Saturday 31 October 2015

बीफ मुद्दे पर यह हंगामा क्यों है बरपा ?


एक विनम्र निवेदन है। इसे पढें, विचार करें और तब कोई टिप्पणी करें। कि क्या मेरी चिंता जायज नहीं है।
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बीफ मुद्दे पर खुद को रोकने का प्रयास जब असफल हो गया तो भाई लिख रहा हूं। लिखना क्या, कहिए कुछ जो सवाल मुझे मथ रहा है, बेचैन कर रहा है, वह आपके समक्ष रख रहा हूं। जितना आपको लिखने-बोलने की आजादी है उतना मुझे भी है। यह इस कारण कह रहा हूं कि एक बार बीफ के मुद्दे पर मैंने लिखा था तो विधर्मियों ने नहीं बल्कि अपनों ने अधिक नाकारात्मक टिप्पणी की थी।

बीफ ने हंगामा मचा रखा है। पूरे देश में और खास कर बिहार के चुनाव में लगता है दूसरा कोई मुद्दा है ही नहीं। मुस्लिम देशों में सुअर के मांस पर रोक है। इस कारण सवाल उठाया जा रहा है कि भारत में गोवंश के मांस पर प्रतिबन्ध होना चाहिए। सवाल उनके भी सही हैं कि यह तय करना न्यायोचित नहीं है कि कौन क्या खायेगा, या क्या नहीं खायेगा? भारत की परिस्थिति अलग है। यहां गाय को माता माना जाता है। ठीक वैसी ही स्थिति है कि हम गंगा को माता मानते हुए प्रणाम करते हैं और उसमें घर का कचडा डालने से परहेज नहीं करते। गाय को अगर माता वास्तव में मानते हैं तो सवाल है कि कसाइयों को गाय बेचता कौन है? कितने मुस्लिम गाया पालन करते हैं? हम ही किसी से गाय तब बेचते हैं जब वह बिसुख जाती है, बुढी हो जाती है। हम तब यह जानते हैं कि जिससे बेच रहे हैं वह फिर इस अनुपयोगी गाय का क्या करेगा? हम मानें या न मानें यह सत्य है कि गाय बेचने वाला यह जानता है कि इस बेकार हो गये गाय के साथ उसका क्रेता क्या करने वाला है। जब इस समाज में मां और पिता बुढे हो जाने पर बच्चों द्वारा पीडित किए जाते हैं, सताये जाते हैं, अनाथालयों में छोड दिये जाते हैं, अंजान ट्रेन या स्टेशन पर छोड दिये जाते हैं, प्रताडना से तंग माँ-बाप आत्महत्या कर लेते हैं तो फिर बेकार हो गयी गाय को माता कह कर उसकी सेवा कौन करेगा? यह कडवा सत्य है। आप मानें या न मानें। जब गो हत्या प्रतिबन्धित हो जायेगा तो सडकों पर कुत्ते की मौत मरती “गाय-माता” देखी जायेंगी। क्योंकि कोई खरीदार नहीं मिलेगा और कोई बेकार गाय का रखवाला नहीं होगा। गो-पालक कंगाल होते जायेंगे। कोई गो-पालन करना नहीं चाहेगा क्योंकि बुढी गाय भी बेचकर कुछ पैसे हासिल कर नया गाय खरीदने का विकल्प समाप्त हो जायेगा। गाय भी अभिजन हो जायेगी, क्योंकि बेकार बुढी गाय को रख कर खिलाने वाले सिर्फ अभिजन ही होंगे। जिनके घरों में नोटों के तकिये होंगे।


सवाल यह भी कि तब उस ब्राह्मण व्यवस्था का क्या होगा जो सदियों से चली आ रही है। बुढी हो या बेकार गाय, उसका मरना तो तय ही है। जब गाय घर में खूंटे पर मरेगी तो प्रायश्चित कैसे होगा? कौन हाथ में पगहा लेकर गुंग बनकर दर-दर भीख मांगेगा? जब ऐसा नहीं कोई करेगा तो नया बवाल करने का हथकंडा अपना लिया जा सकता है। सामाजिक टकराव की नयी परिस्थिति पैदा होगी या की जायेगी।

और अंत में--------

राजद के नेता प्रो.रघुवंश सिंह ने जो कहा था वह 200 फीसद सही कहा था। इस पर बौद्धिक विचार की दरकार थी किंतु वोट की चिंता और राजनीति ने इसे झुठा बता दिया। इस मुद्दे पर बहस करनी हो तो काफी कुछ सप्रमाण लिखा जा सकता है। फिलहाल इतना ही।        

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