Wednesday 28 October 2015

श्रमण संस्कृति का वाहक दाउदनगर क्यों?

                                                        ....................अपनी बात  


                         
   विश्व के बड़े भू-क्षेत्र का राष्ट्र एवं राज्यों का इतिहास लिखित है। किसी कस्बे का लिखित इतिहास शायद ही मिलता है। दाउदनगर थोड़ा भाग्यशाली है। मुगलकालीन शहर का इतिहास बताने के लिए इसके पास तारीख-ए-दाउदियाहै। अरबी, फारसी मिश्रित कठिन उर्दू में लिखी हुई।  इसके अनुवाद पर विगत तीन साल से काम कर रहा हूं। इस पुस्तक में मैंने इसी कारण तारीख-ए-दाउदियासे कुछ प्रसंग ही लिया है जिससे इतिहास के कुछ सन्दर्भ हासिल हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों ने भी भूगोल के इस हिस्से का अध्ययन किया है। मगध का इतिहास ही भारत का इतिहास है। इसी गौरवशाली मगध के पश्चिमी किनारे और शाहाबाद (रोहतास) के पूर्वी किनारे सोन के तट से सटा शहर दाउदनगर 23 वार्डों का नगर पंचायत है। इसके साथ ही भखरुआं जुड़ा हुआ है लेकिन शहरी क्षेत्र से फिलहाल बाहर ही है। शहर आक्षांश 25.03 डिग्री (उत्तर) और देशांतर 84.4 डिग्री (पूरब) में स्थित है। समुद्रतल से यह शहर 84 मीटर यानि 275 फुट की औसत उंचाई पर बसा हुआ है। टाईम जोन है- आईएसटी (यूटीसी़530)। राष्ट्रीय राजमार्ग 98 शहर से होकर गुजरता है। 2011 की जनगणना के अनुसार शहर की आबादी 52364 है। पुरुष की आबादी 52 फीसदी 27229 और महिला आबादी 48 प्रतिशत 25134 है। 71 प्रतिशत पुरुष साक्षरता और 61 प्रतिशत महिला साक्षरता के साथ 66 फीसदी  की औसत साक्षरता दर है। कुल  जनसंख्या के 18 फीसदी आबादी की उम्र छः वर्ष से कम है। यहां 86 प्रतिशत  हिन्दू और 14 प्रतिशत  मुस्लिम आबादी है।
मैं इसमें इत्तेफाक नहीं रखता कि सिलौटा बखौरा महाभारत काल में श्री कृष्ण के अग्रज बलराम (इनका एक नाम-बलदाउ है) के आगमन से दाउग्राम बन गया, जो कालांतर में दाउदनगर हो गया। कुछ लोगों ने इस नाम को ही प्रचलित बना देने की कोशिश जरुर की, मगर सफलता न तो मिलनी थी, न मिली। सच्चाई को झुठलाना असंभव है। मैं यही मानता हूं कि औरंगजेब के सिपहसालार दाउद खां ने इस शहर को बसाया था, इसलिए इसका नाम दाउदनगर है। पहले आपने उत्कर्ष (2007) और उत्कर्ष दो (2011) में मेरी कोशिश को देखा परखा है। पूरे अनुमण्डल क्षेत्र की कई नई एवं खोजपरक बातें सामने लाया था। उत्कर्ष 2007 में मैंने दाउदनगर का इतिहास और दाउद खां की जीवनी बताया था। इस बार भौगौलिक दायरा कम किया है मगर अध्ययन व्यापक और गहराईपूर्ण है।

 1994 में जब मैंने पत्रकारिता प्रारंभ किया तो एक मिशन के साथ किया। मस्तिष्क के एक कोने में यह बात बैठ गई थी- जो रचता है वही बचता है।“  हर बार कुछ नया करने, नया खोजने को प्रेरित करता रहा। मूलरूप से दो क्षेत्रों में गहरे अनुसन्धान से मैंने पत्रकारिता की शुरुआत की। अद्भूत पर्व जिउतिया और दूसरा नक्सली गतिविधियां। इक्कीस साल की पत्रकारिता में मैंने क्षेत्रीय राजनीति के बाद सर्वाधिक खोजी खबरें इन्हीं दो विषयों पर लिखा है। पहली बार हथियारबंद दस्ता के बीच जाने का बेखौफ कार्य हो या जिउतिया को राज्यस्तरीय या राष्ट्रीय प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में महत्वपूर्ण स्थान दिलाने का काम। साल 1995 का जिउतिया मेरे लिए एक अवसर के रुप में सामने आया। मैं इसकी पूर्ण जानकारी के लिए कई सप्ताह पूर्व गलियों में बुजूर्गों के पास जानकारी लेने गया। यह देखा, यहां की पूरी संस्कृति ही श्रमण है यानि श्रमिकों की संस्कृति है। हर गली, मुहल्ले की हालत एक सी है। यहां की बसावट, उनका पेशा, उनकी जीवन शैली, उनके व्यवहार पूरी तरह श्रमिकों की है। यहां की आबादी मूल नहीं है। या तो सतरहवीं सदी में दाउद खां ने बुलाकर बसाया है या फिर रोजगार की तलाश में कहीं से आये और फिर यहीं के हो कर रह गए। जितनी जातियां, और जातियों के नाम पर मुहल्लों के नाम हैं, उतना शायद ही किसी दूसरे कस्बे में आपको मिलेगा। शहरी क्षेत्र में न्यूनतम 44 मुहल्ले हैं। उमरचक, पटेलनगर, शीतल बिगहा, गौ घाट, बुधन बिगहा, पिलछी, मौलाबाग, ब्लौक कालोनी, न्यू एरिया, अफीम कोठी, चुड़ी बाजार, कान्दु राम की गड़ही, पांडेय टोली, गड़ेरी टोली, अफीम कोठी, खत्री टोला, मल्लाह टोली, चमर टोली, पटवा टोली, दबगर टोली, ब्राहम्ण टोली, कुम्हार टोली, नाई टोली, लोहार टोली, महाबीर चबुतरा, थाना काॅलोनी, हास्पिटल काॅलोनी, यादव टोली, डोम टोली, कसाई मुहल्ला, नालबन्द टोली, कुर्मी टोला, दुसाध टोली, इमृत बिगहा, बुधु बिगहा, रामनगर, अनुप बिगहा, रामनगर, नोनिया बिगहा, माली टोला, जाट टोली, यादव टोली, ब्राह्मण टोली और बालु गंज। इन मुहल्लों में शामिल सभी जाति सूचक मुहल्ले पुरातन हैं। एक ही नाम के दो-दो, तीन-तीन मुहल्ले भी हैं। व्यक्ति के नाम सूचक और अन्य नाम नगरपालिका के विस्तार के साथ जुड़े इलाकों के नाम हैं। जिन जातियों का ज्ञान इन मुहल्ला नामों से होता है, उसके अलावा भी कई श्रमिक जातियां यहां रहती हैं। रंगरेज, डफाली, कुंजडा, अंसारी, मुकेरी, सुड़ी, सौंडिक, तेली, धुनिया, रोनियार, अग्रवाल समेत तमाम तरह की श्रमिक जातियां यहां हैं। सोनार पट्टी जैसे नाम तारीख-ए-दाउदिया में हैं, जो अब लापता हो गए। यहां श्रम करने वाली जातियों ने अपना समाज गढ़ा। अपनी साझा संस्कृति बनाई। इस लोक संस्कृति के मूल में है जिउतिया- दाउदनगर के जिउतिया जिउ (ह्दय) के साथ हई गे साजन। यह श्रम से उपजी हुई संस्कृति है। संस्कृति का दायरा संकुचित नहीं होता। उसमें नये विचारों और प्रवृतियों का समावेश होता रहता है। जिन संस्कृतियों में नये विचारों और नये समाज का प्रवेश निषेध हो या सबकी सहभागिता वर्जित हो, या उनका प्रवेश कठिन हो, वैसी संस्कृतियां जड़ बन जाती हैं। उनके खत्म होने का खतरा रहता है। जिउतिया की व्यापकता की कई मिसालें हैं। हिन्दु-मुस्लिम, उंच-नीच, बड़ा-छोटा, सवर्ण-अवर्ण की दूरी नहीं है। संस्कृतियों की शक्ति बड़ी होती है। यही वजह है कि वह अपने साथ सबको जोड़ लेती है। कभी जिउतिया देखिए-चकित रह जाइयेगा, इस शक्ति का दर्शन करके। पूरा शहर ही इस लोकोत्सव में भींगा-भींगा सा दिखता है। इसके प्रभाव से शहर का कोना-कोना, प्रभावित होता है। व्यक्ति-व्यक्ति इससे आत्मिक जुड़ाव का आनंद लेता है। खैर.. 
 इनमें से चुनिन्दा श्रमिक जातियों के आगमन, इनके पूर्वजों के आने का उद्देश्य, जिउतिया समारोह के जन्मने की कहानी सब श्रमिक संस्कृति का ही वाहक हैं। श्रमिकों की संस्कृति ही श्रमण संस्कृति है। इस देश समाज में सदियों से दो विचार परंपराएं चल रही हैं- एक श्रमण परंम्परा दूसरा अभिजन परम्ंपरा। शब्दकोष श्रमण का अर्थ बताते हैं- परिश्रमी, मेहनती। सन्यासी और अभिजन का अर्थ है चैतन्य, सभ्य। अभिजन चिंतन का मूल सूत्र है-शारीरिक श्रम से दूरी। शारीरिक श्रम से जो जितना दूर है उतना श्रेष्ठ है। इस विभाजन की झलक यहां की संस्कृति में भी देख सकते हैं। इसी सन्दर्भ में मैंने इस पुस्तक का नाम श्रमण संस्कृति का वाहक दाउदनगररखा है।  जिसे व्यापक सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए। 
आपको इस बार बतायेंगे 130 साल पूरा कर चूके नगरपालिका के सभी चेयरमैनों का इतिहास, उनका जीवन चरित्र, उनकी उपलब्धियां और राजनीति का उतार-चढ़ाव। इस पुस्तक के लिए जो आवश्यक तथ्य चाहिए वह दुर्भाग्यवश नगर पंचायत के पास उपलब्ध नहीं है। यथा 1885 से लेकर 1971 तक की जनगणना उपलब्ध नहीं है। क्षेत्रफल का ज्ञान चैहद्दी से आगे निकल कर रकबा में नहीं है। अचल संपत्ति का ब्योरा उपलब्ध नहीं है। आपको बतायेंगे 155 साल से अधिक पुरानी जिउतिया संस्कृति के विविध आयामों पर व्यापक शोध। भूगोल, समाज, अर्थ, जाति बसावट, निर्माण, प्रारंभ और वर्तमान के साथ संभावनाओं का अध्ययन। सामाजिक बदलाव की प्रवृतियों और जमीनी राजनीति की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों को भी रेखांकित कर रहा हूं। हां, याद रखिये तारीखें इतिहास नहीं होतीं। हो सकता है एकाधिक तारीखें गलत हों। लेकिन घटना, प्रवृति और विचार को इससे फर्क नहीं पडता।
और अंत में आभार .........
उन सभी सज्जनों का जिन्होंने इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए समय - समय पर परोक्ष या प्रत्यक्ष रुप से अपना सहयोग दिया। प्रेरणा और संबल दिया। गोपाल गंज सैनिक स्कूल में सहायक शिक्षक संजय कुमार शांडिल्य एवं अछुआ कालेज में हिन्दी के व्याख्याता प्रो.शिवपूजन प्रसाद ने किताब की रुप रेखा तैयार करने में ऐसा सहयोग किया कि जितना सोचा था उससे अधिक विस्तार पुस्तक के विषयों को मिला। हिन्दुस्तान कंस्ट्रकशन कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर एम.श्री निवास राव ने हिन्दी भाषी न होते हुए भी जिउतिया का समारोह (2014) देखने के बाद मेरी योजना को सफल करने के लिए मुझे प्रेरित किया। इनकी उपस्थिति में ही पुस्तक लिखने की मैंने घोषणा पुरानी शहर चैक पर ज्ञानदीप पूजा समिति के मंच पर की थी। विवेकानंद मिशन स्कूल के निदेशक डा.शंभू शरण सिंह, भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कालेज के सचिव डा.प्रकाशचन्द्रा, विद्या निकेतन के सीएमडी सुरेश कुमार गुप्ता, नवज्योति शिक्षा निकेतन के नीरज कुमार समेत कई मित्रों ने प्रोत्साहित किया। पुस्तक शुद्धता की मांग करती है। यह कठिन कार्य मेरे मित्र दुर्गा फोटो स्टेट के मुन्ना दूबे ने बखूबी किया। पुस्तक में मेरे समर्पित प्रयास के बावजूद कोई कमी दिखे तो अपने विचार, सुझाव मुझे अवश्य दें। और हां, मैने पूरी निष्ठा के साथ यह कोशिश अवश्य की है कि इतिहास लेखन के बावजूद किसी की भावना को ठेस न पहूंचे। यदि इसमें मैं कहीं चूक कर गया तो भूल के लिए क्षमाप्रार्थी हूं।                     
                                                      



अपने बारे में --------------
नाम- उपेन्द्र कश्यप पिता- श्री मदन गोपाल प्रसाद
माँ- स्व. विद्या देवी
पत्नी- रेखा कश्यप
जन्म- रोहतास जिला के दारानगर गांव में 07.08.1974 को।

मेरा जन्म दारानगर गांव में हुआ और वहां प्राथमिक और मिडिल स्कूल की शिक्षा लेने के बाद औरंगाबाद के दाउदनगर मैं 03 मार्च 1991 को (होली) में आया। इस बीच दाल- रोटी के लिए जीवन का संघर्ष निरंतर तीखा होता चला गया। झारखंड का भवनाथपुर, पलामु का गढवा, भोजपुर का डुमरांव, रोहतास का नासरीगंज कर्मभूमि बना। शिक्षक से लेकर छायाकार तक का काम किया। जब गढवा छायाकार का काम सीख रहा था तब वहां प्रेस फोटोग्राफर फोटो बनवाने आया-जाया करते थे। इससे अखबारों के प्रति आकर्षण बढा। दो खबरों के बीच गैप का नहीं होना चैंकाता था। इसने पत्रकारिता का बीजारोपण मन के किसी अज्ञात से कोने में कर दिया था। नासरीगंज स्टूडियो से सीधे जब 1991 में दाउदनगर आया तो फोटोग्राफी मुख्य पेशा बना। मन को प्रभावित या विचलित करने वाली घटनाओं पर यदा दृकदा लिखना प्रारंभ किया। गोपालगंज सैनिक स्कूल में संप्रति सहायक शिक्षक संजय शांडिल्य के माध्यम से डेहरी के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक श्री कृष्ण किसलय से संपर्क हुआ। उनके द्वारा प्रकाशित साप्ताहिक सोनमाटीमे लिखने लगा किंतु यह पत्रकारिता नहीं विशुद्ध साहित्यिक कर्म था। सन 1994 में डाल्टनगंज से जब राष्ट्रीय नवीन मेलका प्रकाशन प्रारंभ हुआ तो श्री कृष्ण किसलय ने मुझे पत्रकारिता करने का अवसर दिया। फिर इसके बाद पीछे मुडकर नहीं देखा। यहां के तत्कालीन स्थानीय पत्रकार मित्र प्रोत्साहित करने से परहेज करते। विचलित करने की कोशिशें की गयी। मैं मौन होकर पत्रकारिता में रोजाना नये सोपान बनाने लगा। तब आज, हिन्दुस्तान, आर्यावर्त, प्रभात खबर जैसे प्रमुख दैनिक समाचार पत्र के अतिरिक्त आउटलुक, बहुभाषी नई दुनिया एवं अक्षर भारत, सिनियर इंडिया, प्रथम प्रवक्ता, न्यूज ब्रेक, न्यू निर्वाण टुडे, पहचान जैसी कई पत्र-पत्रिकाओं में सम-सामयिक घटनाओं और नक्सलवाद पर लिखता रहा। पत्रिकाओं की लेखनी ने मुझे संतुष्ट किया और परिपक्वता के साथ मांझा भी। पत्रकारिता से असंतुष्ट बने कई व्यक्तियों ने परेशान करने का हर दांव खेला, मगर..., अब जो हैं सो आपके सामने हैं।
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संप्रति- अनुमंडल संवाददाता, दैनिक जागरण, दाउदनगर      
जिला संवाददाता, फारवर्ड प्रेस (द्विभाषी मासिक)
संपर्क- विद्या सदन, वार्ड संख्या-02, पुराना शहर, दाउदनगर (औरंगाबाद)
संपर्क संख्या- 9931852301, 7870790532
ईमेल- upendrakashyapdnr@gmail-com    upendrakashyap@rediffmail-com
मेरा ब्लाग- nayautkarsh-blogspot-com  (जिस पर दाउदनगर की ऐतिहासिक, राजनीतिक, सामाजिक,

सांस्कृतिक महत्व पर मेरे समय-समय पर लिखे हुए आलेख मिलेंगे) 

1 comment:

  1. Sir Book कहाँ मिलेगा दाउदनगर में किस दुकान पर

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