Thursday 16 February 2023

महाशिवरात्रि पर भग के अधिष्ठाता शिव की पूजा करने से मिलेगी युक्ति और मुक्ति

 महाशिवरात्रि विशेष 




फोटो-शुकबाजार स्थित शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग


अर्थ- भ मतलब अभिवृद्धि और ग मतलब प्राप्त होने वाली वस्तु


युक्ति व मुक्ति- ‘आ चांडाल मनुष्याणां भुक्ति मुक्ति प्रदायकम।‘


उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) :


शनिवार को महाशिवरात्रि का व्रत है। महाशिवरात्रि, अर्थात भग के अधिष्ठाता शिव की पूजा का अवसर। शहरी एवं ग्रामीण इलाके में पूजा की तैयारी शुरु हो गई है। भग में स्थापित शिवलिंग, वास्तव में सृष्टि के सृजन का प्रतीक माना जाता है। इस पर्व विशेष में ऐसी ही शिवलिंग की पूजा की जाती है। समाज भग और शिवलिंग को लेकर जिज्ञासु रहता है। पं. लालमोहन शास्त्री बताते हैं कि भ अभिवृद्धि को तथा ग प्राप्त होने वाली वस्तु को कहते हैं। इसी भग के अधिष्ठाता शिव हैं। मान्यता है कि शिव की उपासना युक्ति और मुक्ति दोनों देता है- ‘आ चांडाल मनुष्याणां भुक्ति मुक्ति प्रदायकम।‘ सहज सुलभ आशुतोष या विशेश्वर महादेव कामना पूर्ण करते हैं। मूर्ति मृदा बिल्व दलेन पूजा, अयत्र साध्यं वदनाब्ज वाध्याम पूलं च य धत मनसो भिलाषी, स्वरुप विश्वेश्वर एवं देव:। अर्थात मिट्टी की प्रतिमा की पूजा बेलपत्र से और बिना परिश्रम गाल बजा देने से वाद्य का काम हो जाता है। इससे भक्तों की सारी अभिलाषा पूर्ण हो जाती है।


 


अभिषेक प्रिय हैं भगवान शिव:- 

भगवान शंकर अभिषेक प्रिय हैं। इसके बिना शिव की उपासना पूर्ण नहीं होती। दक्षिण भारतीय विद्वान तिरुमूलर की मानें तो पत्र से अर्चना करना सबको सुलभ है। पानी, विल्व पत्र, चावल से ही पूजा हो जाती है। इसीलिए इन्हें दरिद्रों के देवता माना जाता है। कहा गया है कि शिव ही समस्त प्राणियों के अंतिम विश्राम स्थल हैं- ‘विश्राम स्थानमेकम’। अनंत पाप तापों से उद्विग्न हो कर विश्राम के लिए प्राणी जहां शयन करे, बस उसी सर्वाधिष्ठान को शिव कहते हैं-‘शेरते प्राणिनो यत्र स शिव।‘


 


सभी संप्रदाय करते हैं शिव पूजा:-


बिहार में सभी सम्प्रदाय सभी देवों के महादेव की पूजा करते हैं। यहां सौर, गाणपत्य, शैव, शाक्त एवं वैष्णव पांच सम्प्रदायों में हिन्दु समाज विभक्त है। ये जिन देवों के उपासक होते हैं, वह अपने इष्टदेव का त्याग कर अन्य देवता की उपासना प्राय: नहीं करते।


 


चतुर्दशी को रजनी उदय, वही है शिवरात्रि:-


 ‘फाल्गुने कृष्ण पक्षस्य या तिथि स्याच्य चतुर्दशी। तस्यां या तमसी रात्रि: सोच्चते शिवरात्रिका।‘ यह श्लोक स्वयं भगवान शिव ने कैलाश पर्वत पर अपनी भार्या पार्वती को सुनाया था। फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को जिस अन्धकारमय रजनी (काली रात) का उदय होता है, उसी को शिवरात्रि कहते हैं। इसी दिन आदिदेव महादेव सूर्य के समान दीप्त सम्पन्न हो शिवलिंग के रुप में आविर्भूत हुए थे।


 


पृथ्वी से प्रकट हुआ था शिवलिंग:-


फोटो-आचार्य लाल मोहन शास्त्री

शिव का प्रथम लिंग शिवरात्रि की महानिशा में पृथ्वी से प्रकट हुआ था। पंडित लाल मोहन शास्त्री बताते हैं कि इसीलिए शिवरात्रि मनाया जाता है। इस रात्रि के चार प्रहर में पूजा अर्चना के भी चार विधान होते हैं। इनके अनुसार प्रथम प्रहर में दूध से द्वितीय प्रहर में दही से, तृतीय प्रहर में घी से, तथा चतुर्थ प्रहर में मधु (शहद) से शिवलिंग को स्नान करा कर पूजा करना चाहिए। 



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