Tuesday 3 November 2015

अंतर्राष्ट्रीय साजिश के शिकार हैं बुद्धिजीवी

अंतर्राष्ट्रीय साजिश के शिकार हैं बुद्धिजीवी
बहुमत की मदहोशी में गलत करती है सरकार

प्रचार के लिए बेहतर माध्यम “मोदी-विरोध”

सहिष्णुता बनाम असहिष्णुता पर बोली जनता
 देश में असिहुष्णता मुद्दा बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी बोलना पडा तो बोले कि 1984 के दोषी इस मुद्दे पर न बोलें। जनता इसे कई नजरिये से देखती है। रजनीश कुमार ने कहा कि जब-जब देश को मजबूत नेतृत्व मिला है इस तरह की अंतर्राष्ट्रीय साजिश हुई है। स्व. इंदिरा गाँधी के शासन को लें। नरेंद्र मोदी के रूप में देश को ईमानदार एवं मजबूत नेतृत्व प्राप्त हुआ है तो अंतर्राष्ट्रीय शक्तियाँ फिर से सक्रिय हैं जिसके साजिश का मोहरा ये तथाकथित बुद्धिजीवी बन रहे हैं। ये सब जाने-अनजाने अपने देश को अस्थिर एवं कमजोर करने के लिए सुनियोजित अंतर्राष्ट्रीय साजिश का हिस्सा बन रहे हैं। संजय तेजस्वी ने कहा कि  मोदी से नफरत करने वाले ही ऐसा कर रहे हैं। उनकी ऐसी मानसिकता बन गई है की गुजरात दंगा का आरोपी सबको साफ करवा रहा है। वे इसके पहले हुए सभी घटनाओं को भूल गए है। संजय गुप्ता बोले विरोध की यह अजीब राजनीति है जिसमें बिना वजह सरकार को पक्ष बनाया जा रहा है। साहित्यकार संजय कुमार शांडिल्य बोले विरोध तो आदमी भृकुटी में बल देकर भी करता है। सत्ता का प्रतिपक्ष आज सक्षम नहीं है। सरकारें बहुमत की मदहोशी में प्राय: गलत राह लग जाती हैं। मीडिया की अपनी सीमाएँ हैं। लोकतंत्र में सरकारों को निरंकुश नहीं छोड़ा जा सकता है। जनता के हित में अगर कोई आवाज उठती है तो उसे उसी रूप में देखे जाने की जरूरत है। आंदोलन लोकतंत्र का प्राण तत्व है। इससे किसी को तकलीफ क्यों होना चाहिए? समर्थन और विरोध की आवाजों का लोकतंत्र में अपनी अहमीयत है। आर्य अमर केशरी  कहते हैं कि चाणक्य ने भी कहा था की जब समाज के बिद्वान लोग और अपराधी प्रवृति के लोग असंतुस्ट होने लगे तब यह प्रसन्ता पूर्वक मन लेना चाहिये की राजा की ब्यवस्था बहुत बढ़िया ढंग से काम कर रही। बस हम वही मानते हैं। अरुण कुमार बोले  पुरुस्कार लौटाने वालों में बहुत सारे ने लोकसभा चुनाव में मोदी के खिलाफ चुनाव प्रचार में भाग लिया था। लोग पुरुस्कार लौटा रहे है पर पुरुस्कार के साथ जो राशि मिली थी वो नहीं लौटा रहे है ये कैसा बिरोध? प्रफ्फुलचन्द्र सिंह ने कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक की अपनी जिम्मेदारी है| चिंता और आशंका तब गहरी हो जाती हैं जब नाराजगी का कारण कहीं स्पष्ट न हो और माहौल ख़राब हो गया देश का मात्र राग अलापा जाय| सतीष पाठक कहते हैं कि सब सस्ती लोकप्रियता पाने का ठोंग है। रंजीत कुमार गुप्ता ने कहा कि सम्मान लौटाने वालों को देश की चिन्ता नहीं है वे लोग देश को शर्मसार कर रहे हैं। धीरज भारद्वाज बोले कि प्रचलित होने का सबसे आसान तरीका मोदी जी का विरोध कर खबरों के माध्यम से अपना नाम कमाना है।


सम्मान लौटाने वाले देशभक्त नहीं-डा.शंभु

राजनीति अधिक, संवेदनशीलता कम-डा.प्रकाशचन्द्रा
सहिष्णुता बनाम असिष्णुता या सुविधा की राजनीति
 देश उबल रहा है। कथित असहिष्णुता के खिलाफ देश तथाकथित बुद्धिजीवी, साहित्यकार, फिल्मकार और वैज्ञानिक अपना सम्मान वापस कर रहे हैं। क्या वास्त्व में सम्मन लौटाने वाले सही हैं या यह सुविधा की राजनीति और साजिश है। इस पर विवेकानंद मिशन स्कूल के निदेशक डा.शंभुशरण सिंह ने स्पष्ट कहा कि सम्मान लौटाने वाले देशभक्त कतई नहीं हैं। यह तमाशा है। सम्मान ने उनकी लेखनी और प्रतिष्ठा को जन जन तक पहुंचाया। क्या प्राप्त प्रतिष्ठा वे लौटा सकते हैं? कहा कि ऐसा करने में उनकी पीढियां गुजर जायेंगी। कह अकि देश ने हाल में जो प्रतिष्ठा विश्व में अर्जित की है उस पर कालिख पोतने का काम किया जा रहा है। भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कालेज के निदेशक डा.प्रकाशचन्द्रा ने कहा कि इअसमें राजनीति अधिक और सवेनशीलता कम है। सरकार को नीचा दिखाने की कोशिश है यह। कहा कि अगर संवेदनशीलता होती तो पहले भी कई घटनायें मानवता के खिलाफ हुई हैं, तब किसी ने क्यों नहीं सम्मन लौटाया? कहा कि तसलीमा के समय कहां थे साहित्यकार? सम्मान लौटाने वालों की नियत पर प्रश्नचिन्ह उठता है। धर्मवीर फिल्म एंड टीवी प्रोडक्शन के निदेशक सह प्रोड्युसर धर्मवीर भारती ने कहा कि 1984 का दंगा सिक्खों और सरकार के बीच हुआ था। तसलीमा को देश से निकाल दिया गया, उसके खिलाफ पांच फतवे जारी हुए तब कहां थे फिल्मकार? गोपाल बाबू अलंकार ज्वेलर्स के राजेन्द्र प्रसाद सर्राफ ने कहा कि इससे माहौल बिगडेगा, बनेगा कतई नहीं। सम्मन लौटाने का कोई मतलब नहीं है। ऐसे बुद्धिजीवियों को देश और वैश्विक स्तर पर सोचना चाहिए। 

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