Saturday 6 May 2023

चार व्यक्तियों के आवेदन पर बना था कस्बा से नगरपालिका

 


कस्बा से ऐसे नगरपालिका बना दाउदनगर

अक्टूबर 1884 में हुआ था प्रारुप का प्रकाशन


उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : 

औरंगजेब के सिपहसालार दाऊद खान ने 17 वीं सदी के उत्तरार्ध में दाउदनगर को बसाया था। यहां किला का निर्माण कराया था। विभिन्न जातियों को बसाया था। कहते हैं कि शहर इस तरह बसाया कि यहां शांति और सौहार्द बना रहे। लेकिन समय करवट बदलता है और एक दौर ऐसा आता है जब यहां की आबादी को कई प्रकार की मुसीबत का सामना करना पड़ता है। लोगों की बेचैनी बढ़ती है और इससे बचने के लिए वे दाउदनगर को शहर का दर्जा दिलाने का प्रयास प्रारंभ करते हैं। नगर पालिका में प्रधान सहायक के पद से सेवानिवृत्त हुए देव भूषण लाल दास (अब स्वर्गीय) ने 2014 में इस संवाददाता को बताया था कि वे कौन चार व्यक्ति थे जिन्होंने नगर पालिका बनाने के लिए तब राज्यपाल से मुलाकात की थी। आवेदन दिया था। उन्हीं की कोशिश रंग लाई थी और 10 फरवरी 1885 को दाउदनगर नगरपालिका बन गया। इससे पहले यह कस्बाई इलाका था। जब नगर परिषद का चुनाव हो रहा है तो यह जानना महत्वपूर्ण है कि आखिर नगर पालिका बनाने का प्रयास किन लोगों ने किया था। चावल बाजार के कसौन्धन बनिया जाति के पुरुषोत्तम दास, बजाजा रोड के कसौन्धन बनिया रामचरण साव, केशरी जाति के हुसैनी साव एवं अग्रवाल जाति के बाबु जवाहिर मल ने तब एक आवेदन ब्रिटिश सरकार में भाया कलक्टर गवर्नर  को दिया और दरख्वास्त की थी। कहते हैं तब दाऊद खां के वंशज डोमन खां के कथित अत्याचार से मुक्ति का रास्ता निकालने का आग्रह किया गया था। इसके बाद अक्टूबर 1884 में प्रारुप का प्रकाशन हुआ। यानी एक खाका तैयार हुआ कि शहर का क्षेत्रफल क्या है, उसकी चौहद्दी क्या है, कितनी आबादी है, सुविधाएं कौन कौन सी है? दावा आपत्ति की मांग हुई। कानूनी प्रक्रिया पूरी की गई। फिर 10 फरवरी 1885 को कस्बा से यह नगर बन गया। इससे संबंधित इतिहास -श्रमण संस्कृति का वाहक-दाउदनगर में संग्रहित है। इसके अलावा कहीं कोई इतिहास लिखित उपलब्ध नहीं है।



अमियावर से आये थे रामचरण साव के वंशज

रामचरण साव के पूर्वज रोहतास जिला के नासरीगंज थाना के अमियावर गांव से आए थे। बजाजा रोड में उनकी किराने की दुकन थी। तूती बोलती थी। ग्रामीण इलाके में दूर दूर तक लोग नाम जानते थे। चलती इतनी थी कि 52 जोडी दरवाजे के मकान के बावजूद परिवार को सोने की जगह नसीब नहीं थी। इतना किराना सामान भरा हुआ रहता था। शहर के लिए अल्पसंख्यक थे मगर दबदबा था। रामचरण साव के पिता ने अमियावर की अपनी सारी संपत्ति ब्राह्मणों को दान कर दिया था। इनकी चौथी पीढि शहर में रहती है। बजाजा रोड में मकान है और गुड बाजार में दुकान। 



लंगोट पहनते थे, दाढ़ी रखतव थे पुरुषोत्तम दास

पुरुषोत्तम दास संपन्न व्यक्ति थे। उनके पास खेतिहर जमीनें काफी थीं। आवासीय जमीन भी प्रयाप्त थी। मुख्य पथ में वर्तमान में जहां भारतीय स्टेट बैंक की शाखा है, उसी के सामने उनका मकान हुआ करता था। साधु प्रवृति के थे सो लंगोट पहनते थे। दाढी रखते थे। सादा जीवन उच्च विचार की जीवन शैली थी। जमीन की खरीद बिक्री भी किया करते थे। उनका कोई वंशज अब शहर में नहीं रहता।



जड़ी बूटी बेचा करते थे हुसैनी साव


केशरी जाति के हुसैनी साव का बजाजा रोड में किराना दुकान था। इनके पिता का नाम तुलसी साव था। इसी दुकान में वे जडी बुटी भी बेचा करते थे। माथे पर मुरेठा बांधना कभी नहीं भुलते थे। एकदम सादा ड्रेस धोती-कुर्ता पहनते थे। काडा ईस्टेट के खजांची थे। हुंडी का काम करते थे। यानी रुपए पैसे रखना-देना। उन्हीं के नाम पर वार्ड संख्या पांच में हुसैनी बाजार है। इनके वंशज के व्यवसाय आज भी शहर में है। श्री बाबू की जडी बुटी दुकान में ही वे अपना व्यवसाय करते थे। उनकी चौथी पीढ़ी भी जडी बुटी के करोबार में यहां सक्रिय है। उन्होंने ही बाजार लगाना शुरु किया था और मुहल्ला भी बसाया था। जिसे कालांतर में हुसैनी बाजार और हुसैनी मुहल्ला का नाम मिला। 



अज्ञात हैं जवाहिर मल 

जवाहिर मल के बारे में बहुत जानकारी प्राप्त नहीं है। शायद वह गया के निवासी थे। साहित्य में बतौर लेखक उनकी चर्चा आती है। दाउदनगर नगरपालिका के प्रथम वाइस चेयरमैन थे। इसके अलावा उनके बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं है।





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