Sunday 11 September 2016

बस ! साहेब और भला आज कौन?

शहर का आज मिजाज बदला हुआ सा है। सुबह से शाम हो गयी। हर तरह साहेब की चर्चा है। लोग टीवी से लेकर अखबार तक पर टकटकी लगाये हैं। अपनी बेबाक राय रख रहे हैं। क्या वाकई यह बेबाक है। बेबाक...। हंसी आती है। डर भी सिसकता दिख रहा है। लोग एक से एक तर्क दे रहे हैं। बाप रे बाप ! राजा हाथी चढ गये थे, हाथी पर आये थे। अब हाथी का जमाना कहां रहा भाई। जमाना आधुनिक हो गया है। संसाधन आधुनिक हो गये हैं। इसलिए साहेब के लिए पलक फावडे बिछाने वाले लक्जरी वाहनों का काफिला ले के चले। 1986 से गुजरता हुआ साहेब 2016 में हैं। भला क्या फर्क पडता है इससे कि मामले 56 हैं कि 63 हैं। पहली बार राज्य में एके-47 दिखाने वाले के हाथ एके-56 है या नहीं है? जमाना बदल गया है भाई साहब ! उसी के अनुसार सबको रहना है। साहब ने तो कह भी दिया है कि जैसा था- वैसा ही रहुंगा। फिर काहे का डर। यहां ध्यान दें प्लीज.. का और डर को मिला के पढें। काडर। अरे डर है तो काडर (कैडर) बन जाइये। तब भला कोई क्या कर लेगा? लोग झुठे मिचमिचाये हुए हैं। कहते हैं न.. जब अपना स्वार्थ नहीं सधता तभीए भाई लोग आंख दिखाते हैं या आंख तरेरते हैं। वरना तो आंख मिलाते रहते हैं। अजीब है। शहर में तर्क जारी है। कौन भला है कौन बुरा है? काहे इस पचडे में पडे हो भैया? एक ने कहा सभी तो एक ही जैसे हैं। अरे जब जिसकी चलती है वह अपने अनुसार कर करा लेता है। सुने ना हो भैया- जिसकी लाठी उसकी भैंस। “कभी तेरी बारी तो कभी मेरी बारी। हम सब खेलो पारी-पारी।“ हमाम है तो हमें नंगे ही नहाना होगा। अन्यथा बदन से बदबू आ जायेगी, याद रखना। कोई कह गया- देखो बिहार है, यहां बहार है। क्या बात कही है साहेब ने- परिस्थितियों के मुख्यमंत्री। फंसाये गये। नेता-नेत्री बोले- बिहार के नहीं विश्व के गरीबों के रहनुमा हैं साहेब। हद है रे भाई। बाहुबली और दबंग तो वे हैं जो इतने मामलों में फंसा सके। कारर्वाई तो इनके खिलाफ होनी चाहिए।

और अंत में--
राजा का अपमान नहीं करना चाहिए। राजा राजा होता है। आलोचना से उपर। किंतु जब कोई परिस्थिति की विवशता में राजा बन जाये तो सम्मान बचाना तो मुश्किल ही होगा।

यह भी कि--
ढुंढने निकले थे हम इंसान तेरे बिहार (शहर) में।
सब के चेहरे पर मगर लिक्खी हुई जातें मिलीं॥

No comments:

Post a Comment