Tuesday 20 September 2016

वरना ऐसे कैसे नगीना हो जाएगा शहर भाई? ..

शहरनामा-2 
हर व्यक्ति में ईश्वर का वास है। यह हम नहीं कह रहे, भारतीय वांग्मय कहता है। फिर किसी से किसी का भला विवाद काहे हो जाता है? वास्तव में हम खुद को ही नहीं समझ पाते हैं। जब हम स्वयं से यह पूछना शुरु कर दें कि मैं क्या हूं? कौन हूं मैं? मेरी अपनी सीमा क्या है? तो संभव है विवाद में उलझना कम हो जाये। हां, कुछ मित्र जब अधिक अपेक्षा करते हैं, अधिक हस्तक्षेप करते हैं, अनावश्यक सलाह देते हैं तो समस्या बढती चली जाती है। बुजुर्गों ने कहा है- यह शहर है नगीना। वाकई नगीना है तो कई नगीने भी होंगे ही, वरना ऐसे कैसे नगीना हो जायेगा शहर भाई? समस्या तब आती है जब मित्र यह समझ ले कि- मैं हूं तभी मेरे दूसरे मित्र की चमक है।  कोई युवा राजनीति के रास्ते पर हो या शिक्षा के मार्ग पर, उसकी सफलता तभी गुणात्मक होती है जब वह अपने विवेक से काम ले। पांव छूने वाला कोई संस्कारी युवा जब भटक जाये, अनावश्यक आक्रामक हो जाये तो यह सवाल उठता है कि क्या सलाहकार की भूमिका विचारणीय है? हमेशा मिठी-मिठी बात करने वाला और दूसरे की शिकायत करने वाला सलाहकार भला नहीं कर सकता। शहर में चर्चा होने लगी है कि सलाहकार की भूमिका नकारात्मक है। यदि कोई किसी के बारे में गलत बताता है तो कम से कम संस्कार हो या लोकतंत्र में विश्वास, अगले से सीधे संवाद तो करने की अपेक्षा बनती है। भला इसमें गुरेज क्यों? जबकि छोटे से शहर में हर किसी को कहीं-न-कहीं किसी मोड पर तो मुलाकात हो ही जानी है। कहते हैं- सौ समस्या की जड है संवादहीनता। लेकिन जब कोई मित्र संवाद करने की कोशिश को पराजय के भाव से जोड दे तो माफ करिए ऐसे लोगों से दूर, बहुत दूर रहना ही शायद सही हो सकता है।

और अंत में--
कारा बहुत बडे-बडे लोग गये हैं। कोई भी भेजा जा सकता है। बहुत बडे परिवर्तन का भाव रोपण भी इसने किया है। बडी-बडी किताबें इसमें लिखी गयी है। कारा में मनुष्य को एकांत प्राप्त होता है। चिंता नहीं, बदले का भाव नहीं बल्कि चिंतन करे आदमी तो महान बनने से कौन रोक सकता है भला? एकाग्रता में जब मन शांत होता है तो मनुष्य अपना असली मित्र और शत्रु पहचानने की शक्ति प्राप्त कर लेता है। सोचो- कहां थे, कहां जाना था, कहां पहुंच गये?

यह भी कि-
बडी खमोशी से भेजा था गुलाब उसको,
पर रवैये (खुशबु) ने शहर भर में तमाशा कर दिया॥ 
(उपेन्द्र कश्यप)

No comments:

Post a Comment