यह कि उसके दस्तावेज तैयार कर लिए गए। जमीनों की खरीद फरोख्त होती है। इसमें कई जन प्रतिनिधि भी शामिल रहे हैं। मूल पुराना शहर ही दाउदनगर था। जिसे नया शहर कहते हैं, उसे दाउद खां के वंशज नवाब अहमद खान ने बसाया था। इस कारण इसे अहमदगंज कहा जाता था। आधुनिकता ने इसके नाम को नया शहर में बदल दिया। आबादी बढी तो प्राथमिकताएं और आवश्यकताएं भी बदली। सन 1920-21 में केस नंबर-65,  तौजी संख्या-191 के जरिये सिलौटा बखोरा का बंटवारा हुआ। बंटवारा कार्यालय बी.एल.माथुर (अधिनियम-58 बी.सी-1887) द्वारा यह बंटवारा 08 सितंबर 1930 को किया गया। पुराना शहर और नया शहर के रुप में बंटवारा हुआ। 

दाउदनगर के इस्टेट जो सत्रह की संख्या में थे। 

इसको कलक्टरी बंटवारा 1934 में मालिकों के बीच हुआ। छह आना मालिकों को और दस आना कारा इस्टेट के जिम्मे रहा।


नया शहर में बढ़ती बसावट से बढ़ी आबादी



जब शहर का बंटवारा हुआ तब कुल छः वार्ड बन गए थे और आबादी हो गई थी- मात्र 8511 (जनगणना -1921 के अनुसार)। हालांकि बंटवारा होने के बाद की जनगणना जब 1931 में हुई तो शहर की आबादी हो गई थी-11699, यह बड़ी उछाल थी जनसंख्या वृद्धि में। 37.46 फीसद की। पुराना शहर बारुण रोड के पश्चिम सोन तट एवं उत्तर में नोनिया बिगहा,  दक्षिण में काली स्थान एवं अमृत बिगहा तक है। इसमें कभी चार वार्ड क्रमशः एक,  दो,  तीन एवं चार था। अब वार्ड संख्या एक का लगभग आधा भाग, दो, तीन, चार, पांच,  छ:, सात, आठ एवं नौ वार्ड बन गया है। बाकी के 18 वार्ड नया शहर में हैं। जो पूरब में बुधन बिगहा तक, उत्तर में उमरचक और दक्षिण में बुधु बिगहा तक है। 


पुरानी शहर में ये ऐतिहासिक स्थल

पुरानी शहर में जो प्रमुख स्थल हैं उसमें सबसे ऐतिहासिक दाऊद खान का किला है। यह सतरहवीं सदी में बना है। इसके अलावा इमामबाड़ा और शिव मंदिर संगत है। डार्ड अस्पताल है। सोन के कछार से सटा यह क्षेत्र है। गुलाम सेठ चौक बाजार है।


नई शहर में कई प्रमुख स्थल

नई शहर का जो क्षेत्र है उसमें दाउदनगर थाना है। नगर परिषद का कार्यालय है। शहर का सबसे प्रमुख धार्मिक स्थल हनुमान मंदिर है। सूर्य मंदिर मौलाबाग, नवाब साहब का मजार है। प्रखंड सह अंचल कार्यालय समेत कई कार्यालय हैं। अनुमंडल अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है। नहर का क्षेत्र है जिसे विकसित कर नागरिकों के मनोरंजन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।


Thursday, 13 February 2025

बेतरतीब आवासीय विकास से मुक्ति की है जरूरत

 बदलता शहर 05




भवन निर्माण में आवश्यक है 30 प्रतिशत क्षेत्र पार्किंग के लिए 

बिहार भवन निर्माण उप विधि का नहीं होता पालन

घर बनाने को परमिशन मिलने में आती है समस्या

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : नगर परिषद दाउदनगर सी श्रेणी का शहर है। शहर में आबादी जैसे-जैसे बढ़ती गई बसावट का दायरा भी बढ़ता गया। नए घर बनते गए, लेकिन बेतरतीब तरीके से निर्माण होते जाने का नतीजा रहा कि गालियां संकरी हो गयी। नालियां भी बेहतर स्थिति में नहीं रही। किसी एक पक्ष को जिम्मेदार भी नहीं ठहराया जा सकता। नागरिक और नगर परिषद प्रशासन दोनों इसके लिए जिम्मेदार है। घर बनाने के लिए परमिशन की जरूरत होती है। नगर परिषद से परमिशन लेना काफी मुश्किल का काम रहा है। ढाई दशक तक तो नगर परिषद सिर्फ प्रशासनिक अधिकारी के हवाले रहा है। कई बार एलपीसी ना होने के कारण घर बनाने की परमिशन नहीं दी गई। अब जो व्यक्ति घर बनाना चाहता है, जमीन खरीद चुका है, स्वाभाविक है कि वह व्यक्ति घर बनाएगा ही। ऐसी स्थिति में घर तो बनते गए लेकिन बिहार भवन उप विधि का कहीं कोई अनुपालन नहीं हुआ। न इसकी जानकारी से लोगों को मतलब रहा। कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी कहते हैं कि उपविधि का पालन होना चाहिए। व्यवसाय के लिए अगर कोई भवन बना है तो उसमें 30 प्रतिशत क्षेत्र पार्किंग के लिए रखना आवश्यक है। आज शहर की स्थिति यह है कि बड़े-बड़े मार्केट में शौचालय तक नहीं है। पार्किंग की सुविधा नहीं है।


नप लापरवाह, नागरिक भी जिम्मेदार 

बाजार के निवासी पप्पू गुप्ता कहते हैं कि कर देने वाले लोगों की सुविधा का ख्याल रखना चाहिए। घर बनाने के लिए परमिशन लेने में भी समस्या आती है। नगर परिषद इसके लिए जिम्मेदार है, वह वह लापरवाह भी है। नागरिक भी परमिशन लेने के लिए बहुत उत्सुक नहीं दिखते।



बिना एलपीसी मिल रहा परमिशन 

कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी कहते हैं कि घर बनाने के लिए परमिशन देने को सरल किया गया है। एलपीसी आवश्यक नहीं ।है खतियान के आधार पर भी घर निर्माण के लिए परमिशन दी जा रही है। कोई भी वह दस्तावेज आवश्यक है जो स्वामित्व साबित करता हो। बीस लाख रुपये तक का घर निर्माण पर आठ से दस हजार रुपये का शुल्क लगता है। ऐसे में हर नागरिक को घर बनाने का परमिशन लेना चाहिए। इससे उनके स्वामित्व को भी शक्ति मिलती है।



सरल किया गया है परमिशन देना 

मुख्य पार्षद अंजली कुमारी कहती हैं कि परमिशन बहुत ही सहजता से दिया जा रहा है। यह तय कर दिया गया है कि सहजता से लोगों को घर बनाने के लिए परमिशन मिले। लोगों को भी चाहिए कि वह हर हाल में घर बनाने से पहले आर्किटेक्ट से नक्शा बनवा ले और नगर परिषद से निर्माण के लिए परमिशन प्राप्त कर लें।


आवास और रहने वाली आबादी


बिहार जाति आधारित गणना 2022 के प्रथम चरण के आंकड़े के अनुसार शहर के सभी 27 वार्डों में कुल 8010 भवन है। जबकि 8610 मकान है। इन मकानों में 11071 परिवार रहते हैं। महत्वपूर्ण है कि आमतौर पर 2011 में बताया गया था कि शहर में 6000 लगभग घर हैं। लेकिन ताजा सर्वे के मुताबिक यह संख्या 8610 है।


Wednesday, 12 February 2025

बढ़ती आबादी के साथ बढ़ती गई यातायात की मुश्किलें

 बदलता शहर 04



8225 से बढ़कर 65543 हो गई शहर की जनसंख्या 

140 वर्ष में आठ गुना बढ़ी आबादी लेकिन यातायात की सुविधाएं नहीं 

1885 में जब बना नगरपालिका तो थी 8225 जनसंख्या

शहरी विकास के लिए आवश्यक होती है चौड़ी सड़क 

हटानी पड़ेगी अतिक्रमण तभी होगा यातायात सुगम

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :

140 साल पहले जब 1885 में दाउदनगर चट्टी से नगरपालिका बना था तब वर्ष 1881 की जनगणना के अनुसार 8225 की जनसंख्या शहर में थी। यह लगातार बढ़ती गयी। अब आठ गुना हो गई है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 52364 जनसंख्या है। जबकि 2022 में हुए जाति सर्वे के अनुसार 65543 जनसंख्या है। लेकिन इस अनुपात में शहर में यातायात की व्यवस्थाएं नहीं बदली। नई गलियां आबादी के बसावट के साथ बनी तो वे संकरी रही। पुरानी आबादियों वाली गलियां काफी संकरी हुई। अतिक्रमण मुख्य समस्या रही। हालांकि शहर में कुछ सड़कें काफी चौड़ी है। दाउदनगर बारुण रोड जो पुरानी शहर और नई शहर को विभाजित करती है यह काफी चौड़ी सड़क है। हालांकि तब भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और पिराही बाग के इलाके में अतिक्रमण के कारण थोड़ी संकरी हुई है। मजार के आसपास भी अतिक्रमण साफ दिखता है। शहर में जगन मोड़ से लखन मोड तक की सड़क थोड़ी चौड़ी कहीं जा सकती है। लखन मोड़ से नहर होते भखरुआं तक और मौला बाग से पचकठवा देवी मंदिर होते सोनतराई क्षेत्र तक की सड़क चौड़ी है। इसके अलावा जो सड़के हैं उसकी चौड़ाई बेहतर नहीं है। कसेरा टोली रोड भी प्रायः चौड़ी है लेकिन कई जगह अतिक्रमण के कारण संकरी हो गई है। शहर में अतिक्रमण एक बड़ी समस्या है।



चौड़ी सड़कों के अभाव में बाजार पिछड़ रहा 

फोटो- ऋषिकेश अवस्थी 

नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी कहते हैं कि शहरी क्षेत्र के लिए चौड़ी सड़के होनी आवश्यक है। मुख्य पथ न्यूनतम 30 फीट चौड़ी होनी चाहिए। चौड़ी सड़कों के अभाव में ही बाजार पिछड़ रहा है। जबकि भखरुआं विकास कर रहा है। 30 फीट चौड़ी सड़क हो तो 15 -15 फीट का डिवाइड कर बीच में डिवाइडर दिया जा सकता है। मुख्य पथ में लखन मोड़ से नहर तक 70 से 80 फिट है, लेकिन अतिक्रमण मुक्त नहीं है। विद्युत खंभा सड़क पर ही गाड़ दिए गए हैं। उसे हटाने में सात से आठ लाख रुपये खर्च है।



अस्थाई डिवाइडर, पेवर ब्लाक आवश्यक

कार्यपालक पदाधिकारी कहते हैं कि अस्थाई डिवाइडर बनाना होगा। दुकानें हटानी पड़ेगी। धीरे-धीरे बढ़ रहे अतिक्रमण का दायरा बड़ा हो गया है। लिंक रोड को अतिक्रमण मुक्त करने की जरूरत है। जबकि कई जगह पेवर ब्लाक लगाने में 25 लाख रुपये लगभग खर्च होगा। यह काम हो जाए तो शहर में यातायात की व्यवस्था कुछ हद तक बेहतर हो सकेगी।



इस तरह बढ़ती गयी शहर की आबादी

साल जनसंख्या वृद्धि दर: में

1881     8225      0.00 

1891     8730      6.13 

1901     9744      11.61

1911     9149      -06.10 

1921     8511      -06.97 

1931    11699      37.46

1941    11133      -04.84 

1951    10448      -06.15 

1961    13320      27.49 

1971    20743      55.80

1981    24513      18.74 

1991    30331      23.80

2001    38014   25.33 

2011    52340   37.67


(2022 में हुए जाति सर्वे के अनुसार 65543 वृद्धि- 25.22)  



Tuesday, 11 February 2025

हृदय स्थल से ही वंचित है नगर निकाय दाउदनगर

 बदलता शहर 03




भखरुआं को शामिल करने की कोशिश रही है असफल 

नगर परिषद कर रहा भखरुआं को शामिल करने का प्रयास

सारे प्रमुख कार्यालय, न्यायालय, माल, बैंक ग्रामीण क्षेत्र में

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) जब आप पटना से औरंगाबाद या औरंगाबाद से पटना की तरफ आ जा रहे हैं या गया से डुमरांव अर्थात एनएच 139 या एनएच 120 से यात्रा करते हैं तो भखरुआं से गुजरना पड़ता है। यहां गोलंबर है। चकाचौंध है। पूरा-पूरा शहर दिखता है। अस्त व्यस्त क्षेत्र है। इसे दाउदनगर का हृदय स्थल कहा जाता है। लेकिन दुर्भाग्य से यह नगर परिषद का हिस्सा नहीं है। यह तरारी पंचायत का भखरुआं गांव है। अनुमंडल कार्यालय, अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी का कार्यालय, निबंधन कार्यालय, कृषि कार्यालय, अनुमंडल व्यवहार न्यायालय सारे महत्वपूर्ण कार्यालय के साथ कई बड़े-बड़े बैंक, बड़े-बड़े माल और शिक्षण संस्थान इस इलाके में स्थित है। भखरुआं को नगर पालिका में शामिल करने का प्रयास तत्कालीन अध्यक्ष यमुना प्रसाद स्वर्णकार ने किया था। लेकिन मामला उच्च न्यायालय गया और फिर पराजय मिला। तरारी तीखा मोड़ के पास तब सूचना पट्ट भी टांग दिया गया था कि यह क्षेत्र नगर पालिका में है। न्यायिक निर्णय के बाद बोर्ड तक उखाड़ने पड़े थे। उसके बाद भी कई बार कोशिश की गई। सफलता हाथ नहीं मिली। नए सिरे से फिर एक बार प्रयास शुरू हुआ है। गत 29 जनवरी को जिला मुख्यालय में आयोजित दिशा की बैठक में मुख्य पार्षद अंजली कुमारी ने इससे संबंधित एक पत्र जिला पदाधिकारी को दिया है। वास्तव में भखरुआं के लोग शहरी सुविधा तो प्राप्त करना चाहते हैं लेकिन शहर में शामिल होना नहीं चाहते। ऐसा ही तर्क तब भी दिया गया था और यही तर्क अब भी दिया जाता है। लेकिन एक न एक दिन यह तय है कि यह क्षेत्र नगर निकाय का ही हिस्सा होगा। अब इसमें चाहे वक्त जितना लगे।


डीएम को लिखा है पत्र : अंजली कुमारी

मुख्य पार्षद अंजली कुमारी ने बताया कि जिला पदाधिकारी को दिए गए आवेदन दिया गया है। इसमें कहा गया है कि नगर परिषद के सीमावर्ती ग्राम भखरुआं थाना नंबर 75 को नगर परिषद दाउदनगर में सम्मिलित किए जाने के लिए बोर्ड की बैठक में निर्णय लिया गया था। इसके आलोक में इस कार्यालय के द्वारा पूर्व में प्रेषित पत्रों एवं जिला सामान्य शाखा औरंगाबाद के ज्ञापांक 32 मु सा दिनांक छह अगस्त 2024 की प्रति भी भेजी गयी है। अनुरोध है कि भखरुआं ग्राम थाना संख्या 75 को संपूर्ण एवं थाना संख्या 74 तरारी के आंशिक विकसित एवं वाणिज्य कर एरिया को नगर परिषद में सम्मिलित कराया जाए।


बचेंगे नहीं, लेकिन इच्छा भी नहीं : सत्येंद्र तिवारी

भखरुआं निवासी बीमा अभिकर्ता सत्येंद्र तिवारी कहते हैं कि नगर परिषद क्षेत्र में नाली, सफाई और शौचालय की जो बदयर व्यवस्था है उससे नगर निकाय में शामिल होने की इच्छा नहीं करती। लेकिन जिस तरह से इस क्षेत्र का शहरीकरण हुआ, विकास हुआ, उससे एक दिन नगर निकाय में इसका शामिल होना भी तय है। इससे बचा नहीं जा सकता। जरूरत यह है कि नगर परिषद क्षेत्र में व्यवस्था बेहतर हो।


नगर परिषद की वर्तमान सीमा

नगर परिषद इलाका में भखरुआं गोलंबर से पटना रोड में नहर पुल तक और औरंगाबाद रोड में गोलंबर से कुर्बान बिगहा तक, गया रोड में गोलंबर से जेल तक का इलाका दाउदनगर नगर परिषद क्षेत्र में नहीं है। दाउदनगर बाजार रोड में बड़ी नहर पुल तक का इलाका शहर से बाहर है। जबकि इस इलाके में शहर बसता है। 


भखरुआं की आबादी है 16460

तरारी पंचायत का हिस्सा है भखरुआं थाना नंबर 75, तिवारी मोहल्ला, कुर्बान बिगहा और बाबा जी का बागीचा। पूरे इलाके को मिलाकर वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 16460 की आबादी है। इतना बड़ा इलाका शहर में शामिल होने से वंचित है। यदि यह शहर में शामिल हो जाए तो शहर की वर्तमान आबादी 2011 के जनगणना के अनुसार करीब 70 हजार से अधिक हो जाएगी। ऐसा होने से ना सिर्फ शहरीकरण का इलाका बढ़ेगा, बल्कि नगर परिषद को राजस्व की भी वृद्धि होगी। दूसरी तरफ भखरुआं के लोगों को बेहतर नगरीय सुविधा मिलेगी।



नगर परिषद बना, क्षेत्र विस्तार नहीं

 राज्यपाल के आदेश से नगर विकास एवं आवास विभाग बिहार सरकार के प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद ने 27 जुलाई 2002 को नगर परिषद गठित किए जाने की अधिसूचना जारी की थी। दाउदनगर नगर पंचायत की तत्कालीन परिधि में पड़ने वाले क्षेत्र एवं उसकी व‌र्त्तमान चौहदी को ही नगर परिषद दाउदनगर कहा गया। इसका क्षेत्र विस्तार नहीं हुआ। 



Monday, 10 February 2025

दाउदनगर : चार वार्डों की संख्या से शुरू यात्रा पहुंची 27 तक

 


1910 में हुआ था वार्डों का शहर में गठन 

25 वर्ष नगर पालिका गठन के बाद गठित हुए थे वार्ड 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :

140 वर्ष पूर्व जब वर्ष 1885 में नगर पालिका का गठन हुआ था उसके पहले भी दाउदनगर मगध और शाहाबाद क्षेत्र में चट्टी के रूप में मशहूर था। तब और अब में काफी कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है। प्रशासनिक तौर पर कई बार पुनर्गठन हुआ। वार्डों की संख्या क्रमशः बढ़ती चली गई। 

जब नगर पालिका का गठन हुआ था तब शहर में कोई वार्ड का गठन नहीं हुआ था। करीब 25 वर्ष बाद पहली बार 1910 में शहर में वार्डों का गठन किया गया था। तब मात्र चार वार्ड का गठन किया गया था। इसके बाद 1925 में शहर में छह वार्ड बने और फिर 1971 में 12 वार्ड गठित किए गए। 1983 में 13 वार्ड बना। इसके बाद कोई चुनाव नहीं हुआ। जब 2002 में पुनः चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई तो वार्डों का पुनर्गठन किया गया और यहां 13 से 18 वार्ड बन गए। 2007 में यहां 23 वार्ड गठित हुए और जब 2018 में नगर परिषद में नगर पंचायत प्रोन्नत हुआ तो यहां कुल 27 वार्ड गठित किए गए। अभी यहां 27 वार्ड हैं।


मत से नहीं, हाथ उठाकर होता था चुनाव 

नगर पालिका बनने के साथ यहां अध्यक्ष के लिए चुनाव की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई थी। तब सिंचाई विभाग के पदेन एसडीओ यहां के चेयरमैन होते थे और जनता से वाइस चेयरमैन का मनोनयन होता था। यहां जनता से पहला चेयरमैन 1938 में सूर्य नारायण सिंह मनोनीत किए गए। तब वार्ड पार्षदों का चुनाव जनता बैलेट के जरिए नहीं, बल्कि हाथ उठाकर करती थी। वार्ड के 20 से 25 माननीय लोग वार्ड पार्षद का चयन कर लेते थे। वर्ष 1986 के बाद 2001 तक चुनाव नहीं हुआ। 2002 से नियमित चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई। इसके बाद 2017 में भी चुनाव नहीं हुआ जब नगर पंचायत को नगर परिषद में प्रोन्नत किया गया। वर्ष 2018 से यहां नगर परिषद का चुनाव हो रहा है। वार्ड पार्षद ही चेयरमैन बनाते थे। वर्ष 2018 में नौ जून को अध्यक्ष बनी सोनी देवी और फिर चार मार्च 2021 को इस पद पर काबिज हुई मीनू सिंह। वर्ष 2023 में सरकार में नई व्यवस्था लागू कर दी। सीधे जनता को यह अधिकार मिला कि वह अपने मत से चेयरमैन व वायस चेयरमैन का निर्वाचन करे। नतीजा जनता ने पहली बार अपनी पसंद से इन दो पदों के लिए भी वार्ड पार्षद के साथ मतदान किया। और फिर 27 जून 2023 को नगर परिषद के लिए अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का शपथ ग्रहण हुआ। और अंजली कुमारी चेयरमैन व कमला देवी उप मुख्य पार्षद बनीं।



छह वार्ड से चुने जाते थे 15 पार्षद 

नगर पालिका में जब तक वार्डों की कुल संख्या छह थी, तब तक 12 वार्ड पार्षद जनता द्वारा चुने जाते थे, और तीन वार्ड पार्षद सरकार मनोनीत करती थी। जिसमें एक चिकित्सक, एक सामाजिक कार्यकर्ता और किसी भी राजनीतिक दल का एक प्रतिनिधि वार्ड पार्षद मनोनीत किया जाता था।


तब डेढ़ रुपये दे कर बनते थे मतदाता 

तब व्यवस्था यह थी कि जो व्यक्ति न्यूनतम डेढ़ रुपये नगर पालिका को टैक्स देता था वही मतदाता होता था। दूसरे लोग वोट का अधिकार नहीं रखते थे। तब डेढ़ रुपये का कितना महत्व था इससे समझ सकते हैं कि तब एक किरानी को सरकार मात्र 30 रुपये महीना वेतन देती थी। 


अभी पुनर्गठन की योजना नहीं


मुख्य पार्षद अंजली कुमारी बताती हैं कि फिलहाल वार्डों के विस्तार की कोई योजना नहीं है। सरकार का जब निर्देश प्राप्त होगा तभी वार्डों का पुनर्गठन होगा। अभी ऐसा कोई निर्देश सरकार से प्राप्त नहीं हुआ है।


Sunday, 9 February 2025

1885 में जितनी आबादी थी उससे अधिक निर्मित हो गए घर

 बदलता शहर


8225 घर थे जब बना था नगर पालिका 

8644 मकान हो गए हैं अब शहर में निबंधित 

अनिबंदित घरों की भी संख्या शहर में कम नहीं

10 फरवरी 1885 को नगरपालिका बना था दाउदनगर

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :

दाउदनगर सोन के तट पर बसा हुआ एक महत्वपूर्ण शहर है। कभी यह कस्बा हुआ करता था। वर्ष 1881 में यहां की जनसंख्या मात्र 8225 थी। एक कहावत है- शहर में सासाराम और चट्टी में दाउदनगर। यह काफी मशहूर चट्टी हुआ करता था। उद्योग भी यहां थे। बादशाह औरंगजेब के सिपहसालार दाऊद खान द्वारा 17 वीं सदी में बसाया गया यह शहर है। यहां के लोगों में तब छटपटाहट थी और इसे नगर का दर्जा देने के लिए प्रयास हुआ। अंततः 10 फरवरी 1885 को तत्कालीन उड़ीसा, बिहार और बंगाल की सरकार ने इसे नगर पालिका का दर्जा दे दिया। महत्वपूर्ण तथ्य है कि 22 मार्च 1912 को बिहार और उड़ीसा को बंगाल से अलग करके बिहार और उड़ीसा प्रांत बनाया गया था। और फिर एक अप्रैल 1936 को बिहार और उड़ीसा को अलग-अलग प्रांत बना दिया गया था। तब से यह शहर काफी कुछ बदल गया। तब की आबादी से आठ गुना शहर की आबादी हो गई। वर्ष 2023 में हुए जाति सर्वे के अनुसार शहर की जन संख्या 65543 है। तब जितनी आबादी थी उससे अधिक तो अब शहर में घर बन गए हैं। नगर परिषद में आज 8644 घर निबंधित है। बताया जाता है कि शहर में अनिबंधित घरों की भी संख्या कम नहीं है। धीरे-धीरे विकास होता गया और शहर में घर बनते चले गए। यह आंकड़ा 2017-18 का है। उसके बाद अपडेट नहीं हुआ है। अपडेट करने के लिए सर्वे की आवश्यकता है और अभी सर्वे नहीं हुआ है।



सबसे अधिक वार्ड 16 में, 

सबसे कम चार में घर


शहर में कुछ इलाके काफी सघन है तो कुछ इलाके काफी खुले हुए है। वार्ड वार अगर निर्मित घरों का आकलन करें तो सबसे अधिक घर 565 वार्ड संख्या 16 में है। इसके बाद 562 घर वार्ड संख्या 23 में और 526 घर वार्ड संख्या 15 में है। सबसे कम घर वाले तीन वार्डों में 156 घर के साथ वार्ड संख्या चार शीर्ष पर है। जबकि 209 घर के साथ वार्ड संख्या एक है दूसरे स्थान पर। कुल 245 घर के साथ वार्ड संख्या 18 तीसरे स्थान पर है।



कार्यपालक बोले- शीघ्र होगा सर्वे

फोटो-ऋषिकेश अवस्थी

कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी ने बताया कि होल्डिंग सर्वे के लिए एजेंसी तय कर लिया गया था। लेकिन कुछ वार्ड पार्षदों के अनावश्यक हस्तक्षेप से मामला लटक गया। अब विभाग ने नया एजेंसी भेज दिया है। उस एजेंसी ने कोई सर्वे अभी तक नहीं किया है। नगर परिषद ने विभागीय निर्देश प्राप्त कर लिया है। होल्डिंग सर्वे एक से डेढ़ माह में कार्य आरंभ हो जाएगा। अगर विभाग सर्वे नहीं किया तो नप कराएगी। 




इस प्रकार वार्डों में बने हैं घर 

वार्ड संख्या - होल्डिंग की संख्या एक-209

दो-356 

तीन-387 

चार-156 

पांच-278 

छह-359 

सात-251 

आठ-359 

नौ-481 

10- 249 

11-320 

12-386 

13-427 

14-451 

15-526 

16-565 

17-307 

18-245 

19-479 

20-440 

21-498

22- 353 

23-562 

कुल- 8644