Monday 12 June 2023

दाउदनगर नगर परिषद चुनाव : मतदाताओं की बदली राजनीति ने किया सबको परेशान





नगर परिषद के चुनाव में जो ट्रेंड दिखा उससे कई लोग काफी परेशान हैं। अपनी चुनावी जीत को अंजली कुमारी सामाजिक समरसता और विकास के नारे की जीत बता चुकी हैं। उनके अनुसार यह आपसी भाईचारे की जीत हुई है। लेकिन अन्य प्रत्याशी अपनी हार की वजह क्या बताते हैं, यह जानना भी दिलचस्प होगा। राजनीति जिस तरह के मतदाताओं ने की उससे लोग काफी चौंके हैं। वार्ड पार्षद, उप मुख्य पार्षद और मुख्य पार्षद के चुनाव को लेकर जो परिणाम आए उसे लेकर मुख्य पार्षद पद की प्रत्याशी रहे प्रत्याशियों के प्रतिनिधि क्या सोचते हैं, यह जानना दिलचस्प होगा। आखिर उनकी हार क्यों हुई।


अपनी बादशाहत कायम करने को एक हुए विरोधी : कौशलेंद्र सिंह


मीनू सिंह के चुनाव हारने पर इनके पति कौशलेंद्र सिंह कहते हैं कि जो लोग शहर को परोक्ष रूप से चलाना चाहते हैं वे सभी एक होकर घेराबंदी करने में लगे रहे। आपस में जो लोग विरोधी थे वह भी अपनी लड़ाई भूल कर एक हो गए। उन्होंने कहा कि ईश्वर से प्रार्थना है कि मुझसे बेहतर कार्य अंजली कुमारी करें, शहर का विकास करें और शहर के जो हित में नहीं हैं, जो अव्यवस्था फैला सकते हैं, उनसे भी दूर रहें। कहा कि जनता का समर्थन काफी मिला। सबको धन्यवाद। कहीं चूक हुई होगी। काफी कम अंतर से हार हुई है। 



नेता का दिया गुण कर रही जनता इस्तेमाल


पूर्व मुख्य पार्षद और इस बार स्वयं वार्ड पार्षद चुनाव हार गए परमानंद पासवान कहते हैं कि नेताओं ने जनता को भ्रष्ट बनाया अपने लाभ के लिए, अब उस सूत्र का इस्तेमाल जनता अपने लाभ के लिए कर रही है, जो लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। इनकी पुत्रवधू मोनी कुमारी भी मुख्य पार्षद का चुनाव लड़ रही थी और वह हार गई। परमानंद कहते हैं कि लोकतंत्र के लिए यह चुनौती होगी जिस तरह की परिपाटी शुरू की गई है। वोटर सब से लाभ ले लेता है। टिकाऊ बनाम बिकाऊ का मामला है। स्थिति यह है कि अब चुनाव में नेता की दक्षता, योग्यता, सामाजिक योगदान, उसके अनुभव को वोट देने को आधार नहीं बनाया जाता।



जनता ने ढंग से मूल्यांकन नहीं किया


मुख्य पार्षद प्रत्याशी रही निशा कुमारी के पति निशांत राज ने कहा कि इस चुनाव में बहुत कम प्रत्याशी मुद्दों पर आधारित चुनाव लड़ रहे थे। जीत हार के समीकरण में मुद्दे गौण हो गए और केवल धनबल बाहुबल का बोलबाला हो गया। विकास और मुद्दे केवल चर्चा तक सिमित रह गए। प्रत्याशियों की नेतृत्व क्षमता, राजनैतिक ज्ञान, कार्य क्षमता का जनता ने ढंग से मूल्यांकन नहीं किया। धन निवेश को मतनिवेश से चोट देने का नारा भी दिया था। इसका भी असर जनता पर शायद नहीं हुआ।



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