Friday 17 February 2023

हर गांव एक शिव मंदिर : कुछ प्राचीन व काफी ऐतिहासिक



महाशिवरात्रि विशेष 

उपेंद्र कश्यप । दाउदनगर (औरंगाबाद)


आज शनिवार को महाशिवरात्रि है। व्रत को लेकर अनुमण्डल के सभी शिवमंदिर सज धज कर श्रद्धालुओं के लिए तैयार हो गए हैं। पंडित आचार्य लाल मोहन शास्त्री ने बताया कि महा शिवरात्रि के अवसर पर प्राचीन वैदिक, पौराणिक, ऐतिहासिक मंदिरों का दर्शन अवश्य करना चाहिए। इन स्वयंभू, आदिवासी, आर्य महा पुरुष द्वारा स्थापित शिव लिंग को दर्शन पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। महत्वपूर्ण है कि प्रायः ही कोई गांव ऐसा है जहां शिव मंदिर न हों। सभी मंदिरों को महाशिवरात्रि के लिए तैयार किया गया है। ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि अनुमण्डल में प्रतिष्ठित और धार्मिक, ऐतिहासिक रूप से कौन कौन शिव मंदिर काफी खास हैं। 



अनुमण्डल में खास महत्व के शिव मंदिर


च्यवन आश्रम देव कुंड गोह : यह स्थान सत्य युग से प्रसिद्ध है। ऋग्वेद व यजुर्वेद में इसकी चर्चा है। वायु पुराण के अनुसार किकट देश में चार तीर्थ हैं-गया, राजगीर, च्यवनाश्रम और पुनपुना नदी। मगध साम्राज्य होने पर दो तीर्थ और अधिक हो गए देव (औरंगाबाद ) तथा वनावर (गया)। दो महत्व पूर्ण तीर्थ च्वनाश्रम और पुनपुन दाउदनगर अनुमंडल में है। आनंद रामायण के अनुसार भगवान श्री राम जी ने महर्षि च्यवन जी के अनुरोध पर शिव लिंग स्थापित किया। जो महा कालेश्वर का उप ज्योतिर्लिंग है। संगम तंत्र ने इसे दुधेश नाम से वर्णन किया है। वर्तमान में दूधेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यह दक्षिण बिहार में मिनी देवघर के नाम से विख्यात है।


 मंदेश्वर महादेव भृगुरारि गोह : भगवान श्री राम जी ने गया घाम की यात्रा क्रम में पुनपुन और मंदार संगम पर एक शिव लिंग स्थापित किया था। यह विशाल शिव लिंग मंदरेश्व महादेव के नाम से विख्यात है। इसकी चर्चा आनंद रामायण में है।



च्यवनेश्वर महादेव गोष्टिल गोरकटी गोह : ब्रह्म रामायण के अनुसार महर्षि च्यवन जी ने यहां शिव लिंग स्थापित किया था। यह स्थान दक्षिण पथ गामिनी पुनपुन तट पर स्थित है। यह मंदिर गरीब नाथ के नाम से विख्यात है।


भूतनाथ सोन तट काली घाट दाउदनगर : भगवान श्री कृष्ण जी अर्जुन और भीम के साथ मगध साम्राज्य के सीमांत सोन नद के पूर्वी पर आए। उन तीनों ने एक एक शिव लिंग स्थापित किया। सोन के बालू से ढक गया। दाऊद खां के निर्देशन में किला का निर्माण हेतु नींव खोदते समय तीनो लिंग निकला। उसी में से एक शिव लिंग काली घाट सोन तट पर स्थापित किया गया। जो भूत नाथ के नाम से विख्यात है।



 शिव मंदिर देवहरा : इन्दौर की महारानी अहिल्या बाई ने गया घाम विष्णु पद मंदिर जीर्णोद्धार की वास्तु पूजा अर्चना कार्य यात्रा क्रम में पुनपुन तट पर शिव मंदिर निर्माण के बाद शिव लिंग स्थापना किया है। यह मंदिर अभी पुनपुन के एकदम तट पर है।


देव कली ओबरा : कहा जाता है कि मुगल शासन काल में बाबू राम दौर सिंह (जरठिया बाबा) ने रुद्र यज्ञ का आयोजन किया था। उस में एक सौ आठ शिव लिंग की पूजा किया गया। आज यहां अधिक मात्रा में शिव लिंग पाए जाते हैं। भक्तो ने कुछ के मंदिर भी निर्माण किया है।


 संगम ओबरा : आद्री पुनपुन संगम तट पर प्राचीन शिव मंदिर का दर्शन होता है। इसके सम्बन्ध में जानकारी मिलती है कि अठारहवीं शताब्दी में बाबू करण सिंह ने मंदिर का निर्माण करवाया था। आज भक्तो के द्वारा जीर्णोद्धार किया जा रहा है।


गूंगा महादेव कोईलवा हसपुरा : कोइलवां गांव निर्माता आदिवासी इल ने अपने आवास के अग्नि कोण और वायव्य (भंडार) कोण में एक एक शिव लिंग स्थापना किया था। जो आज वृद्ध महादेव और गूंगा महादेव के नाम से मशहूर है। भक्तों ने दोनों जगह मंदिर का निर्माण करवाया है।



 पीरू हसपुरा : संस्कृत गद्य महा काव्य के निर्माता महाकवि वाणभट्ट प्रत्येक दिन देवकुंड में शिव लिंग की पूजा करने जाते थे। वृद्धावस्था होने पर एक शिव लिंग स्थापना किया था। जो आज भी बाण भट्ट संस्कृत विद्यालय के समीप स्थित है।



 हेम नाथ मंदिर सिहाडी : फतेहपुर हसपुरा के इस मंदिर को सिहाडी के पूर्व जमींदार रघुनाथ सहाय के पूर्वज ने जयपुर से बने बनाए पत्थर का मंदिर स्थापित किया है। यह हेम नाथ मंदिर के नाम से मशहूर है। कहते हैं इसमें सीमेंट या चुना-सुर्खी का इस्तेमाल नहीं किया गया है।


हिरण्य वाहक महादेव पचरुखियां हसपूरा : प्राचीन काल में हिरण्य वाहक (सोन नद) की धारा यहां बहती थी। आज इसे बह कहा जाता है। इसके दक्षिण किनारे बाबू करण सिंह ने एक शिव लिंग स्थापित किया था। जो आज हैबस पुर के भक्तों ने जनता के सहयोग से सुंदर मंदिर का निर्माण करवाया है।

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