Saturday 17 October 2015

जनता की तरफ से जीत की घोषणा नहीं !



अटकलबाजियों में नेता कार्यकर्ता व्यस्त
सबके हैं अपने–अपने दावे मगर शंका भी
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) ओबरा विधान सभा क्षेत्र के लिए मतदाताओं ने अपना ब्रह्मास्त्र ईवीएम में कैद कर दिया है। अब अटकलबाजियों का दौर प्रारंभ हो गया है। प्रमुखत: चार प्रत्याशियों और उनके समर्थकों की ओर से जीत का दावा किया जा रहा है। जोड-घटाव जातीय ध्रुवीकरण और जातीय आधार मतों के विभाजन से जुडी प्राप्त सूचनाओं को लेकर किया जा रहा है। अनुमान किया जा रहा है कि किस जाति का वोट किसको मिला? मिला तो कितना- कितना किस- किस को मिला? जीत-हार की निर्भरता इसी जातीय आधार पर टिकी हुई है। यही बता जाता है कि चुनाव का मुद्दा, अगर था भी तो फिर क्या था? इस उधेडबुन के कारण ही लडाई में बाजी कौन मार रहा है यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है। 1995 और 2000 के विधान सभा चुनाव के दिन ही जनता की ओर से घोषणा कर दी गयी थी कि आईपीएफ की जीत तय है। हुआ भी ऐसा ही, राजाराम सिंह जीत गये। 2005 के फरवरी और अक्टूबर में भी जनता आश्वस्त हो गयी थी कि राजद की जीत की अत्यधिक संभावना है। हुआ भी ऐसा ही और सत्यनारायण सिंह जीत गये। 2010 के चुनाव में जदयू की जीत और राजद की हार तय दिख रही थी और मामुली अंतर से सोम प्रकाश निर्दलीय जीते। हालांकि इनके समर्थकों ने तब खुद को सबसे अधिक राजनीतिक जानकार और विश्लेषक बताते हुए जीत का दावा किया था। 2015 का वोट डाल दिया गया है, कौन जीत सकता है इसको लेकर जनता आश्वस्त नहीं है। मामला चूंकि एकतरफा नहीं है। संघर्ष के कोण कई हैं और तीखेपन के साथ।   
यह स्पष्ट है कि जब जनता जीत को ले साफ बात कहती है तो हार-जीत का अंतर अधिक होता है और जब दुविधाग्रस्त होती है तो यह फासला कम होता है। प्रतिक्षा करनी होगी 08 नवंबर की जब मतगणना बाद अधिकृत परिणाम घोषित होगा।


  



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