Saturday 21 November 2015

भाकपा माले का वोट तो बढा किंतु...


फोटो-राजाराम सिंह और चुनाव चिन्ह
करीब साढे चार हजार अधिक मिला मत
उपेन्द्र कश्यप
 बिहार विधान सभा चुनाव में भाकपा माले के प्रत्याशी पूर्व विधायक को 22801 मत मिला। गत विधान सभा चुनाव 2010 में उन्हें मात्र 18463 मत मिला था। अर्थात गत की अपेक्षा 4338 मत अधिक मिला। इस लिहाज से प्रदर्शन को बेहतर कहा जा सकता है किंति इसके बावजूद खराब बात यह रही कि उनका जमानत नहीं बच सका। दो बार पूर्व विधायक रहने के बाद ऐसी स्थिति में आना खुद और पार्टी की सेहत के लिए बेहतर नहीं माना जा सकता है। इस अधिक मत आने की भी खास वजह है। इसमें पार्टी के प्रति जनता के विस्वास से अधिक महत्वपूर्ण भूमिका राजद प्रत्याशी बीरेन्द्र कुमार सिन्हा और रालोसपा प्रत्याशी चंद्रभुषण वर्मा के विरोधियों की मानी गयी है। मुकाबले में भाकपा माले और सोम प्रकाश को भी बताये जाने के कारण मत की संख्या बढी है। वैसे इस पर राजाराम सिंह ने कहा कि यह मत कई बार राजनीतिक माहौल से घटता-बढता है। एनडीए सरकार के खिलाफ गुस्सा और महागठबन्धन के कारण भी मत बढा है। पूरे बिहार में वामपंथ के प्रति जनता की उम्मीद बढी है। कहा कि माले का बेसिक जनाधार भी है। महत्वपूर्ण है कि पूरे परिदृष्य में माले का जनाधार लगातार घटता जा रहा है। 2015 इसके उलट एक उम्मीद जगा गयी है।


सर्वाधिक 48 हजार मत 1995 में
सबसे कम 2010 में 18463 मत

भाकपा माले ने मत का चरमोत्कर्ष भी देखा है। 1990 के विधान सभा चुनाव में आईएपीएफ (तब माले भूमिगत पार्टी थी) के बैनर तले जब राजाराम सिंह चुनाव लडने उतरे तो उन्हें 29048 मत मिला था। यह दौर बिहार में सामंतवाद के खिलाफ समाजवाद का झंडा बुलन्द होने का था। सामाजिक परिवर्तन का दौर था और पहली बार पिछडे लालु यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने तक पहुंच गया था। बाद में स्थानीय असंतोष ने 1995 में माले को 48089 मत दे कर विजेता बना दिया। अपार मत से विजय। यह स्थानीय लहर थी जद प्रत्याशी राम बिलास सिंह को हराने के लिए। 2000 में मत घट गया, मिला- 37650 मत तब भी जीत मिली। 2005 फरवरी में उन्हें 34700, अक्टूबर 2005 में 24023 मत और फिर 2010 के चुनाव में 18463 मत मिला। लगातार घटते मत के बीच ताजा प्रदर्शन ने माले की उम्मीद जगा दी है।


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