Sunday 7 May 2023

दाउदनगर शहर की जमीन में थी 12 इस्टेट की हिस्सेदारी



1899 में हुआ था तख्ते बंदी बंटवारा 1928 में हुआ था नवाब और उनकी बेटी के बीच बंटवारा

लंबाई के लिए अरज एवं चौड़ाई के लिए तुल शब्द का इस्तेमाल

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर शहर की कहानी भी अजीब है। इसे दाऊद खां ने बसाया था और बाद में यह कारा इस्टेट की मिल्कियत बन गयी। भारत-पाकिस्तान विभाजन के वक्त कारा इस्टेट के नवाब व अन्य लोग पाकिस्तान चले गए। यही वजह है कि इस शहर में हुकुमनामा से प्राप्त जमीनों को लेकर विवाद होते रहता है। क्योंकि कारा इस्टेट रिटर्न दाखिल नहीं किया था। यहां तख्ते बंदी की कहानियां भी काफी हैं। जब पूरा शहर कारा इस्टेट के नियंत्रणाधीन हो गया था तब संभवतः हसन इमाम नवाब थे। इन्हें शहर हसनु बाबू के नाम से जानता था। कहा जाता था हसनु बाबू का तख्ता। शहर में कई लोगों की मिल्कियत थी। इस कारण तख्ता भी कई थे। बैजनाथ पांडेय (अब स्वर्गीय) ने इस संवाददाता को बताया था कि उनके पूर्वज उन्हें बताते थे कि इस शहर में 12 इस्टेट की हिस्सेदारी हुआ करती थी। कारा इस्टेट, बंगाली इस्टेट, युरोपीयन सोलोनो इस्टेट, काली प्रसाद अग्रवाल, सूरज प्रसाद अग्रवाल, संस्कार विद्या के सीएमडी सुरेश प्रसाद गुप्ता के पूर्वज विशेश्वर नाथ, लियाकत हुसैन, कयुम हुसैन एवं इकबाल हुसैन के पूर्वज, गुदानी लाल, मनहरण लाल, यदुनंदन साव, राम कृपाल प्रसाद एवं रामबिलास बाबु स्वर्णकार के पूर्वज सखीचंद साव, स्वतंत्रता सेनानी जगदेव प्रसाद के पूर्वज अनंत लाल, रामेश्वर पांडेय, रामेश्वर पूरी, सोमारु साव, केशव प्रसाद की शहर की जमीनों में हिस्सेदारी हुआ करती थी। समय के साथ जमींदारी चली गई। जमीनें अन्य के कब्जे में चली गई। सुरेश प्रसाद गुप्ता बताते हैं कि उनके ही 16 भूखंड बाजार में ऐसे हैं जो दूसरे के कब्जे में चले गये। वे लड़ना नहीं चाहते इसलिए कब्जा अन्य का है। अवैध कागजातों के बल पर इस तरह संपत्ति पर कब्जा करने के कई उदाहरण शहर में मिल जायेंगे।

कारा नवाब और उनकी बेटी (शायद) खुदैतुल कुबरा के बीच बंटवारा 1928 में हुआ। नौ आना और सात आना। इससे पहले इनके अधीन के अठारह जमींदारों के अधीन पुरानी शहर था। इन सबने 1896 में बंटवारा सुट दाखिल किया था। इन्हें उर्दु में सायल (प्रार्थी, फरियादी) कहा जाता है। जिस पर फैसला 1899 में हो चुका था। रैयती खतियान बना कर दिया गया था। इसे तख्ते बंदी बंटवारा कहा जाता है। इसके साथ एक नजरी नक्शा बना हुआ था। इसमें लंबाई के लिए अरज एवं चौड़ाई के लिए तुल तथा क्षेत्र के लिए कट्ठा शब्द का इस्तेमाल किया गया है। डिस्मिल शब्द कारा नवाब के बंटवारे में इस्तेमाल किया गया है। यहां लक्ष्मी बाबु का तख्ता, गोमती प्रसाद का तख्ता, सोहन मिश्रा का तख्ता, सिताब लाल मंगल बाबु का तख्ता, मनहरण लाल का तख्ता हुआ करता था। अर्थात इनके अधीन कई-कई बिगहा जमीनें हुआ करती थी।



इनके तख्ते में था यह इलाका

सोहन मिश्रा के तख्ता में बालुगंज, मलाह टोली, डफाली टोली एवं बरादरी का हिस्सा आता था। सराय रोड सोलेने साहब के तख्ता के अधीन था। वे अंग्रेज थे। एक महिला भी ऐसी ही जमींदार थी। सभी ओझाइन का तख्ता के नाम से जानते थे। ओझाइन के तख्ता में माली टोला, जाट टोली का हिस्सा आता था। 



कारा नवाब नहीं गए थे पाकिस्तान


शहर में आम जानकारी यह है कि आजादी के समय जब देश का विभाजन हुआ तब कई लोग यहां से पाकिस्तान चले गये। इसमें कारा नवाब भी शामिल थे। कहा जाता है कि उस समय कारा नवाब ने अपना रिटर्न अर्थात अपनी अचल संपत्ति का और बसाये गये रैयतों का विवरण नहीं दिया था। लेकिन कारा नवाब हसन इमाम के पौत्र सैय्यद फरीद नुरू सईद कादरी बताते हैं कि यह तथ्य सही नहीं है कि कारा नवाब पाकिस्तान गए थे। हां, खानदान के लोग गए थे। बताया कि हसन इमाम और हुसैन इमाम दोनों भाई थे। दोनों की माता का नाम आयशा बीबी था। हुसैन इमाम पाकिस्तान भाग गए थे जब बंटवारा के वक्त दिल्ली में दंगा हो रहा था। वे तब दिल्ली रहते थे।



No comments:

Post a Comment