Saturday 7 November 2015

देखे हैं हमने तीखे संघर्ष के दो अध्याय


100 और 1000 से कम अंतर की दो जीत
                    उपेन्द्र कश्यप
पूरा बिहार दुविधा में है। कौन जीतेगा, कौन हारेगा, किसकी सरकार बनेगी? यह सवाल राज्य में और प्राय: हर विधान सभा क्षेत्र में लोगों को परेशान कर रहा है। मान जा रहा है कि इस बार कांटे की टक्कर है। दोनों गठबन्धन, महागठबन्धन और एनडीए में किसी की सरकार बन सकती है। यह विचार जनता में भी है और एक्जिट पोल में भी। दुविधा इसी कारण है। ओबरा विधान सभा क्षेत्र में भी इन्हीं दो के बीच कांटे की टक्कर मान अजा रहा है। यहां दो जीत-हार दिलचस्प रहे हैं। चुनाव परिणाम अप्रत्याशित रहा है। परिणाम ने सबको चौंकाया था। इतिहास में दर्ज दोनों चुनाव परिणाम को याद करना दिलचस्प होगा।

रामनरेश सिंह से 23 वोट से हारे रामबिलास सिंह
                  फोटो- स्व.रामनरेश सिंह और स्व.रामबिलास सिंह 
साल 1967 का बिहार विधान सभा चुनाव दाउदनगर विधान सभा क्षेत्र के लिए सबसे दिलचस्प रहा है। जी हां, दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र। तब यही क्षेत्र था, जिसके साथ हसपुरा प्रखंड जुडा हुआ था। ओबरा और बारुण को मिलाकर अलग विधान सभा क्षेत्र ओबरा के नाम से था। इस चुनाव में एक तरफ थे राम नरेश सिंह। सोशकिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रुप में। तब इनकी काफी ख्याति थी। 1952 में इसी पार्टी और क्षेत्र से उन्होंने पहली जीत दर्ज की थी। गोह प्रखंड के बुधई निवासी थे। इनका रुतबा था। राजनीतिक कद काफी उंचा हो गया था। सुभाषचन्द्र बोस को चौरम में लाने का श्रेय इन्हें भी जाता है। हालांकि अगला दो चुनाव वे इंका प्रत्याशियों से हारते रहे। बावजूद इसके उनके कद के सामने रामबिलास सिंह कहीं नहीं टिक रहे थे। इनका पहला चुनाव था। वे सन्युक्त सोशलिष्ट पार्टी के प्रत्याशी बने। दोनों के बीच कांटे की टक्कर हुई। तब भी यही चर्चा थी कि कौन जीतेगा? जब परिणाम घोषित हुआ तो राम नरेश सिंह मात्र 23 वोट से जीते। खुद राम बिलास बाबू ने इस संवाददाता से कहा था कि उनकी हार 23 वोट से हुई थी। राम नरेश सिंह जीतकर सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने। अगले दो चुनाव 1969 और 1972 में राम बिलास सिंह ने उन्हें पराजित किया और फिर उनका राजनीतिक जीवन का अंत हो गया।

सोम प्रकाश 803 वोट से जीते
                  फोटो- सोमप्रकाश सिंह और प्रमोद सिंह चंद्रवंशी

साल 2010 का चुनव सबको याद होगा क्योंकि यह गत चुनाव की ही घटना है। तब विधायक सत्यनारायण सिंह राजद से प्रत्याशी थे। सरकार का नेतृत्व कर रहे जदयू ने प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को प्रत्याशी बनाया। मुकाबला इन्हीं दो के बीच माना जा रहा था। चुनाव परिणाम जब आया तो सब चौंक गये। लालु प्रसाद को छोडकर उनका आधार वोट निर्दलीय किंतु स्वजातीय के साथ सिफ्ट कर गया और परिणामत: राजद 16851 वोट लाकर चौथे स्थान पर सिमट गया। सोम प्रकाश 36815 वोट के साथ जीत गये और एनडीए प्रत्याशी प्रमोद सिंह चंद्रवंशी 36012 वोट लाकर मात्र 803 वोट से हार गये। अपने वोटरों को सक्रिय रखने के लिए सत्यनारायण सिंह ने ओबरा के थानेदार सोम प्रकाश सिंह के तबादला के बाद ईमानदारी बचाओ का नारा देते हुए आन्दोलन किया था और यह घटना उनके लिए आत्मघाती साबित हुआ। सोम प्रकाश की राजनीतिक महत्वाकान्क्षा ने निर्दलीय प्रत्याशी बना दिया। मुकाबले का तीसरा कोण भाकपा माले के राजा राम सिंह को माना जा रहा था। वे इस स्थान पर 184461 वोट के साथ बने रहे।

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