Friday 30 October 2015

महागठबन्धन की जीत और एनडीए की हार के संकेत


उपेन्द्र कश्यप
बिहार में महागठबन्धन जीत रहा है और एनडीए हार रहा है। यह संकेत मिल रहा है। मेरे पत्रकार मित्रों (जिन्होंने कई जिलों में न्यूज कवरेज किया) की मानें तो संकेत एनडीए के लिए शुभ नहीं है। इसकी कई वजहें हैं। 18.10.2015 को पटना में विज्ञापनों से नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की तस्वीर भाजपा ने छापनी बंद कर दी है। इससे तो यही संकेत माना जा रहा है कि एनडीए मोदी को हार के कलंक से बचाने की कोशिश कर रही है।

इस हार की आशंका की वजह क्या है?
यादव, मुस्लिम और कुर्मी मतों का अटूट ध्रुवीकरण। इसके जिम्मेदार अकेले अगर कोई है तो भाजपा के रणनीतिकार। महागठबन्धन अपने वजूद की लडाई में है। इसके सबसे बडे वोटर यादव हैं, जिनके लिए लालु प्रसाद यादव भगवान से कम नहीं हैं। बिहार में गरीबों को आवाज देने और सामंती व्यवस्था को काफी हद तक खत्म करने (1990-1995 के कार्यकाल में) के कारण गैर यादव पिछडों, अति पिछडों और दलितों, महादलितों में भी उनकी प्रतिष्ठा है। इस कारण मोदी को लालु को टारगेट करने से बचना चाहिए था। उनको नीतीश को टारग़ेट भी न कर के सिर्फ विकास और अपनी बात करनी चाहिए थी। व्यक्तिगत टिप्पणियों ने इन मतदाताओं को फेवीकोल की तरह चिपका दिया। इसके साथ ही सामंतवाद और सामंती क्षेत्रों में प्रभावित या कुंठित अन्य पिछडी और अति पिछडी जातियां भी महागठबन्धन के साथ चली गयीं। इससे इनका वोट एनडीए से अधिक होता दिख रहा है।

उपेन्द्र कुशवाहा का प्रभाव न्यूनतम होना भी एक प्रमुख कारण है।  इनकी जाति का वोट ट्रेंड दलगत नहीं घोर जातिवादी माना जा रहा है। जहां कुशवाहा प्रत्याशी जिस दल का था उसे मत दिया। महागठबन्धन के करीब तीन दर्जन सीट सिर्फ इसी कारण जीतता हुआ माना जा रहा है, क्योंकि वहां प्रत्याशी कुशवाहा है। बिहार में इसी प्रवृति के कारण कुशवाहा का कोई नेता नहीं उभर सका है। उपेन्द्र कुशवाहा प्रयोग के ही स्तर पर दफन न हो जायें इसका डर भी है। क्योंकि उनमें अपनी जाति का वोट ट्रांसफर कराने की क्षमता नहीं है। ऐसे में उनको भाजपा शायद ही अधिक तवज्जो देगी और महागठबन्धन उन्हें बडा नेता बना कर अपने पैर में कुल्हाडी मारने की आशंका पैदा करने से रहा।

भाजपा का मुकाबला भाजपा से ही।  कारण है पार्टी नेताओं का बेवकुफी भरा अनावश्यक बयानबाजी। बीफ और आरक्षण के अलावा शैतान जैसे बयान गलत सन्दर्भ में हों या न हों, किंतु महागठबन्धन के नेताओं ने अपने समर्थकों को अपने पक्ष में और एनडीए के खिलाफ समझाने में सफल रहे। एक यादव मित्र ने कहा- बताइये, देश के प्रधानमंत्री लालु जी को शैतान कह रहे हैं।

एनडीए के वोटर वोट नहीं देते।  एनडीए खासकर भाजपा के आधार मतदाता न तो आक्रामक वोटिंग करते हैं न ही व्यापक। ओबरा विधान सभा क्षेत्र को अगर आधार मानें तो यह मतदाता वर्ग 50 से 52 फीसद तक ही मतदान कर पाता है जबकि विपक्षी वोटरों ने 60 से 80 फीसद तक मतदान किया। एक सवर्ण भुमिहार युवक ने कहा कि उसके गांव में 1000 वोटर हैं उसमें से मात्र 80 उपस्थित थे जिन्होंने 500 वोट डाला। इसे गर्व है कि और क्या कर सकते थे। इसका दूसरा पक्ष है कि यह वर्ग उपस्थित न होकर 50 फीसद वोट पोल कर सका, जबकि महागठबन्धन का वोटर उपस्थित होकर इससे काफी अधिक मतदान कर सका है। यह “वोटर टर्न आउट” रिपोर्ट काफी प्रभाव परिणाम पर डालेगा। दूसरी बात एनडीए के घटक में मात्र लोजपा के नेता राम विलास पासवान ही अपनी जाति के थोक वोट शिफ्ट करा सके। रालोसपा का संगठन कुशवाहा जाति से बाहर नहीं है और हम अभी तो खडा ही हो रहा है। नतीजा चारों दलों के कार्यकर्ताओं में समंवय का अभाव दिखता है।  
अंत में...

ध्यान देने वाली बात है कि राजद सुप्रिमो लालु प्रसाद यादव जी सफेद कुर्ता नहीं पहन रहे इस चुनावी प्रचार अभियान में। रंगीन, चेक कुर्ते में ही दिख रहे हैं। कारण ? किसी ने सुझाया होगा कि इस टोटमे से बिहार फतह आसान और निश्चित होगा?

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