Wednesday 10 May 2023

मुकदमा जीतने के लिए वार्ड संख्या 13 में तब किसी ने नहीं डाला वोट

 


शहर होते हुए ग्राम पंचायत का हिस्सा है भखरुआं

उच्च न्यायालय के फैसले के कारण नगर परिषद का हिस्सा नहीं

 05 सितंबर 1980 को आया था उच्च न्यायालय का फैसला

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) :

सन 1950 में प्रखंड सह अंचल कार्यालय बना। तब इस परिसर का तीन चौथाई हिस्सा नगर पालिका का था,  मगर बीडीओ का आवास और पशुपालन विभाग का कार्यालय नगरपालिका क्षेत्र में नहीं था। सन 1958 में एक रिपोर्ट बहैसियत टैक्स दारोगा देवभूषण लाल ने तैयार किया था। क्षेत्र विस्तार का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया। इसमें संपूर्ण दाउदनगर सर्वे मौजा को शामिल किया गया था। सन-1964 में बिहार सरकार ने नगरपालिका से हदबंदी, चौहद्दी, आबादी और पुरानी अधिसूचना की मांग की। अमीन गणेश लाल ने जो खाका तैयार किया उसमें बुधन बिगहा, गुमा, अंकोढा, पिलछी, खीचड बिगहा और भखरुआं को शामिल किया गया। नया वार्ड बना- संख्या-तेरह। श्रमण संस्कृति का वाहक-दाउदनगर के अनुसार जब यमुना प्रसाद स्वर्णकार 27 फरवरी 1972 को चेयरमैन बने तो इस प्रस्ताव को राज्य सरकार के पास भेजा गया। साल 1976 में यह प्रस्ताव स्वीकृत हो गया। वे 11 जुन 1977 तक चेयरमैन रहे हैं। साल 1978 में नए परिसीमन के आधार पर चुनाव हुआ। वार्ड तेरह का मतदान केन्द्र राष्ट्रीय इंटर स्कूल में बनाया गया। भखरुआं के दक्षिणी सीमा पर तीखा मोड (गवसगढ मोड) के पास तब लोहे का बोर्ड लगाया गया। जिस पर लिखा था - ‘शहर में आपका स्वागत है’। मगर राजनीति अडंगे डालने को तैयार हो गई। इस बूथ पर एक भी वोट नहीं डाला गया। मतदाताओं को समझाया गया कि अगर मतदान कम अधिक कुछ भी हुआ तो कोई भी प्रत्याशी जीतेगा ही। ऐसे में स्वीकृत प्रस्ताव को न्यायालय से खारिज कराना मुश्किल होगा। नतीजा एक भी वोट नहीं पडा। कोई वार्ड कमीश्नर नहीं बन सका। बेलाढी के मुखिया दिनेश सिंह भखरुआं को तरारी के साथ रखने के लिए हाई कोर्ट में वाद ले कर गए थे। उनका साथ दे रहे थे ऋकेश्वर सिंह जो भखरुआं में 1971 से संचालित -हिन्दुस्तान अल्युमुनियम वर्क्स- के मालिक थे। मुखिया को चिंता 1978 में होने वाले पंचायत चुनाव को लेकर थी। परिसीमन बदलने से परिणाम बदलने का डर था। दिनेश सिंह ने वाद में प्रतिपक्ष बनाया था राज्य सरकार को, नगरपालिका को नहीं। हाई कोर्ट में दिलिप सिंह वकील थे और जज थे- बल्लभ नारायण सिंह। कोर्ट में पक्ष रखा गया कि ग्राम पंचायत की स्वीकृति के बिना ही इसके एक हिस्से को शहरी क्षेत्र में शामिल कर लेना गलत है। नतीजा 05 सितंबर 1980 को फैसला नगरपालिका के खिलाफ आया, और भखरुआं शहर में शामिल होने से पहले ही अलग हो गया। 

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